यूपी: बिना चुनाव लड़े तीन बार से हैं विधायक

546

उत्तर प्रदेश विधानसभा सचिवालय के एक बड़े अधिकारी से जब पिछली विधानसभा के मनोनीत सदस्य के बारे में मैंने फ़ोन पर जानना चाहा तो वो बड़ी ज़ोर से हँसे.

उनका जवाब था, “हमें तो कभी दिखे नहीं, आप को मिलें तो बताइएगा. इस नेक काम के लिए आपको नमन करूंगा.”

मनोनीत सदस्य पीटर फैंथम

ये मनोनीत सदस्य थे पीटर फ़ैंथम. उत्तर प्रदेश विधान सभा में 403 निर्वाचित विधायकों के अलावा एक विधायक को सरकार की सहमति से राज्यपाल मनोनीत करते हैं. ये कहीं से चुनाव नहीं लड़ते और न ही इनका कोई निर्वाचन क्षेत्र होता है. इस तरह से विधानसभा में कुल विधायक 404 हो जाते हैं.

पीटर फ़ैंथम तीन कार्यकाल से विधानसभा में मनोनीत हो रहे हैं और लगातार उनके मनोनयन पर इस बात से कोई फ़र्क नहीं पड़ा कि इस दौरान राज्य में सरकार समाजवादी पार्टी की थी या फिर बहुजन समाज पार्टी की.

पीटर फैंथमइमेज कॉपीरइटSAMIRATMAJ MISHRA
Image captionपीटर फैंथम

‘माफ़िया नहीं अच्छे लोग हैं वो’

पुराने लखनऊ के मॉडल हाउस इलाक़े में पीटर फ़ैंथम का विद्यालय और घर है. सुबह क़रीब नौ बजे विद्यालय पहुंचने पर पीटर फ़ैंथम से मुलाक़ात हुई तो उन्होंने विधानसभा में अपने कई अनुभव शेयर किए.

मसलन, 1997 में विधानसभा में हुई मार-पीट वाली घटना से लेकर ‘माफ़िया’ कहे जाने वाले कुछ विधायकों के साथ अच्छे संबंधों तक. उनका कहना था कि ये लोग ‘माफ़िया’ नहीं बल्कि बहुत अच्छे लोग हैं, इनके बारे में ‘ग़लत’ बातें प्रचारित की जाती हैं.

माता प्रसाद पांडेयइमेज कॉपीरइटSAMIRATMAJ MISHRA
Image captionमाता प्रसाद पांडेय

विधानसभा में कभी नज़रहीं आए पीटर’

लेकिन जब यही बात हमने पिछली विधानसभा के कुछ सदस्यों से पूछी तो ऐसा कोई नहीं मिला जिसने पीटर फ़ैंथम के साथ विधानसभा परिसर में चहल-क़दमी की हो या फिर उनके साथ बैठक की हो. यहां तक कि पूर्व विधानसभा अध्यक्ष माता प्रसाद पांडेय तक ने नहीं.

माता प्रसाद पांडेय विधानसभा अध्यक्ष के तौर पर दो कार्यकाल पूरा कर चुके हैं. वो साफ़तौर पर कहते हैं कि उन्होंने पीटर फ़ैंथम को शायद ही कभी विधानसभा में देखा हो.

वो कहते हैं, “इनसे अपेक्षा की जाती है कि ये सदन में रहेंगे और कम से कम अपने समुदाय के लोगों के हितों के मुद्दों को रखेंगे. लेकिन दस साल के कार्यकाल में मैंने कभी नहीं देखा कि इन्होंने कोई सवाल रखा हो, किसी परिचर्चा में हिस्सा लिया हो, यहां तक कि गवर्नर के अभिभाषण में भी ये शायद ही दिखे हों.”

पीटर फैंथमइमेज कॉपीरइटSAMIRATMAJ MISHRA
Image captionपीटर फैंथम

हालांकि पीटर फ़ैंथम कहते हैं कि उन्होंने जनहित के और एंग्लो-इंडियन समुदाय के हितों से जुड़े कई मुद्दे सदन में उठाए हैं.

पीटर कहते हैं, “विधायक निधि से हमने कई स्कूलों में अच्छे काम किए हैं. एंग्लो-इंडियन समुदाय ज़्यादातर शिक्षा में लगा हुआ है और इस दिशा में हमने बतौर विधायक कई काम किए हैं. कई गांवों में भी हमने विधायक निधि से पैसा दिया है.”

दरअसल, संविधान के अनुच्छेद 333 में राज्यों की विधानसभाओं में एंग्लो इंडियन समुदाय के एक सदस्य को मनोनीत करने का प्रावधान किया गया है. राज्यपाल उस स्थिति में ऐसा कर सकते हैं जबकि उन्हें ये लगे कि इस समुदाय का सम्यक प्रतिनिधित्व विधान सभा में नहीं है.

पीटर फैंथम का ऑफिसइमेज कॉपीरइटSAMIRATMAJ MISHRA

मनोनीत सदस्यों को क्या महत्व है?

जानकारों के मुताबिक़ ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि आज़ादी के बाद अंग्रेज़ तो भारत से चले गए लेकिन अंग्रेज़ पुरुषों और भारतीय महिलाओं की संतानें ज़्यादातर यहीं रह गईं थीं जिन्हें एंग्लो-इंडियन कहा जाता है.

चूंकि इस समुदाय के लोगों की देश भर में जनसंख्या महज़ पांच लाख के आस-पास थी और इसके आधार पर इनका कहीं से निर्वाचित होना संभव नहीं था, इसलिए इनके मनोनयन का प्रावधान किया गया ताकि इस समुदाय का प्रतिनिधित्व क़ायम रहे.

लेकिन लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार योगेश मिश्र कहते हैं, “न तो मनोनीत सदस्य सदन में अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं और न ही उनका कोई महत्व है, सिर्फ़ प्रतीकात्मक तौर पर आज़ादी के साठ साल बाद भी ग़ुलामी की एक परंपरा क़ायम है.”

ये कैसा योगी आदित्यनाथ का क़ानून राज?

क्या ख़त्म हो सकती है ये व्यवस्था?

संविधानविद सुभाष कश्यप कहते हैं, ” ये राज्यों के ऊपर है, किसी तरह की बाध्यता नहीं है. राज्यपाल को यदि लगता है कि एंग्लो इंडियंस का प्रतिनिधित्व पर्याप्त नहीं है, तभी मनोनीत कर सकते हैं. राज्य यदि चाहें तो प्रस्ताव पारित करके व्यवस्था को ख़त्म भी कर सकते हैं क्योंकि ये आरक्षण है और इसे अनंत काल तक के लिए नहीं दिया जा सकता.”

तीन तलाक़ द्रौपदी के चीरहरण जैसा: योगी आदित्यनाथ

नज़रिया: कैसा रहा यूपी में योगी आदित्यनाथ सरकार का एक महीना ?

बहरहाल, जानकारों का कहना है कि ये संवैधानिक व्यवस्था है और जब तक संविधान इसकी इजाज़त देगा तब तक एंग्लो इंडियन सदस्य विधान सभाओं में मनोनीत होंगे.

लेकिन कई बार आरोप ये भी लगते हैं कि मनोनीत विधायक सदन में उपस्थित नहीं होते हैं, बहस-मुबाहिसे में किसी स्तर पर उनकी भूमिका नहीं होती है और सिर्फ़ प्रतीकात्मक रूप में इस व्यवस्था को क़ायम रखा गया है.

जहां तक पीटर फ़ैंथम का सवाल है तो वो तीन बार से विधायक मनोनीत हो रहे हैं. जब मैंने उनसे सवाल किया कि क्या इसके लिए उनके समुदाय का कोई और व्यक्ति राजनीतिक दलों को नहीं मिलता है, तो उन्होंने हँसकर जवाब दिया, “मिलता होगा, लेकिन शायद लखनऊ में होने का फ़ायदा मिलता हो.”