पत्रकारिता मेरा अनुभव
समय के साथ सब कुछ बदल गया है। पत्रकार और पत्रकारिता भी इससे अछूत नही है। एक समय था जब हैम पत्रकार लिखते थे, संपादक उप संपादक समाचार को संपादित कर प्रकाशित करते थे, पाठक उसे पढ़ते थे, आलोचक उसकी आलोचना करते। यह सबकुछ सम्मानजनक तरीके से होता था। अच्छे पत्रकारों को भरोसा होता था उसकी रिपोर्ट कटेगी नही, होड़ तो इस बात का था के प्रथम पृष्ठ पर जगह मिले। यही कारण था के हमलोग पत्रकारिता को श्रेष्ठतम देने का प्रयास करते थे। लेकिन अब ऐसा होता नही है। अब अच्छे से अच्छे पत्रकार को इस प्रकिर्या के सही ढंग से चलने का भरोसा नही रहा। और जब काम करने वाले का अपने काम पर से भरोसा ही उठ जाए, तो काम ठीक कैसे हो सकता हैं।
मैं अपना अनुभव बताता हू। अपने कैरियर के शुरुआती लग भग 10 साल, प्रथम पृष्ठ पर छपने क होड़ मे वही लिखा, वही किया जो सब पत्रकार करते हैं। क्राईम रिपोटिंग, प्रशासनिक पदाधिकारी, नेताओं, विधायकों, सांसदों और मंत्री का सक्चकर । मजा आता इन बड़े लोगों के साथ बैठने का बात करने का, अनूठे प्रशन पूरने का । खबरें प्रकाशित होती थी कभी पूरा, कभी काट-छांट कर । फिर एक समय आया जब हमें लगा की यह जो कर रहे वह छणिक है। मैं आभारी हूँ वरिष्ठ पत्रकार मित्र का जिन्होंने हमे समझाया के यह रिपोर्टिंग सिर्फ एक का है एक दिन का ऐसा लिखो के सदियों तक सहेज के ररवा जाए। उसी दौड में एक फिल्म आई थी जिसकी नियिका पत्रकार थी, उस फिला का नायक उसे एक डायलॉग बोलता है” तुम जी लिखती हो और उस अख़बार में जो छपता है, वह खबरऔर अख़बार जो लोग पढ़ते है वही लोग कल होकर उस अख़बार पर अपने छोटे बच्चे को पाखाना कराते है, और कचरा में फैक देते हैं फिर मैं अपना लेखनी-बदला , शोधप्रक लेख लिखा जो सैकड़ों का तादाद में अब तक विभिन्न पत्त पत्रिकाओं में छप चुका है। जिसे आज भी लोग सहेज कर खखें हुए हैं। मिलने पर याद दिलाते हैं। उसी हीर में अपना ड्रीम परिजेक्ट बिहार उत्तर ”बिहार तिरहुत और मुज़फ़्फ़रपुर” के लगभग एक हजार साल के इतिहास का संकलन जो अब पूरा हो चुका है। ये एतिहासिक दस्तावेज जल्द ही प्रकाशित कराने की कोशिश कर रहा हूँ।
इस संकलन के लिए पटना, दिल्ली, अहमदाबाद कोलकाता, हैदराबाद केरल और कई प्रमुख लाइब्ररी जाकर हफ्तों समय बिताया और विषय वस्तु को ढूंढने का अथक प्रयास किया। यह संकल्प तो बीते कल का साक्छ है। लेकिन अब मैं एक नए प्रोजेक्ट पर लिखना शुरू किया हूं। इसका नाम ”रिश्तों का डोर , इतनी कमज़ोर कियों” दिया है। इस संकलन में अपने जीवन के खट्टे-मीठे अनुभव होंगे, आपकी बातें होगी आपकी यादें होगी। आपकी अच्छाइयां होंगी, आपके कारनामें होंगे। दुआ करे मेरा यह प्रयास सफल हो और पुस्तक प्रकाशित हो जाए।आप यकीन माने अब में पत्रकारिता लेखनी कर रहा हूं। पूरी तरह संतुष्ट हूं ,मेरा मानना बेहतर जिन्दगी के लिए आत्मसंतोष जरूरी है।
मोहम्मद आफाक आजम
पत्रकार
मान्यता प्राप्त, बिहार सरकार
सूचना एवं जन-सम्पर्क विभाग