रिश्तों के जंगल में एक कंकाल की व्यथा !

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सरसरी निगाह से देखें तो मुंबई के लोखंडवाला इलाके के एक पॉश कॉलोनी स्थित एक फ्लैट से एक बूढ़ी महिला आशा साहनी का कंकाल मिलने की घटना बहुत आम लगेगी, लेकिन अगर घटना की तह में जाएं महसूस होगा कि जो मिला है वह एक बूढ़ी औरत का कंकाल नहीं, मरते हुए पारिवारिक रिश्तों और छीजती मानवीय संवेदनाओं की स्तब्ध कर देने वाली दास्तान है। आशा साहनी कई कमरों के अपने विशाल फ्लैट में चार साल पहले पति की मौत के बाद अकेली रह रही थी। उसका इंजिनियर बेटा अपनी पत्नी और बच्चों के साथ अमेरिका में सेटल कर गया है। शुरूआती कुछ सालों तक वह अकेली मां से मिलने कभी कभार आता रहा, फिर यह सिलसिला बहुत कम हो गया। पिछले कुछ अरसे से बेटे ने फोन पर भी मां का हालचाल लेना बंद कर दिया था। आखिरी बार उसकी मां से करीब डेढ़ साल पहले बात हुई थी। मां ने तब बेटे से गिडगिडा कर कहा था कि अब उससे अकेली नहीं रहा जाता। या तो वह मुंबई लौट आए या आकर ख़ुद उसे अमेरिका ले जाय। यह मुमकिन नहीं हो तो वह सूने घर के बज़ाय किसी वृद्धाश्रम में रहना पसंद करेगी। उसके बाद बेटे ने फोन करना भी बंद कर दिया। पिछले रविवार को बरसों बाद बेटा जब काम के सिलसिले में मुंबई आया तो अंदर से बंद घर के बिस्तर पर उसे मां नहीं, मां का कंकाल मिला। एक मां की अंतहीन प्रतीक्षा की दारुण तस्वीर ! शायद अकेलेपन, अवसाद भूख और कमजोरी की हालत में यह मौत हुई। मां-बेटे के दुनिया के सबसे अनमोल और सबसे आत्मीय कहे जाने वाले रिश्ते के कंकाल में बदल जाने की यह घटना अपने पीछे ढेर सारे सवाल छोड़ गई है। हम सबके लिए यह ठहर कर सोचने का वक़्त है। हम सभ्यता के किस मुक़ाम पर आ गए हैं जहां सामाजिक ही नहीं, पारिवारिक रिश्तों में भी प्रेम, करुणा और संवेदनाओं के लिए जगह निरंतर कम हो रही है ? क्या रही होगी बेटे द्वारा अपनी अकेली और असहाय मां से इस क़दर फ़ासले बना लेने की वज़ह ? बेटे की बेपनाह महत्वाकांक्षा ? उसके एकल परिवार की असीमित आज़ादी की इच्छा ? क्या बेटे की महत्वाकांक्षा और बहू की आज़ादी के साथ घर में मां की ख़ुशी के लिए एक कोना सुरक्षित नहीं किया जा सकता था ? उस एक मां के लिए जिसने अपने जीवन का हर संभव स्पेस बिना मांगे अपने बच्चों को दे दिया हो !

इसके पहले कि रिश्तों का यह कंकाल हमारे अपने घरों तक पहुंच जायं, सोचिएगा ज़रूर !

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