किसानों की कर्ज माफी: BJP के मिशन 2019 के लिए चुनौती बन गया मोदी का ऐलान?

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मध्यप्रदेश में किसानों ने मिनिमम समर्थन मूल्य बढ़ाने की मांग को लेकर हड़ताल शुरू की. किसानों के इस विरोध ने धीरे-धीरे हिंसक रूप ले लिया. जिसका दुष्परिणाम ये हुआ कि पुलिस की फायरिंग में 6 किसानों की मौत हो गई. जबकि कई गंभीर रूप से घायल हो गये. इसी दिन नासिक में दो किसानों ने आत्महत्या कर ली. मध्यप्रदेश के अलावा महाराष्ट्र, राजस्थान और गुजरात में भी किसानों अपनी मांगों को लेकर सरकार के सामने आ गये हैं. किसानों की आय दोगुना करने का दावा करने वाली बीजेपी की सरकार वाले चार राज्यों में ही किसान विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. अब सवाल ये उठने लगे हैं कि बीजेपी की सरकार वाले राज्यों में ही किसान क्यों आंदोलन कर रहे हैं? साथ ही ये भी कि क्या यूपी में किसानों की कर्जमाफी का पीएम मोदी का ऐलान बीजेपी के लिए मिशन 2019 में चुनौती बन सकता है?

चारों राज्यों में किसानों के विरोध के पीछे दरअसल यूपी की योगी सरकार के उस फैसले को माना जा रहा है, जिसमें किसानों की कर्जमाफी की घोषणा की गई थी. चुनाव प्रचार के दौरान पीएम मोदी ने सार्वजनिक मंच से सूबे में बीजेपी सरकार बनने पर पहली कैबिनेट में किसानों का कर्ज माफ करने का वादा किया था. वादे के मुताबिक मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपनी पहली कैबिनेट मीटिंग में ही किसानों का 36 हजार करोड़ से ज्यादा का बकाया कर्ज माफ कर दिया.

योगी सरकार के इस फैसले के बाद दूसरे राज्यों के किसानों में भी एक उम्मीद जगी. ये उम्मीद अब जिद तक आग पहुंची है. महाराष्ट्र के किसानों ने फडणवीस सरकार को अपनी मांगों का प्रस्ताव भेजा. किसान संगठनों की उनके साथ बैठक भी हुई, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. जिसके बाद किसानों ने आंदोलन की शुरुआत कर दी. बड़ी संख्या में किसान सड़कों पर उतर आये. विरोध में सड़कों पर दूध बहा दिया , हाईवे पर सब्जियों का अंबार लगा दिया. महाराष्ट्र में कर्ज माफी के अलावा किसानों की कुछ और भी मांगे हैं.
-स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें लागू करना
-खेती के लिए बिना ब्याज के कर्ज दे सरकार
-60 साल के उम्र वाले किसानों को पेंशन दी जाए
-दूध के लिए प्रति लीटर 50 रुपये मिले

यूपी सरकार के फैसले का असर सिर्फ मध्यप्रदेश या महाराष्ट्र में ही देखने को नहीं मिला. बल्कि गुजरात और राजस्थान में भी इसका प्रभाव नजर आ रहा है.

गुजरात के बनासकांठा में किसानों ने आलू के भाव और खेती के लिए पानी न मिलने के कारण कड़ा विरोध जताया है. किसानों ने सड़कों पर आलू फेंक कर प्रदर्शन किया.

वहीं मध्यप्रदेश सीमा से सटे राजस्थान के प्रतापगढ़ में में किसान आवाज बुलंद कर रहे हैं. किसान अपनी उपज का समर्थन मूल्य बढ़ाने सहित दस सूत्रीय मांगों को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं. यहां भी किसानों ने दूध-सब्जियां फेंक अपना विरोध जताया. किसानों की मांग है कि उपज का समर्थन मूल्य लागत से ज्यादा हो, बीमा कंपनियां समय पर क्लेम पास करें और अटके हुए मुआवजे जल्द मिलें. किसानों की चेतावनी है कि 10 तारीख तक मांगें नहीं मानी गईं तो आंदोलन उग्र होगा.

हालांकि, सिर्फ ये चार राज्य ही नहीं हैं, जहां किसान परेशान है, कर्ज के बोझ में दबा हुआ है. हाल ही में तमिलनाडु के किसानों ने दिल्ली में संसद के सामने नग्न प्रदर्शन तक किया. किसान की बेहाली का अंदाजा उन पर कर्ज के आंकड़ों से भी लगाया जा सकता है. मौजूदा वक्त में देशभर के किसानों पर 12 लाख 60 हजार करोड़ का कर्ज है.
NCRB का अांकड़ा कहता है कि 2001-15 तक 15 सालों में देश के 2 लाख 34 हजार 642 किसानों ने आत्महत्या की है. कहीं किसान सूखे की मार झेलकर कर्ज में डूब गया है, तो कहीं बेहतर मानसून के बाद अच्छी पैदावार के बावजूद उसके अच्छे दिन आते नहीं दिख रहे हैं. ऐसे में महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान और गुजरात सरकार को भी किसानों का गुस्सा शांत करने के लिए योगी सरकार जैसे कदम उठाने पर विचार करना होगा. अगर ऐसा नहीं हुआ तो किसानों की नाराजगी बीजेपी के मिशन 2019 में पार्टी के बड़ी चुनौती के रूप में सामने आ सकती है.