ज़ोहरा सहगल: एक ऐसी दादी जो कभी बूढ़ी नहीं हुईं

1416

गुज़रे ज़माने की मशहूर अदाकारा, नृत्यांगना और नृत्य निर्देशिका ज़ोहरा सहगल की याद दर्शकों के दिल में ज़िदादिल, बोलती आंखों वाली चुलबुली दादी के तौर पर बनी रहती है.

ज़ोहरा सहगल ने ‘चीनी कम’, ‘हम दिल दे चुके सनम’, ‘दिल से’, ‘वीर ज़ारा’ जैसी हिंदी फ़िल्मों में ‘चुलबुली और ज़िंदादिल दादी’ बनकर दर्शकों के दिलों में जगह बनाई.

27 अप्रैल 1912 में पैदा हुई ज़ोहरा सहगल , करीब सात दशक के अपने करियर में नृत्य, थिएटर और फ़िल्मों में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया.

2014 में 102 साल की उम्र में ज़ोहरा सहगल ने दुनिया को अलविदा कह दिया था.

 

उनकी बेटी किरण सहगल मशहूर नृत्यांगना हैं, उन्होंने बीबीसी से ख़ास बातचीत में अपनी मां के बारे में कई ऐसी दिलचस्प बातें बताईं.

ज़ोहरा सहगल के साथ किरण सहगलइमेज कॉपीरइटKIRAN SEHGAL
Image captionअपनी मां ज़ोहरा सहगल के साथ किरण सहगल

शेर शायरी और कविताएं

ज़ोहरा सहगल अक्सर सार्वजनिक समारोह में शेर शायरी और कविताएं प्रस्तुत करती थीं. बेटी किरण सहगल ने बताया की माँ ज़ोहरा ने शायरी अपने जीवन में बहुत देरी से शुरू की.

शाम को व्यायाम की तरह वो 36-37 कविताएं घर पर बोला करती थीं ताकि उनकी स्मरण शक्ति मज़बूत रहे. 1987 में जब वो हिंदुस्तान लौटीं तो धीरे-धीरे सार्वजनिक समारोह में भी शेरो-शायरी करना शुरू कर दिया.

अमिताभ बच्चन और शाहरुख़ खान पसंदीदा कलाकार

ज़ोहरा सहगल ने ‘चीनी कम’ फ़िल्म में अमिताभ बच्चन की माँ का किरदार निभाया था और शाहरुख़ खान के साथ ‘वीर ज़ारा’ और ‘दिल से’ काम किया था. ये दोनों कलाकार ज़ोहरा सहगल को बेहद पसंद थे.

‘चीनी कम’ की शूटिंग के वक़्त बेटी किरण उनके साथ यात्रा किया करती थीं क्योंकि बढ़ती उम्र के साथ अकेले यात्रा करना ज़ोहरा सहगल के लिए मुश्किल हो गया था.

किरण सहगल ने बताया की उन्हें शारीरिक रूप से खड़े होने में तकलीफ़ होती थी पर उन्हें अपने काम में बड़ा मज़ा आता था.

ज़ोहरा सहगलइमेज कॉपीरइटKIRAN SEHGAL

पृथ्वीराज कपूर को गुरु मानती थीं

लम्बे समय तक नृत्य के साथ जुडी ज़ोहरा सहगल और पति कामेश्वर नाथ सहगल ने बंटवारे के तनाव के कारण बॉम्बे (मुंबई) आने का फ़ैसला किया.

1945 में ज़ोहरा सहगल पृथ्वी थिएटर से जुड़ीं और क़रीबन 15 साल तक जुड़ी रहीं. पृथ्वीराज कपूर का वो बहुत आदर किया करती थीं और थिएटर में उन्हें अपना गुरु मानती थीं.

ज़ोहरा सहगलइमेज कॉपीरइटKIRAN SEHGAL

क्रिकेट मैच की शौक़ीन

ज़ोहरा सहगल फ़िल्में लगभग ना के बराबर देखती थीं, लेकिन क्रिकेट मैच वो बड़े चाव से देखा करती थीं. आँखें कमज़ोर होने के कारण बेटी किरण क्रिकेट के मैच के दौरान मैच का स्कोर लगातार ज़ोहरा सहगल को बताया करती थीं. हालांकि उनका कोई पसंदीदा खिलाड़ी नहीं था.

ज़ोहरा सहगलइमेज कॉपीरइटKIRAN SEHGAL

खाने की शौक़ीन

वह अच्छे खाने की शौक़ीन थीं. उनकी पसंदीदा चीज़ें थी पकौड़े , कड़ी और मटन कोरमा. बेटी किरण ने बताया की जब घर पर कोई मेहमान आते तो वो फ़ौरन पकौड़े बनाने को कहतीं और परोसे जाने पर मेहमानों से ज़्यादा ख़ुद ही खा लिया करती थीं.

ज़ोहरा सहगलइमेज कॉपीरइटKIRAN SEHGAL

वज़न की चिन्ता

अपने वज़न को लेकर ज़ोहरा सहगल बहुत ही सचेत रहा करती थीं. हर दूसरे दिन वज़न मशीन में अपना वज़न आँका करती थीं.

अगर ज़रा सा भी वज़न बढ़ जाया करता तो वो बावर्ची को बुलाकर कहती थीं कि उनके खाने में घी और मक्खन ना डाला जाए जब तक उनका वज़न मनचाहा ना हो जाए.

किरण अक्सर माँ ज़ोहरा की खिंचाई कर उनसे कहा करती, “आप करीना कपूर तो बन नहीं सकतीं और ना ही आपकी बारी आएगी तो क्यों वज़न की चिन्ता करतीं हैं?”

ज़ोहरा सहगल के साथ कमलेश्वर सहगलइमेज कॉपीरइटKIRAN SEHGAL

नृत्य गुरु ना बन पाने की कसक

नर्तक उदय शंकर के साथ लम्बे समय तक बतौर नर्तकी जुड़ी रहीं ज़ोहरा सहगल ने 1945 में थिएटर का रुख किया और अभिनय का दामन थामा.

बेटी किरण सहगल की नृत्य पर गर्व करने वाली ज़ोहरा सहगल को चुभन रही की वो बेटी की तरह नृत्य गुरु ना बन पाईं, जिसका ज़िक्र वो कभी-कभी बेटी से करती थीं.

ज़ोहरा सहगलइमेज कॉपीरइटKIRAN SEHGAL

पश्चिम में काम करना नहीं था आसान

पति के असामयिक देहांत के बाद ज़ोहरा सहगल का बॉम्बे (मुंबई) में रहना मुश्किल हो गया था तो वो दिल्ली में अपने परिवार के पास दोनों बच्चों के साथ लौट आईं.

दिल्ली आने के बाद उन्हें रूस में टूर का मौका मिला. मॉस्को से वो लंदन गईं और वहाँ काम करना शुरू किया. शुरुआत में काम मिलना बहुत मुश्किल रहा. वहां भारतीय कलाकारों को काम नहीं मिल पा रहा था.

भारतीय किरदार भी अंग्रेज़ों को रंग बदलकर करवाया करते थे. जिससे कई बार ज़ोहरा सहगल नाराज़ और दुखी हुआ करती थीं पर जब दौर बदला तो उन्हें काम मिलने लगा.

उन्होंने ‘तंदूरी नाइट्स’, ‘पड़ोसन’, ‘क्राउन ऑफ़ ज्वेल थीफ़’ जैसे शो में काम कर के मशहूर हुईं. अक्सर बसों में लोग उन्हें पहचानने लगे और बैठने के लिए अपनी सीट दे दिया करते.

22 साल पश्चिम में काम करने के बाद ज़ोहरा सहगल 1987 में हिंदुस्तान लौटीं और हिंदी फ़िल्मों में काम करना दोबारा शुरू किया.

ज़ोहरा सहगलइमेज कॉपीरइटKIRAN SEHGAL

थिएटर पहली पसंद

ज़ोहरा सहगल को भले ही फ़िल्म और टीवी ने बेशुमार शोहरत दी पर उन्हें बतौर अभिनेत्री थिएटर में संतुष्टि मिलती थी. थिएटर से उन्हें प्यार था हालांकि फ़िल्में कमाई का अच्छा ज़रिया थीं.

ज़ोहरा सहगलइमेज कॉपीरइटKIRAN SEHGAL

कभी डिप्रेशन की शिकार नहीं हुईं

ज़ोहरा सहगल ने 102 साल की ज़िन्दगी में कई उतार चढ़ाव देखे. कम उम्र में उन्होंने अपनी माँ को खोया. पति का असामयिक निधन हुआ.

पश्चिम देश में काम के लिए संघर्ष किया. कैंसर की मरीज़ भी बनीं और कैंसर से उबरीं भी.

बेटी किरण कहती हैं, “माँ हंसी-मज़ाक करती थीं पर कभी गंभीर भी रहती और कभी दुखी भी हो जातीं. बढ़ती उम्र के साथ साथ उनके शरीर में दर्द भी बहुत था पर वो कभी भी डिप्रेशन की शिकार नहीं हुईं.

उनकी दिनचर्या काफ़ी व्यस्त रहा करती थी. वो हर रोज़ धूप में एक घंटे बैठा करती थीं फिर चाहे आंधी आए या तूफान आए. वो अक्सर कहती कि मुझे जो करना था मैंने कर लिया. मुझे ज़िन्दगी में किसी चीज़ का मलाल नहीं है”

ज़ोहरा सहगल के निधन के बाद किरण हर साल अप्रैल के महीने में माँ की याद में कलात्मक कार्यक्रम ‘ज़ोहरा सहगल फेस्टिवल ऑफ़ आर्ट’ का आयोजन करती है.