शिमला, जेएनएन। झूठ पकडऩे का नायाब तरीका पॉलीग्राफी या लाइ डिटेक्शन टेस्ट के बारे में हम अक्सर पढ़ते व सुनते रहते हैं। इस टेस्ट का मकसद ये जानना होता है कि व्यक्ति सच बोल रहा है या झूठ। शिमला के कोटखाई दुष्कर्म व हत्या मामले में गिरफ्तार आठ पुलिस अधिकारियों व कर्मचारियों का यह टेस्ट करवाए जाने की संभावना है। आइए जानते हैं कि क्या है लाई डिटेक्शन टेस्ट और यह कैसे किया जाता है।
कैसे काम करती है मशीन
जब किसी व्यक्ति का लाई डिटेक्शन (पॉलीग्राफी) टेस्ट किया जाता है तो उसके साथ छह सेंसर अटैच किए जाते हैं। पॉलीग्राफ मशीन में इन चार बातों को रिकॉर्ड किया जाता है:
– व्यक्ति के सांस लेने की गति (ब्रीदिंग रेट)
– व्यक्ति का पल्स रेट
– व्यक्ति का ब्लड प्रेशर
– व्यक्ति के शरीर से निकल रहा पसीना
– कभी-कभी पॉलीग्राफ मशीन व्यक्ति के हाथ और पैरों की मूवमेंट को भी रिकॉर्ड करती है।
क्या है लाई डिटेक्शन टेस्ट
पॉलीग्राफ एक मशीन है, जिसमें व्यक्ति (जिसका पॉलीग्राफी टेस्ट किया जा रहा हो) से अटैच किए गए सेंसर्स से आ रहे सिग्नल (तरंगों) को मूविंग पेपर (ग्राफ) पर रिकॉर्ड किया जाता है। इस प्रक्रिया को पॉलीग्राफी टेस्ट या लाई डिटेक्शन टेस्ट कहते हैं।
किसने की खोज
पॉलीग्राफ मशीन की खोज 1921 में जॉन अगस्तस लार्सन ने की थी। जॉन ने यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया से मेडिकल की पढ़ाई की थी और वह कैलिफोर्निया के बर्कले पुलिस स्टेशन में कार्यरत थे।
नार्को टेस्ट
झूठ पकडऩे का दूसरा तरीक़ा होता है ट्रूथ सीरम या नार्को टेस्ट का इस्तेमाल। इसमें उस आदमी को एक दवा (जैसे सोडियम पेंटाथॉल) दी जाती है। इससे व्यक्ति बेहोशी कीहालत में बात करता है व सच बातें उगल देता है।