दिल्ली हिंसा: हाईकोर्ट में दलील, ‘पुलिस पिकनिक नहीं मना रही, तेजाबी हमलों का सामना कर रही है’

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सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने उत्तर पूर्व दिल्ली में हिंसा से निपटने में भूमिका को लेकर दिल्ली उच्च न्यायालय में दिल्ली पुलिस का बचाव करते हुए कहा कि पुलिस वाले पिकनिक नहीं मना रहे, बल्कि तेजाब के हमले झेल रहे हैं। मेहता ने हिंसा में शामिल लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने और उन्हें गिरफ्तार करने की मांग वाली अर्जी पर सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति एस मुरलीधर और न्यायमूर्ति तलवंत सिंह की पीठ के समक्ष दलील दी।

सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर और फराह नकवी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन गोंजाल्विस ने कहा कि पुलिस को बिना किसी डर या दबाव के कानून की रक्षा करनी चाहिए और सार्वजनिक संपत्ति को कोई नुकसान नहीं होने देना चाहिए। इस पर मेहता ने पलटवार करते हुए कहा, ”पुलिस पिकनिक नहीं मना रही, वे तेजाब हमलों का सामना कर रहे हैं।”

गोंजाल्विस ने सुनवाई के दौरान दलील दी कि अदालत को अपने आदेश में कड़े शब्दों में बोलना चाहिए कि पुलिस को मौजूदा हालात में कैसे कार्रवाई करनी चाहिए क्योंकि अब तक वे चुप रहे हैं। मेहता ने इस दलील पर कड़ा ऐतराज जताते हुए कहा कि अदालत एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही है। उन्होंने याचिकाकर्ता पर तीन लोगों के वीडियो क्लिप के आधार पर चुनिंदा तरीके से भड़ास निकालने का आरोप लगाया।

नेताओं के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज नहीं किए जाने पर कोर्ट ने जताई निराशा
वहीं दूसरी ओर, अधिकारियों को राजधानी में 1984 के सिख विरोधी दंगों की पुनरावृत्ति नहीं होने देने के लिए आगाह करते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार (26 फरवरी) को कपिल मिश्रा और भाजपा के अन्य नेताओं के खिलाफ कथित नफरत भरे भाषण देने के मामले में प्राथमिकी दर्ज नहीं किए जाने पर निराशा जताई। अदालत ने पुलिस आयुक्त से इस मामले में गुरुवार (27 फरवरी) तक सोच-विचारकर फैसला करने को कहा।

उत्तर पूर्व दिल्ली में रविवार (23 फरवरी) को भड़के सांप्रदायिक दंगों को रोक पाने में दिल्ली पुलिस की कथित नाकामी पर नाराजगी जताते हुए उच्चतम न्यायालय ने पुलिस को पेशेवेर तरीके से काम नहीं करने के लिए जिम्मेदार ठहराया। दंगों में कम से कम 24 लोग मारे जा चुके हैं और करीब 200 लोग घायल हो गए।

शीर्ष अदालत ने कानून प्रवर्तन एजेंसियों को हिंसा भड़काने वालों पर रोकथाम नहीं करने के लिए जिम्मेदार ठहराया और कहा कि उन्हें किसी की मंजूरी का इंतजार किए बिना कानून के अनुसार काम करना चाहिए। न्यायमूर्ति एस एम कौल और न्यायमूर्ति के एम जोसफ की पीठ ने कहा, ”अगर कोई भड़काऊ बयान देता है, तो पुलिस को कार्रवाई करनी होगी।”