पटना: मुसलमान बिरादरी में भाईचारा और सामूहिकता आम बात है. लेकिन मुस्लिम समुदाय के संगठनों द्वारा हिन्दुओं के जीवन में बदलाव लाने की मिसालें निस्संदेह बदले हुए समाज में सांप्रदायिक सद्भाव को मजूबती प्रदान करती है. ऐसी ही एक मिसाल बिहार के पटना में देखने को मिली, जहां मुस्लिम को-ऑपरेटिव क्रेडिट सोसायटी ब्याजमुक्त कर्ज देकर हजारों हिंदू परिवारों के जीवन में बदलाव लेकर आई है.
कमला देवी, पंकज कुमार, गीता देवी और संजय सिंह उन्हीं परिवारों से आते हैं जिनको अलखर को-ऑपरेटिव क्रेडिट सोसायटी लिमिटेड ने रोजी-रोटी के लिए अपना कारोबार खड़ा करने के लिए ब्याजमुक्त कर्ज दिया. करीब 9,000 हिंदुओं को इस सोसायटी ने कारोबार खड़ा करने के लिए कर्ज दिया है. इनमें में ज्यादातर लोग वेंडर, छोटे कारोबारी, पटरियों पर दुकान चलाने वाले, सीमांत किसान और महिलाएं हैं.
पटना के मिरशिकर टोली में दुकान चलाने वाली कमला ने कहा, ‘मैं सड़क किनारे पटरियों पर आलू और प्याज बेचती थी. इसके लिए 2,000 से 5,000 रुपये साहूकारों से सूद पर कर्ज लेती थी और उनके कर्ज तले हमेशा दबे रहती थी. लेकिन कुछ साल पहले जब मुझे किसी ने कहा कि अल खर सोसायटी बिना ब्याज के कर्ज देती है तो हैरान हो गई.’
कमला के पास अब इतने पैसे हैं कि वह अपने दो बेटों की पढ़ाई की व्यवस्था खुद कर पा रही है. उसका एक बेटा इंजीनिरिंग कॉलेज में पढ़ता है और दूसरा बीएड कर रहा है. इस्लामिक मूल्यों का पालन करते करीब 20,000 लोगों को 50 करोड़ रुपये का कर्ज दिया है. इनमें ज्यादातर वे लोग शामिल हैं जो रोजी-रोटी चलाने के लिए संघर्ष कर रहे थे.
सोसायटी के लाभार्थियों में तकरीबन 50 फीसदी हिन्दू हैं. जाहिर है कि अलखर धार्मिक भेदभाव से ऊपर उठकर जरूरतमंदों की मदद करता है.
कमला की तरह गीता देवी ने भी सड़क किनारे सब्जियों की अपनी छोटी दुकान की जगह अब बड़ी सी दुकान खोल ली है. उसने अपने बेटे को भी सब्जी की एक दुकान खुलवा दी है.
गीता ने बताया, ‘अल खर सोसायटी के संपर्क में आने के बाद मेरी जिंदगी बदल गई. इसने हमें सम्मान की जिंदगी जीने में मदद की. हमारे जैसे गरीब लोगों के लिए ब्याजमुक्त कर्ज भगवान का वरदान ही है. यहां बैंकों की तरह कर्ज मिलने की कोई अनिश्चिता नहीं होती है.’
मंजू देवी ने पिछले पांच साल में अपने बच्चों की सालाना फीस भरने के लिए अलखर से 20,000 रुपये कर्ज लिया. उसके पति सड़क किनारे दुकान चलाते हैं.
कमला ने कहा कि वह अपनी कमाई में से कुछ पैसे किस्त के रूप में अल खर सोसायटी को भुगतान करती है जिससे कर्ज उतर जाए.
संजय सिंह ने कहा कि छोटी दुकान करने वालों को कर्ज देने में बैंकों की कोई दिलचस्पी नहीं होती है. उन्होंने कहा, ‘बैंक कर्ज पर ब्याज तो लेता ही है. साथ ही, कर्ज लेने के लिए इतने सारे दस्तावेज भरने की जरूरत होती है कि गरीब आदमी परेशान हो जाता है.’ संजय के पास कपड़े की छोटी सी दुकान है, जो उनकी पत्नी चलाती है और वह साइकिल पर घूम-घूम कर कपड़े बेचते हैं.
अलखर सोसायटी से करीब एक दशक से जुड़े अवकाश प्राप्त बैंक अधिकारी शमीम रिजवी ने बताया, ‘ब्याजमुक्त कर्ज भले ही मुस्लिम परंपरा हो क्योंकि इस्लाम में ब्याज को अनुचित माना जाता है. मगर यह (अलखर) न सिर्फ मुस्लिम बल्कि सबको ब्याजमुक्त कर्ज देता है.’
अलखर सोसायटी के प्रबंध निदेशक नैयर फातमी ने बताया कि ब्याजमुक्त कर्ज की आमपसंदी बढ़ रही है.
उन्होंने कहा, ‘जिनकी पहुंच बैंक तक नहीं हो पाती है उनके लिए पांच से 10,000 रुपये की छोटी रकम भी काफी अहम होती है. ब्याजमुक्त कर्ज पाने वाले लोगों में करीब 50 फीसदी हिंदू हैं. ज्यादातर लोग अपनी रोजी-रोटी चलाने के लिए कर्ज लेते हैं जिससे उनका सशक्तीकरण हो रहा है.’
अलखर सोसायटी ब्याजमुक्त कर्ज प्रदान करने वाली एक सफल माइक्रोफायनेंस संस्था की मिसाल है, जो हजारों लोगों के चेहरों पर मुस्कान लेकर आई है. सोसायटी ने छोटी सी निधि से काम शुरू किया था और इसके पास शुरुआत में पटना स्थित एक छोटे से दफ्तर में सिर्फ दो कर्मचारी थे. मगर आज संस्था में 100 कर्मचारी काम करते हैं.
इन कर्मचारियों के वेतन, दफ्तर का किराया और अन्य खर्च के लिए यह कर्ज लेने वालों से नाममात्र का सेवा प्रभार लेता है. मुस्लिम समुदाय के कुछ पढ़े-लिखे लोगों के साथ वर्ष 2000 के आरंभ में इस संगठन की नींव पड़ी थी. संगठन का मकसद धर्म, जाति और वर्ग की परवाह किए बगैर जरूरतमंद लोगों की आर्थिक मदद करना था.