कोरोना लॉकडाउन में राजस्थान के कोटा में फंसे बच्चे स्पेशल ट्रेन से बुधवार की सुबह जब कटिहार स्टेशन पर उतर गए, तब बच्चे और उनके माता-पिता दोनों की जान में जान आई। हालांकि कोटा से पूर्णिया तक के सफर के बारे में बच्चों से बताया कि बिहार घुसते ही परेशानी शुरू हो गई थी।
न्यू सिपाटी टोला के प्रत्यूष कुमार, राजेंद्र नगर मधुबनी के ऋषभ उपाध्याय, विवेक सूरज और सुख नगर मधुबनी के सौरभ कुमार ने बताया कि कोटा से चलते समय एक बार जो कोरोना स्क्रीनिंग हुई उसके बाद कहीं भी कोई टेस्ट या स्क्रीनिंग नहीं हुई। पांच मई की शाम में कानपुर में एक बार खाना और पानी दिया गया। उसके बाद किसी ने पूछा भी नहीं। सबसे ज्यादा परेशानी कटिहार स्टेशन पर हुई। उसके बाद वहां से पूर्णिया आने में हुई। सुबह करीब आठ बजे ट्रेन कटिहार स्टेशन पर पहुंची।
प्रत्युष कहते हैं कि हर बच्चे के पास बहुत ज्यादा सामान था। उसे कोई छूने वाला भी नहीं था। बहुत मुश्किल से सामान को ट्रेन से उतारा। उसे घसीट कर बाहर निकाला। ये बहुत बुरा था। प्लेटफॉर्म से बाहर सड़क तक एक-एक सामान को घसीट कर लाना पड़ा। उसके बाद एक आखिरी बस वहां पर खड़ी थी, जिसमें बच्चों को उनके सामान के साथ ठूस दिया गया। हर सीट पर बच्चे बैठे तो थे ही बहुत से बच्चे खड़े भी थे। सोशल डिस्टेंसिंग का तो पता नहीं था। जबकि ट्रेन में हम लोगों को सोशल डिस्टेंसिंग के साथ कटिहार तक लाया गया। कटिहार में घंटों भूखे प्यासे बस में बैठे रहे।
कटिहार में सिर्फ होम क्वारंटाइन का फार्म भरवाया गया
बस में बैठने से पहले सिर्फ होम क्वारंटाइन का फार्म भरवाया गया और हाथ पर मुहर लगा दिया गया… बस। यही थी सरकारी व्यवस्था। जब पूर्णिया के इंदिरा गांधी स्टेडियम में उतरे तो वहां भी किसी तरह की जांच नहीं हुई। खाने के नाम पर एक बिस्कुट, दो केला और एक बोतल पानी दिया जा रहा था जो किसी ने लिया किसी ने नहीं लिया। बच्चों को कहा गया रुकिए आपको आपके घर तक पहुंचाया जाएगा। इतना सब्र किसमें था। ज्यादातर बच्चों ने अपने अभिभावक को फोन किया और वो आकर बच्चों को घर ले गए।