डूटा ने यूजीसी से कहा- डीयू में ऑनलाइन परीक्षा करवाना मुश्किल, दिए ये सुझाव

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दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के चेयरमैन को एक पत्र लिखकर वर्तमान में विश्वविद्यालय की स्थिति व ऑनलाइन परीक्षा कराने संबंधी मुश्किलों के बारे में अवगत कराया। डूटा अध्यक्ष राजीब रे ने यूजीसी के चेयरमैन प्रो.डीपी सिंह को लिखे पत्र में कहा है कि डीयू एक बड़ा विश्वविद्यालय है। इसलिए इसमें ऑनलाइन परीक्षा कराना संभव नहीं है क्योंकि इसमें हर वर्ग हर क्षेत्र के विद्यार्थी पढ़ते हैं। उन्होंने कहा कि इंटरनेट की कनेक्टिविटी सहित अन्य समस्याएं संसाधनों की समस्याएं हैं। डूटा की तरफ यूजीसी चेयरमैन को सुझाव भी भेजा गया है। जिसमें लिखा है कि ई-संसाधनों के माध्यम से शिक्षण को कक्षा में मूर्त रूप से पढ़ाने के विकल्प के रूप में नहीं लिया जा सकता। छात्रों के वर्तमान बैच के लिए 180 दिनों के शिक्षण की न्यूनतम आवश्यकता का पालन किया जाना चाहिए और अगले सत्रों को आगे बढ़ाने और अवकाश अवधि को सीमित करने से इसे प्राप्त करने में मदद मिल सकती है। उन्होंने जोर देकर कहा कि ऑनलाइन केंद्रीकृत परीक्षाओं के संचालन को पूरी तरह से खारिज कर दिया जाना चाहिए क्योंकि विश्वविद्यालय के पास न तो बुनियादी ढांचा है और न क्षमता।

डूटा द्वारा भेजे गए सुझाव

1. जैसे ही विश्वविद्यालय खुलते हैं अंतिम वर्ष के छात्रों को प्राथमिकता देते हुए शेष शैक्षणिक दिनों को पूरा करने के बाद जल्द से जल्द आंतरिक मूल्यांकन सहित परीक्षा का आयोजन होना चाहिए।
2. अंतिम वर्ष के छात्रों को पिछले सेमेस्टर और सीजीपीए के आधार पर व एसजीपीए के विवरण के साथ प्रोविजनल प्रमाण पत्र प्रदान किए जा सकते हैं और पाठ्यक्रम के काम में किए गए सभी कागजात सूचीबद्ध कर सकते हैं। इससे उच्च अध्ययन के लिए अन्य संस्थानों में आवेदन करने वाले छात्रों को भी लाभ होगा, क्योंकि वे परीक्षाओं के पूरा होने और परिणामों की घोषणा का इंतजार कर रहे हैं।

3. यदि विश्वविद्यालयों को केवल चरणबद्ध तरीके से खोलने की अनुमति है, तो अंतिम वर्ष के छात्रों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। ऐसी स्थिति में, अध्ययन के अन्य वर्षों के लिए परीक्षाएं या तो आयोजित की जा सकती हैं। यदि परिस्थितियां इतनी अनुमति देती हैं या बाद की तारीख को आगे बढ़ाया जा सकता है तो कॉलेज या विभाग खोलने के 15 दिनों के भीतर आंतरिक मूल्यांकन पूरा किया जा सकता है।

4. विश्वविद्यालयों को छात्रों के वर्तमान बैचों की पाठ्यक्रम आवश्यकताओं को समायोजित करने के लिए आवश्यक समय को ध्यान में रखते हुए अगले वर्ष का शैक्षणिक कैलेंडर तैयार करना चाहिए। इसके लिए सेमेस्टर परीक्षा में भाग लेने या वार्षिक मोड में परीक्षा आयोजित करवाई जा सकती है।

5.इस तरह की विषम परिस्थिति में स्नातक स्तर पर शिक्षण के लिए परीक्षा वार्षिक मोड में आयोजित करने पर गंभीरता से विचार किया जा सकता है। इसके अलावा विद्यार्थियों को द्वितीय व तृतीय वर्ष पर पदोन्नत करने पर भी विचार किया जा सकता है।

6. विश्वविद्यालयों को स्थिति से निपटने के लिए तैयार करने के लिए संकाय और विभागों सहित विभिन्न वैधानिक निकाय को विचार विर्मश के लिए कहा जाना चाहिए।  और जो भी निर्णय लिए जाएं या कदम उठाए जाएं उसके बारे में छात्रों को जानकारी दी जाए, भले ही विश्वविद्यालय को आगामी परिस्थितियों के अनुसार उसमें कुछ फेरबदल करना पड़े।