रिसर्च : फोन की बैटरी तय कर रही इंसान का मूड; फुल चार्ज होने पर खुशी मिलती है, 50% हो तो तनाव

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file photo
  • लंदन यूनिवर्सिटी के मार्केटिंग रिसर्चर थॉमस रॉबिन्सन और फिनलैंड की अल्टो यूनिवर्सिटी ने मिलकर किया शोध
  • ऐसे लोग जिनके फोन की बैटरी हमेशा चार्ज रहती है, वे अपनी ऊर्जा का उपयोग लंबे समय तक करते हैं और ज्यादा ऑर्गनाइज्ड होते हैं

शोध में सामने आया कि जिनका फोन फुल चार्ज होता है वे सकारात्मक महसूस करते हैं और ये सोचते हैं कि फुल बैटरी के साथ कहीं भी जा सकते हैं। वहीं आधी और इससे कम बैटरी वालों में नकारात्मकता बढ़ाती है।  प्रतिभागियों से पूछा गया कि दिन ढलने के साथ उन्हें अपने डिवाइस का बैटरी आइकन देखने में कैसा लगता है। उन्होंने कहा, फुल बैटरी देखना सुखद है और 50 प्रतिशत बैटरी देखना चिंता जनक था। वहीं 30 प्रतिशत तक बैटरी पहुंचे पर ये चिंता और भी गहरी हो जाती है।

शोधकर्ताओं का तर्क है कि यह उपकरणों पर बढ़ती हमारी निर्भरता का परिणाम है। 

फोन की बैटरी कई चीजों पर असर डालती है। इससे फोन मैप, डिजिटल वॉलेट, डायरी, एंटरटेनमेंट भी प्रभावित होता है। डॉ. रॉबिन्सन कहते हैं- रिसर्च में हमने पाया है कि जिन लोगों की फोन बैटरी हमेशा फुल रहती है या जो हमेशा उस पर नजर बनाए रहते हैं वो लोग उच्च स्तर के प्रभार को बनाए रखने के लिए बेहतर कदम उठाते हैं।

इसके विपरीत, जो बैटरी चार्ज नहीं रखते हैं वे अव्यवस्थित और किसी भी काम को सही ढंग करने में पीछे रहते हैं।

जिनके फोन में बैटरी कम होती है वे दूसरों पर निर्भर रहते हैं, इनका सामाजिक दायरा भी कम रहता है। जो लोग फोन की बैटरी को प्रभावी ढंग से मैनेज नहीं कर पाते हैं वे अपने जीवन को मैनेज करने में भी दिक्कतों का सामना करते हैं।

तकनीक ने जिंदगी को कंट्रोल किया है और फोन की बैटरी ने इंसान के मूड को। लोगों का दिमाग फोन की बैटरी के मुताबिक ही काम करता है। लंदन यूनिवर्सिटी के मार्केटिंग रिसर्चर थॉमस रॉबिन्सन और फिनलैंड की अल्टो यूनिवर्सिटी की रिसर्च में यह बात सामने आई है। शोध के मुताबिक, जिन लोगों की फोन की बैटरी हमेशा चार्ज रहती है वो अपनी ऊर्जा का उपयोग लंबे वक्त तक करते हैं। ऐसे लोग ज्यादा ऑर्गनाज्ड होते हैं। वहीं, जो लोग अपने फोन की बैटरी पर ध्यान नहीं देते या अक्सर उनके फोन की बैटरी कम रहती है, वे जीवन में अव्यवस्थित रहते हैं।

बैटरी के मुताबिक तय करते हैं अपना ट्रैवलिंग का समय

  1. शोधकर्ताओं ने लंदन के 23-57 साल के 22 ऐसे लोगों पर शोध किया जो रोजाना कहीं जाने में 60-180 मिनट का वक्त लेते हैं। अगर ये अपनी मंजिल से 10 किलोमीटर दूर हैं या रास्ते में 10 स्टॉपेज हैं, तो ये उसकी तुलना बैटरी से करते हैं। जैसे फोन में बैटरी 50% है तो कितना समय में गंतव्य पहुंचने और बैटरी को फुल करने में कितना समय लगेगा। बैटरी का घटता पावर उन्हें समय से फोन चार्ज के लिए प्रेरित करती है। मसलन कम होती फोन की बैटरी को चार्ज करने के लिए लोग जल्द से जल्द ऐसी जगह पर पहुंचना पसंद करते हैं जहां वो अपना फोन चार्ज कर सकें।
  2. शोध में सामने आया कि जिनका फोन फुल चार्ज होता है वे सकारात्मक महसूस करते हैं और ये सोचते हैं कि फुल बैटरी के साथ कहीं भी जा सकते हैं। वहीं आधी और इससे कम बैटरी वालों में नकारात्मकता बढ़ाती है। प्रतिभागियों से पूछा गया कि दिन ढलने के साथ उन्हें अपने डिवाइस का बैटरी आइकन देखने में कैसा लगता है। उन्होंने कहा, फुल बैटरी देखना सुखद है और 50 प्रतिशत बैटरी देखना चिंता जनक था। वहीं 30 प्रतिशत तक बैटरी पहुंचे पर ये चिंता और भी गहरी हो जाती है।
    शोधकर्ताओं का तर्क है कि यह उपकरणों पर बढ़ती हमारी निर्भरता का परिणाम है। फोन की बैटरी कई चीजों पर असर डालती है। इससे फोन मैप, डिजिटल वॉलेट, डायरी, एंटरटेनमेंट भी प्रभावित होता है। डॉ. रॉबिन्सन कहते हैं- रिसर्च में हमने पाया है कि जिन लोगों की फोन बैटरी हमेशा फुल रहती है या जो हमेशा उस पर नजर बनाए रहते हैं, वे लोग उच्च स्तर के प्रभार को बनाए रखने के लिए बेहतर कदम उठाते हैं।इसके विपरीत, जो बैटरी चार्ज नहीं रखते हैं वे अव्यवस्थित और किसी भी काम को सही ढंग करने में पीछे रहते हैं।
  3. शोध के मुताबिक, जिनके फोन में बैटरी कम होती है, वे दूसरों पर निर्भर रहते हैं, इनका सामाजिक दायरा भी कम रहता है। जो लोग फोन की बैटरी को प्रभावी ढंग से मैनेज नहीं कर पाते और अपने जीवन का प्रबंधन करने में भी दिक्कतों का सामना करते हैं।