गंभीर मामलों में महिलाओं पर केवल जुर्माना लगाना गलत : सुप्रीम कोर्ट –

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सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि गंभीर मामलों में महिलाओं पर जेल और जुर्माना दोनों लगाए जा सकते हैं।
नई दिल्ली (एजेंसी)। सुप्रीम कोर्ट ने महिला अपराधियों पर गंभीर अपराधों में केवल जुर्माना लगाने के गलत और अन्यायपूर्ण परिणाम हो सकते हैं। खासकर ऐसे मामले जिनमें जेल और जुर्माना दोनों लगाए जा सकते हैं। कोर्ट ने नशा करने और एक व्यक्ति से साथ लूटपाट करने में शामिल होने पर एक महिला पर केवल जुर्माना करने के हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया। साथ ही कोर्ट ने कहा कि कानूनी योजना की सीमा से बाहर जाकर उदारता नहीं दिखाई जानी चाहिए।
जस्टिस एके सीकरी और जस्टिस अशोक भूषषण की बेंच ने इस मामले में अलग- अलग लेकिन एक जैसा फैसला लिखा। इसमें कहा गया है कि दोषषी के साथ ट्रायल कोर्ट ने पहले ही यह देखते हुए उदारता बरती है कि उसके तीन नाबालिग बच्चे हैं। ट्रायल कोर्ट ने उसे दो साल जेल और 6 हजार रुपए जुर्माना लगाया। जस्टिस सीकरी ने कहा कि आरोपी पक्ष ने मौजूदा मामले में दो परिस्थितियों का उल्लेख किया। एक -आरोपी महिला है दूसरा- उसके तीन नाबालिग बच्चे हैं। लेकिन इन्हें अपराध की प्रकृति के साथ संतुलित किया जाना चाहिए जो उसने किया है। यह देखते हुए ही ट्रायल कोर्ट ने उदारता दिखाते हुए दो साल की जेल की सजा दी।
हाई कोर्ट को इसमें उदारता दिखाने का कोई कारण नहीं था। इसके अलावा जेल की सजा को हटाना किसी भी मामले में कानून के अनुसार गलत है। जस्टिस भूषषण ने और कडा रख अपनाते हुए कहा कि अपील कोर्ट अपनी शक्ति का उपयोग कर किसी दोषषी की सजा और जुर्माने को खत्म कर केवल जुर्माना नहीं लगा सकता। यह कानूनन गलत है। यदि ऐसा किया जाता है तो यह गलत और अन्यायपूर्ण है।
जस्टिस सीकरी ने कहा कि लिंग सजा के मामले में गंभीरता कम करने वाला कारक नहीं हो सकता। भारतीय संदर्भ में कुछ मामलों में महिलाओं के साथ उदारता दिखाई जा सकती है। जेल की सजा का असर उसके बच्चों पर भी होगा इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती।
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