गांधीनगर: गुजरात में विधानसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा के बाद चुनाव प्रचार अब चरम पर पहुंच गया है. इस बार गुजरात में कांग्रेस जीतने के लिए हर मुमकिन कोशिश कर रही है और इसके लिए वह जातीय गुणा-गणित से भी पीछे नही है. वहीं बीजेपी जहां वह 22 सालों से सत्ता पर काबिज है उसे अपना गढ़ बचाने की चुनौती है. इतने सालों में ऐसा पहली बार है जब बीजेपी को गुजरात में अच्छी-खासी टक्कर देखने को मिल रही है. कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी भी अपने राजनीतिक करियर में पहली बार इस अंदाज में दिख रहे हैं. वह उनकी रणनीति का हिस्सा वैसा ही जैसा पीएम मोदी अपनाते रहे हैं. मंच से नारों को गढ़ना, जनता की छोटी-मोटी समस्याओं पर रैलियों में बोलना और साथ ही विरोधी नेताओं पर तंज कसना. अब यह कितना वोट में बदल पाएगा यह तो चुनाव के नतीजे बताएंगे. लेकिन कांग्रेस ने अपने चारों कार्ड चल दिए हैं. इसी बीच बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने बीजेपी की जीत का दावा किया है. नीतीश कुमार ने कहा है कि जिस राज्य से पीएम आते हो, वहां की जनता उन्हीं की पार्टी को वोट देगी. गुजरात में बीजेपी को कोई दिक्कत नहीं है. अब सवाल इस बात का है कि राहुल के ये चार कार्ड कौन हैं जिन पर नीतीश कुमार को ऐतबार नहीं है.
1- हिंदुत्व की प्रयोगशाला में जातिगण समीकरणों का प्रयोग
गुजरात में बीजेपी का मुख्य हथियार हिंदू वोटों का एकमुश्त उसके पाले में पड़ना है. लेकिन बिहार की तर्ज पर कांग्रेस ने इसकी काट के लिए वहां के स्थानीय जातिगत समीकरणों को इस बार साधने की कोशिश की है. पाटीदारों और दलित नेताओं को वह अपने पाले में ला चुकी है. पाटीदार अभी तक बीजेपी का ही वोटबैंक माने जाते रहे हैं लेकिन इस बार आरक्षण की मांग को लेकर उपजे गुस्से को कांग्रेस भुनाना चाहती है. विशेषज्ञों का कहना है कि अगर थोड़ा सा भी वोट प्रतिशत में बदलाव हुआ तो कांग्रेस को फायदा हो सकता है.
2- एंटनी रिपोर्ट को ध्यान में रखकर रणनीति
लोकसभा चुनाव में हार के कारणों को बताने वाली एके एंटनी रिपोर्ट में कहा गया है कि कांग्रेस की हार की वजह उसकी तुष्टीकरण की छवि भी रही है. इसके बाद से राहुल ने इस छवि को तोड़ने की पूरी कोशिश की है. यही वजह है कि वह पूरे गुजरात दौरे में मंदिर जाने से नहीं चूके हैं और भाषणों में भी वहा महाभारत और गीता की बाते कहते हैं.
3- आम वोटरों से जुड़ाव
राहुल ने इस बार वीआईपी और सुरक्षा घेरे में रहने वाले नेता की छवि तोड़ने की कोशिश की है. वह आम लोगों से मिलते हैं. वह मंच पर भीड़ में से किसी को बुलाते हैं, सेल्फी खिंचावते हैं, आदिवासी के बीच जाते हैं, ऐसा करना लोगों को अच्छा भी लग रहा है. दरअसल यह देखकर इसलिए भी नया लगा रहा है क्योंकि बीते कई दशकों के बाद पहली बार कांग्रेस का कोई बड़ा नेता आम जनता से ऐसे संवाद कर रहा है.
4- नजर 2019 के लोकसभा चुनाव पर
इस बात का विश्लेषण हम पहले भी कर चुके हैं, जिसमें कहा गया है गुजरात विधानसभा चुनाव के नतीजे कुछ भी आएं लेकिन फायदा राहुल गांधी का ही होगा. कांग्रेस को भी ऐसा लगता है कि लोकसभा चुनाव आते-आते देश का नारेटिव बदलेगा और जिन मुद्दों को राहुल गांधी अभी उठा रहे हैं वह 2019 तक काफी कारगर साबित होंगे.
हालांकि अब यह तो चुनाव के नतीजे ही बताएंगे कि किसके कार्ड चले और किसका दावा. लेकिन यह भी तय है कि गुजरात में अभी बहुत कुछ होना बाकी है.