पंजाब सरकार ने अपने मंत्री सिद्धू के खिलाफ हाईकोर्ट को फैसले को सही बताया

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नई दिल्ली: तीस साल पुराने रोडरेज के मामले में अपने ही मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू के खिलाफ आज पंजाब सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी. पंजाब सरकार ने कोर्ट में कहा कि हाई कोर्ट के फैसले को बहाल रखा जाए. हाईकोर्ट ने सिद्धू को तीन साल की सजा सुनाई थी.

पंजाब सरकार ने कहा कि सिद्धू को जानबूझकर नहीं फंसाया गया. उनके ये आरोप गलत हैं कि उनको फंसाया गया है. ऐसा कोई सबूत नहीं कि पीड़ित गुरनाम सिंह की मौत हार्ट अटैक से हुई. पंजाब सरकार से तरफ से बहस एक घंटा 45 मिनट चली. नवजोत सिंह सिद्धू की याचिका पर पंजाब सरकार की तरफ से बहस पूरी कर ली गई है. मामले की सुनवाई 17 अप्रैल को जारी रहेगी.

पूर्व क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट कोर्ट में सुनवाई के दौरान शिकायतकर्ता की तरफ से कहा गया कि सिद्धू के खिलाफ लापरवाही से हुई मौत का नहीं बल्कि हत्या का मामला बनता है. सिद्धू को ये पता था कि वो क्या कर रहे हैं, उन्होंने जो किया समझ बूझकर किया इसलिए उन पर हत्या का मुकदमा चलना चाहिए.

शिकायतकर्ता ने कहा कि कहा कि अगर ये रोडरेज का मामला होता तो हिट करते और चले जाते लेकिन यहां पर सिद्धू ने पहले उन्हें गाड़ी से निकाला और जोर का मुक्का मारा जबकि वो चाहते तो थप्पड़ मारते या फिर पैरों पर मार सकते थे लेकिन यहां उन्होंने जानबूझकर कर सिर पर मुक्का मारा और कार की चाबी निकाल ली.

शिकायतकर्ता ने ये भी कहा कि कोर्ट ने अपने एक फैसले में 35 साल बाद सबूत को सामने आने पर रिकॉर्ड पर रखने का आदेश दिया था. इस मामले में भी ऐसा किया जा सकता है क्योंकि निजी चैनल पर सिद्धू के इंटरव्यू की सीडी शिकायतकर्ता को अभी मिली है

इससे पहले मंगलवार को सिद्धू की तरफ से शिकायतकर्ता की उस याचिका का विरोध किया गया जिसमें शिकायतकर्ता ने 1988 रोडरेज मामले में एक नई याचिका दाखिल कर आरोप लगाया है कि साल 2010 में एक निजी चैनल पर दिए अपने इंटरव्यू में सिद्धू ने ये माना था कि वो इस अपराध के लिए दोषी हैं.

सिद्धू की तरफ से कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट अभी अपील पर सुनवाई कर रहा है लिहाजा इसे रिकॉर्ड पर नही रखा जा सकता है, ऐसे में ये अगर दाखिल ही करना चाहते है तो निचली अदालत या हाई कोर्ट में दाखिल करे.

दरअसल पूर्व क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू को गैर इरादतन हत्या के मामले में पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट ने दोषी ठहराते हुए तीन साल की सजा सुनाई थी. इसके खिलाफ उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी और कोर्ट ने उनके दोषी ठहराए जाने पर भी रोक लगा दी थी. इससे पहले ट्रायल कोर्ट ने सिद्धू व उनके दोस्त रुपिंदर सिंह संधू को आरोपमुक्त कर दिया था.

27 दिसम्बर 1988 को सिद्धू अपने दोस्त रुपिंदर सिंह संधू के साथ पटियाला के शेरावाले गेट के मार्केट पहुंचे. स्टेट बैंक के सामने कार पार्किंग को लेकर उनकी गुरनाम सिंह नाम के बुजुर्ग के साथ कहासुनी हो गई. झगड़े में गुरनाम की मौत हो गई.

सिद्धू और उनके दोस्त रुपिंदर सिंह संधू पर गैर इरादतन मर्डर का केस दर्ज हो गया. सेशन कोर्ट में केस चला. पंजाब सरकार और पीड़ित परिवार की तरफ से मामला दर्ज करवाया गया. साल 1999 में सेशन कोर्ट से सिद्धू को राहत मिली और केस को खारिज कर दिया गया. कोर्ट का कहना था कि आरोपी के खिलाफ पक्के सबूत नहीं हैं और ऐसे में सिर्फ शक के आधार पर केस नहीं चलाया जा सकता. लेकिन  साल 2002 में राज्य सरकार ने सिद्धू के खिलाफ पंजाब हाईकोर्ट में अपील की.  एक दिसम्बर 2006 को हाई कोर्ट बेंच ने सिद्धू और उनके दोस्त को दोषी माना.  6 दिसम्बर को सुनाए गए फैसले में सिद्धू और संधू को 3-3 साल की सज़ा सुनाई गई. एक लाख रुपए का जुर्माना भी लगा. सुप्रीम कोर्ट में अपील करने के लिए 10 जनवरी 2007 तक का समय दिया गया.

इसी बीच सिद्धू ने लोकसभा से इस्तीफा भी दे दिया. सुप्रीम कोर्ट में अपील की गई और 11 जनवरी 2007 को चंडीगढ़ कोर्ट में सरेंडर किया गया. 12 जनवरी को सिद्धू और उनके दोस्त को जमानत मिल गई. 25 हज़ार रुपये का बॉन्ड भरवाया गया. सुप्रीम कोर्ट में दी गई अर्जी सिद्धू के पक्ष में आई और उनकी सज़ा पर रोक लगा दी गई.