पटना : क्या देश में अगला चुनाव जय श्रीराम और जय भीम के समर्थकों के बीच होगा? हाल के दिनों में भारतीय राजनीति में एक नया ध्रुवीकरण दिख रहा है, दलितों की अगुवाई में मंडल की ताकतें मोर्चा खोलने को तैयार हैं. बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने नया नारा दिया है, ‘जय जय जय भीम, जय जय जय मंडल’.
अंबेडकर जयंती के मौक़े पर तेजस्वी यादव ने अपनी राजनीति साफ कर दी. सोमवार को उनके बड़े भाई तेज प्रताप यादव अपना जन्मदिन मनाने पटना की एक दलित बस्ती में जा पहुंचे. अंबेडकर जयंती पर तेजस्वी यादव ने कुछ इस तरह घोषणा की, ”हम लोग की पार्टी की मांग है, जिसकी जितनी आबादी हो उसको उतनी हिस्सेदारी मिलनी चाहिए. तमिलनाडु की तर्ज पर आरक्षण बढ़ाया जाना चाहिए. अगर ऐसा नहीं करेंगे तो हमलोग आपके आशीर्वाद से सरकार में आने का काम करेंगे तो ऐसा लागू करने का काम करेंगे.”
रविवार को मुस्लिम समुदाय के सम्मेलन में भी यही आवाज़ सुनाई पड़ी. पटना के गांधी मैदान में लाखों लोगों के बीच ये राय बनती दिखी कि बीजेपी को रोकने के लिए पिछड़े-दलितों और बाकी सबको साथ आना होगा. गांधी में मैदान में आयोजित रैली के आयोजक वलि रहमानी ने कहा, ”इनका जुर्म क्या है… एससी/एसटी से ताल्लुक रखना. मुश्किल वक्त में मजलूम तबका एक दूसरे का साथ दें.”
जाहिर है, एससी/एसटी ऐक्ट में बदलाव के ख़िलाफ शुरू हुआ आंदोलन अब ज़्यादा बड़े राजनीतिक समीकरणों की बुनियाद बन सकता है. इसके अलावा प्रोन्नति में आरक्षण का सवाल, यूजीसी के नए नियमों से पैदा आक्रोश, न्यायपालिका तक में आरक्षण की मांग जैसे मुद्दे हैं जिन पर बीजेपी को घेरने की तैयारी है.
उधर, एनडीए की भी इस पर नजर है. केंद्र सरकार के मंत्री रामविलास पासवान मानते हैं कि सरकार को अपनी दलित विरोधी छवि बदलनी होगी. पहले बिहार और फिर उत्तर प्रदेश ने बताया है कि बीजेपी के ख़िलाफ़ सही गोलबंदी प्रधानमंत्री मोदी के करिश्मे की काट है. लेकिन ये सिर्फ तात्कालिक राजनीति का मामला नहीं है, पिछड़े दलितों का नए सिरे से साथ आना देश की दूरगामी राजनीति के लिए भी बड़ा संदेश है. ख़ासकर ये देखते हुए कि इस बार पिछड़े दलितों का नेतृत्व स्वीकार करने को तैयार हैं.