क्या RBI के रेट कट से मोदी सरकार को होगा फायदा? जानें 3 चुनावों का इतिहास

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क्या चुनावी वर्ष में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा ब्याज दरों में कटौती का लोकसभा चुनाव पर कोई असर पड़ता है? जी हां, इतिहास तो कुछ ऐसा ही कहता है. यह जानना दिलचस्प है कि चुनाव साल में अगर रिजर्व बैंक ने ब्याज दरों में कटौती की तो उस साल सत्ता में रहने वाली पार्टी को जीत मिली है. रिजर्व बैंक ने गुरुवार को इस वित्त वर्ष की पहली मौद्रिक नीति समीक्षा में रेपो रेट में चौथाई फीसदी की कटौती की है. यह मध्यम वर्ग के लिए बड़ी राहत है क्योंकि मकान, वाहन और औद्योगिक लोन सस्ते हो जाएंगे.

साल 2019 में रिजर्व बैंक ब्याज दरों में दो बार कटौती कर चुका है. लोकसभा चुनाव से पहले यह वित्त वर्ष 2019-20 की पहली समीक्षा बैठक थी और अब चुनाव होने तक इसमें कोई बदलाव नहीं होना है. यह कटौती मोदी सरकार के लिए भी एक बड़ी राहत है. रिजर्व बैंक के निर्णय चुनाव आचार संहिता के दायरे में नहीं आते, इसलिए रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समीक्षा कमिटी (MPC) इस बारे में आराम से निर्णय ले सकती थी. रिजर्व बैंक एक वित्त वर्ष में छह बार अप्रैल, जून, अगस्त, अक्टूबर, दिसंबर और फरवरी में अपनी मौद्रिक नीति की समीक्षा करता है. हालांकि अप्रैल की समीक्षा का सबको इंतजार रहता है, क्योंकि इससे ही पूरे वित्त वर्ष का एक तरह का रुख तय हो जाता है.

वैसे तो रिजर्व बैंक के ब्याज दरों में मामूली कटौती का जनता को बहुत फायदा नहीं होता, क्योंकि बैंक इसका फायदा ग्राहकों तक पहुंचाने से हिचकते हैं. लेकिन पिछले तीन लोकसभा चुनाव के नतीजों पर नजर डालने तो एक खास तरह का ट्रेंड नजर आता है.

2014 का चुनाव

साल 2014 में लोकसभा के चुनाव 7 अप्रैल से 12 मई के बीच हुए और नतीजा 16 मई को आया था. उस साल रिजर्व बैंक की पहली मौद्रिक नीति समीक्षा 1 अप्रैल को हुई थी. रिजर्व बैंक के तत्कालीन गवर्नर रघुराम राजन ने सख्त रवैया अपनाते हुए रेपो रेट को 8 फीसदी पर बरकरार रखा था, जो कि आज के 6 फीसदी के मुकाबले काफी ज्यादा था. उन्होंने कैश रिजर्व रेश्यो यानी सीआरआर में भी कोई बदलाव नहीं किया. उस साल कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार चुनाव हार गई थी और नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में नई सरकार बनी.

2009 का नतीजा

साल 2009 में लोकसभा चुनाव 16 अप्रैल से 13 मई के बीच हुआ था. उस साल रिजर्व बैंक द्वारा मौद्रिक नीति की पहली समीक्षा 21 अप्रैल को घोषित हुई थी. रिजर्व बैंक के तत्कालीन गवर्नर डी. सुब्बाराव ने रेपो रेट में चौथाई फीसदी की कटौती करते हुए उसे 5 फीसदी से 4.75 फीसदी कर दिया था. इसी तरह रिवर्स रेपो रेट में भी चौथाई फीसदी की कटौती करते हुए उसे 3.25 फीसदी कर दिया गया था. उस साल हुए लोकसभा चुनाव में यूपीए सरकार जीतकर फिर से सत्ता में आ गई थी.

2014 का चुनाव

साल 2004 की बात करें तो लोकसभा चुनाव 20 अप्रैल से 10 मई के बीच हुए थे. उस साल रिजर्व बैंक द्वारा पहली मौद्रिक नीति समीक्षा 10 मई को आई थी. तत्कालीन गवर्नर वाईवी रेड्डी ने रेपो रेट में तब कोई बदलाव न करते हुए उसे 4.5 फीसदी पर बरकरार रखा था. बैंक रेट को भी 6 फीसदी पर स्थ‍िर रखा गया था. उस समय अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी और चुनाव में उसे हार का सामना करना पड़ा. कांग्रेस सबसे बड़ी राजनीतिक दल बनी और उसके नेतृत्व में यूपीए की सरकार बनी.

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