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प्यारे बिरादरान ए अलीग!
आप सबको याद होगा कि जब जेएनयू प्रकरण हुआ था तब विश्व भर से बुद्धजीवियों की प्रतिकिर्या आई थी। नोमचोम्स्की(विश्व प्रसिद्ध बुद्धजीवी) ने भी लेख लिखा जिसमें उन्होंने यूनिवर्सिटी कैम्प्स के महत्व और आदर्श कैंपस पर अपनी राय रखते हुए कहा था “यूनिवर्सिटी कैंपस उस भू-भाग को कहते हैं जहां छात्र किसी भी पूर्वाग्रहों से मुक्त होकर समस्या और उनके समाधान पर विचार रखते हैं।” आप लोगों के एक साहसिक कदम की चर्चा आज पूरे विश्व में हो रही है अथार्त मन्नान वाणी की मृत्यु का शोक मनाने आए कुछ कश्मीरी छात्रों को लाठी डंडे लेकर दौडाया। ऐसा इसलिए किया ताकि आपलोग अपनी देशभक्ति सिद्ध कर सके और उनमें भी प्रथम पंक्ति में वो लोग थे जो आने वाले छात्र यूनियन के चुनाव के प्रमुख दावेदार हैं। आख़िर क़ौम की दलाली (सॉरी रहनुमाई) बिना क़ौम पर लाठी बरसाए कैसे होगी ,आपको ऐसा करते शर्म नही आई। अब आते हैं मूल समस्या पर अथार्त मन्नान वाणी शहीद था या अलगाववादी (आतंकवादी तो हरगिज़ नही था)। मुझे यक़ीन है आप लोगों ने मन्नान वाणी का पत्र नही पढ़ा होगा। पढ़ने लिखने से वास्ता होता तो इतनी जहालत भरी हरकत करते थोड़ी शर्म तो आती ही।मन्नान वाणी ने क़लम के ऊपर बन्दूक़ को क्यों तरजीह दी इसका उसने अपने पत्र में खुल कर कारण लिखा है।कश्मीर में मूल रूप से बड़ी समस्या है उनकी बहनें बलात्कार की जा रहीं हैं उनकी आंखें पैलेट गन द्वारा अंधी की जा रहीं हैं उनके बच्चे मारे जा रहें हैं और आप भी उन्हें ही मार रहें हैं। आप वाक़ई शाबाशी के लायक़ हैं। वो भी क्या साबित करने के लिए देशभक्ति?? जो आप कितनी भी मेहनत कर लें कर ही नही सकते हैं। मीडिया और बहुसंख्यक कट्टर हिंदुओं की नज़र में अलीगढ़ अब भी आतंक का गढ़ है भले आप अपने ही लोगों पर लाठी बरसा रहे हों। आप क्या बचाने की कोशिश कर रहें हैं जब आपके लोग जिनके नाम पर आप दलाली खाते हो भीड़ द्वारा मार दिए जा रहें हैं। किसी सनकी द्वारा जला दिए जा रहें हैं। आप क्या बचा रहे हो सिवाए अपनी शेरवानी के क्रीज़ के? क्या आपके लिए फ़ख़्र की बात नही होगी के आप पर बरसने वाली लाठियों से आपकी बहनों की इज़्ज़त महफूज़ हो जाए? आप पर होने वाले पुलिसिया दमन से कश्मीर में शोषण कम हो जाए । आर्मी किसी कश्मीरी बहन पर हाँथ डालते हुए सोचे के उसके लिए खड़ा होने वाला भी इस देश में है । परंतु आपको तो सुविधा की राजनीति पसंद है अभी किसी दूसरे धर्म को गाली देना हो ,या किसी दूसरे फ़िरके को गरियाना हो ,या आपका सबसे पसंदीदा काम लेफ्ट को गरियाना है। आपके पास समय ही समय है। जो दो कश्मीरी छात्र निर्वासित किये गए हैं यूनिवर्सिटी प्रशासन द्वारा उनकी फ्रीडम ऑफ स्पीच का क्या ? और आपके साहसिक कदम से उत्साहित होकर पुलिस ने जो उनपर देशद्रोह का आरोप लगाया है उसका क्या फ्रीडम ऑफ स्पीच क्या होती है? जानते भी हैं आपलोग दिन को दिन और रात को रात कहना फ्रीडम ऑफ स्पीच है ?? छात्रसंघ छात्र हितों के लिए होती है उन कश्मीरी छात्रों के हितों का क्या?? ये कुछ सवाल हैं जिनका उत्तर ठंडे दिमाग़ से अलीगढ़ के पढ़ने लिखने वाले छात्रों को सोंचना चाहिए। लॉबी वालों से तो पहले ही कोई उम्मीद नही है, कट्टा चलाइये लेफ्ट को गरियाईये मगर आप जो पढ़ लिख रहे हैं अगर ज़मीर ज़िंदा हो तो उन कश्मीरी छात्रों के लिए खड़े होइए इतना तो रिस्क उठाइये सदियों से क़ौम की रहनुमाई के नाम पर दलाली कर रहे हैं अब तो जाग जाइये।
लेखक-: अम्मार अहमद
नोट – ये लेखक के स्वत्रंत विचार है।