यह साल 2020 हैं। बिहार के युवा 1977 के बाद की पीढी के है।
उस पीढी के चार प्रमुख नेता लालू यादव,रामविलास पासवान,नीतीश कुमार और सुशील मोदी अपनी पारी खेल चुके है या खेल रहे हैं।लालू यादव जेल,रामविलास पासवान स्वर्ग में,नीतीश कुमार विधानसभा चुनाव प्रचार में और सुशील मोदी कोरोना पाजिटिव होकर कोरंटाइन में है।
आज बिहार के युवा बेरोजगारी,बेकारी और महामारी से त्रस्त है।उन्हें आशा की किरण दिख रही है युवा तेजस्वी,युवा चिराग,युवा कन्हैया,युवा पुष्पम चौधरी, युवा लव सिंहा और इन जैसे हजारों युवा अब बिहार की राजनीति को दिशा और दशा देने को तैयार हो गये है।
इनमें से अधिकत्तर पॉलिटिकल घराने के वारिस है।लेकिन एक बहुत बङी तादाद उन युवाओं की है जो 2001-2002 से लेकर अब तक नगर निकाय और पंचायत चुनाव जीत/हार कर अपने आप को राजनीति में स्थापित किया है।बिहार के ये युवा नेतृत्व देने में सक्षम है।
एक समय तमाम विरोधी काग्रेसीयो पर हमला करते थें कि यह बूढे और रिटायर राजनेताओं की पार्टी है वही आरोप अब भाजपा पे लग रहा है।आप को पता है प्रधान मंत्री की उम्र कया है ? भाजपा शासित राज्यों के मुख्य मंत्री की उम्र कया है।राष्ट्रीय और प्रदेश अध्यक्ष की उम्र कया है ? कया यह संभव नहीं जिस तरह लालू यादवऔर रामविलास पासवान राजनीतिक परिदृश्य से गायब हो गयें है , चुनाव बाद नीतीश कुमार और सुशील मोदी भी गायब हो जाएंगे।
कयोंकि बिहार के युवाओं को नौकरी चाहिए,रोजगार चाहिए,पलायन नहीं।इस चुनाव में जो यह सब देगा वही राज करेंगा बिहार पर (आफाक आजम, पत्रकार मुजफ्फरपुर से)