नजरिया: कभी मोदी ने युवाओं से कहा था- आज आपने बलिदान नहीं दिया तो कल इतिहास आपको कोसेगा!

544

उर्विश कोठारी

नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) विरोधी प्रदर्शनों पर तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुप्पी साध रखी है. मगर जेएनयू के छात्रों और शिक्षकों को वे निशाना बनाते रहे हैं. भाजपा के कई मंत्री और नेता ‘लोकतांत्रिक तरीके से निर्वाचित सरकार द्वारा पास किए गए कानून’ का विरोध करने वाले युवाओं की निंदा करते रहे हैं. लेकिन एक समय था जब नरेंद्र मोदी ने खुद एक युवा नेता के तौर पर 1978 में, अपनी पहली गुजराती किताब ‘संघर्षमा गुजरात’ (साधना पुस्तक प्रकाशन, अहमदाबाद) में लिखा था कि गुजरात ने इंदिरा गांधी की इमरजेंसी का किस तरह प्रतिकार किया था. तब करीब 20 साल से कुछ ऊपर के मोदी ने इस किताब में बताया है कि उन्होंने इस प्रतिकार में किस तरह सक्रिय भागीदारी की थी.

मोदी की सार्वजनिक और भूमिगत गतिविधियों के ब्यौरे देने वाली इस किताब की शुरुआत इस तरह होती है. ‘इतिहास गवाह है, राजमहलों और संसदों ने इतिहास नहीं बनाई है, संसद पर दस्तक देने वालों ने संसद भी बनाया है, इतिहास भी बनाया है

किताब के एक अध्याय में ‘बौद्धिकों’ की भूमिका की प्रशंसा की गई है, जबकि गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए और अब प्रधानमंत्री के रूप में भी मोदी इस जमात के खिलाफ़ नफरत उगलते रहे हैं. लेकिन तब, युवाओं को ‘विद्रोह’ करने का आह्वान करते हुए उन्होंने उनके नाम एक पत्र जारी किया था. यह 21 नवंबर 1976 की बात है, जब अहमदाबाद में युवाओं का एक सम्मेलन बुलाया गया था. पूर्व मुख्यमंत्री और गांधीवादी नेता बाबूभाई जे पटेल स्वतंत्र पार्टी के नेता पीलू मोदी के साथ इसमें भाग लेने वाले थे. उस समय मोदी भूमिगत थे. लेकिन युवाओं के इस सम्मेलन के लिए उन्होंने एक संदेश तैयार किया था और इसमें लिखा था कि इस सम्मेलन को अहमदाबाद में करने की अनुमति नहीं दी गई है इसलिए इसे वहां से 20 किलोमीटर दूर बारेजादी में किया जा रहा है. मोदी के मुताबिक, ‘इस किताब के लेखक का संदेश इस सम्मेलन में पढ़कर सुनाया गया, और जनसंघ के सदस्यों ने ‘सैकड़ों पुलिसवालों की मौजूदगी में’ इस संदेश को बांटा.

आज जब मोदी प्रदर्शनकारियों को ‘आत्मविश्लेषण’ करने के लिए कह रहे हैं या उनकी पहचान उनके पहरावे से कर रहे हैं तब उन्हें अपने इस पत्र को पढ़ने के बारे में सोचना चाहिए, जो उन्होंने तब लिखा था-युवाओ ! आप भारतमाता के प्यारे हैं, भारत के भविष्य के लिए उम्मीद की एक किरण हैं. विजयी भारतमाता की संतानो, जरा सोचो! हमें आज किस दिशा में धकेला जा रहा है? अगर आप आज नहीं जागे, तो जरा सोचिए कि कल आपको किस परिस्थिति का सामना करना पड़ेगा. भारत के भविष्य को आप ही दिशा देंगे. चूंकि युवा ही आज समाज के अगुआ हैं और कल देश के नेता बनेंगे… तब यह किसका उत्तरदायित्व है कि आज की समस्याओं का समाधान करे और देश को चमकाए? इसका उत्तर स्पष्ट है— यह उत्तरदायित्व आपका ही है.

देश के साथ फरेब करके उसे चुप करा दिया गया है. कल ऐसी गुलामी में जीने के लिए कौन मजबूर होगा? बेशक आप ही मजबूर होंगे. आज की गरीबी, बेरोजगारी, अशिक्षा, अनैतिकता, भ्रष्टाचार, और चरम यातना कल किसे भुगतनी पड़ेगी? आपको. लोकतंत्र को जिस तरह नष्ट किया गया है और तानाशाही थोप दी गई है, उस रास्ते पर कल किसे सिर झुकाकर चलना पड़ेगा? आपको, देश में आज दूसरी आज़ादी की जो लड़ाई चल रही है उसमें अगर आप अपना बलिदान नहीं देते तो कल इतिहास किसे कोसेगा? आपके सिवा किसी और को नहीं. शहीदों के लहू का महत्व न समझने के लिए इतिहासकर जिन लोगों के नामों की सूची बनाएंगे उसमें किसका नाम होगा? बेशक, आपका. युवाओ! हमेशा याद रखें कि आपकी भूमिका सिर्फ इतिहास लिखने या पढ़ने तक सीमित नहीं है, आपका काम इतिहास बनाना भी है. कालपुरुष कालपट पर हर दिन इतिहास लिखता है. उसे सामग्री मुहैया कराने की ज़िम्मेदारी किसकी है? आपकी. देश का इतिहास कैसे लिखा जाएगा? सूखी हुई स्याही और कलम से? या युवाओं के हृदय के रक्त से? या बहनों की पवित्र राखी और सतियों के सिंदूर से? इसका फैसला कौन करेगा? आप.

लोकतंत्र की विजय और तानाशाही की हार में बस एक कदम का फासला रह गया है. विजय की ओर वह एक कदम उठाने का काम किसका है? आपका.जेलों में बंद, कमजोर भारतमाता की तरह असहाय लोगों को मुक्त कराने का कर्तव्य किसका है? आपका. भारतमाता की संतानो! व्यापक और असहनीय अत्याचारों, भारी असंतोष और असहायता से लड़ने के महान कर्तव्य और भारी चुनौती के सामने कौन खड़ा होगा? सुनहरे भविष्य के रचनाकार आप ही हैं!

आप अपने आंदोलन की शुरुआत कहां से करेंगे? प्रतिद्वंद्वी की पहचान करने के बाद आपको उपयुक्त हथियार उठान पड़ेगा. युवाओ, अगर आप आगे नहीं आते हैं तो भारत का आंदोलन अपने मार्ग से भटक जाएगा. अगर आप चुनौती को स्वीकार नहीं करते तो भविष्य आपको आज का युवा मानने से इनकार कर देगा, क्योंकि युगों से असली युवा दमन का मुक़ाबला करते रहे हैं. उन्होंने दमन और अन्याय के सामने कभी सिर नहीं झुकाया, वे कभी रुके नहीं, कभी थके नहीं. तो आज आप चुप क्यों हैं? युवाओं की शानदार परंपरा में चार चांद लगाने का ऐतिहासिक मौका आपके दरवाजे पर दस्तक दे रहा है. उठो, जागो, और भारतमाता की दूसरी आज़ादी की लड़ाई में कूद पड़ो ! दोस्तो! हम सब आज़ादी के बाद की पैदाइश हैं. गुलामी में दम तोड़ना हमें मंजूर नहीं. दम लगाकर गुलामी तोड़ना हमारा काम है… यही यौवन है!
आपका
(युवा भूगर्भ साथी)