साल 1971 में गुलज़ार की ‘मेरे अपने’ से विनोद खन्ना की अभिनय क्षमता को लोगों ने पहचाना. इसी फ़िल्म से उनकी दोस्ती हुई शत्रुघ्न सिन्हा से.
विनोद खन्ना के निधन पर बीबीसी से बात करते हुए शत्रुघ्न ने कहा, “मैं और विनोद फ़िल्मों और राजनीति दोनों में लगभग साथ-साथ आए. मेरे अपने हम दोनों की काफ़ी अच्छी फ़िल्म थी और इसके बाद हम दोनों ही रातोंरात स्टार बन गए. सच्चे मायनों में वो हमेशा मेरे अपने रहे.”
शत्रुघ्न सिन्हा ने आगे कहा, “जिस दिन मैं मंत्री बना उसी दिन विनोद खन्ना भी मंत्री बने. अटल बिहारी की सरकार में मैं केंद्रीय मंत्री बना और वो राज्य मंत्री बने. कई लोगों ने उन्हें भड़काने की कोशिश की कि आपको राज्य मंत्री बनाया और शत्रुघ्न को केंद्रीय बनाया गया है तो उन्होंने कहा कि तो क्या हुआ वो राजनीति में मुझसे सीनियर हैं, हम भी किसी दिन कैबिनेट मंत्री बन जाएंगे.”
शत्रुघ्न बताते हैं कि 80 के दशक में जब विनोद खन्ना अचानक ओशो के आश्रम चले गए तो उनकी छोड़ी हुई दो फिल्मों में उन्होंने काम किया था.
विनोद खन्ना ने अपने शुरुआती सालों में कई फ़िल्मों में विलेन के रोल निभाए.
‘क़ुर्बानी’ और ‘दयावान’ विनोद खन्ना की दो चर्चित फ़िल्में रहीं जिसमें उन्होंने फ़िरोज़ ख़ान के साथ काम किया.
ये एक संयोग ही है कि दोनों सितारों की मौत एक ही तारीख को, एक ही उम्र में और एक ही बीमारी से हुई. बस साल अलग रहा.
फ़िरोज़ ख़ान का निधन 70 साल की उम्र में 27 अप्रैल 2009 को कैंसर की बीमारी से हुआ था. विनोद खन्ना का निधन भी 27 अप्रैल को 70 साल की उम्र में कैंसर की बीमारी की वजह से हुआ.