पटना में क्या करते। लाकडाउन होने से 22 मार्च से ही काम बंद हो गया। चार दिनों तक वहां किसी तरह ठहरे लेकिन जब खाने के लाले पड़ने लगे तो घर जाने के सिवा कोई विकल्प नहीं बचा। गुरुवार को पौने बारह बजे पाटलिपुत्र से पैदल ही चले और इसी तरह रात-दिन चलते हुए मधेपुरा पहुंचने की कोशिश करेंगे। अब तो भगवान का ही सहारा है।
यह आपबीती मधेपुरा जिले के मजदूरों ने सोनपुर में राह चलते -चलते सुनायी। सभी के चेहरे उदास और खाली हाथ घर लौटने की पीड़ा। आगे-आगे चल रहे युवक रंजीत सहनी बताता है, वह पटना में राजमिस्त्री का काम करता था। अच्छे-अच्छे घर बनाए लेकिन कोरोना को लेकर जब 22 मार्च से लाकडाउन शुरू हुआ तो ठेकेदार ने हाथ खड़े कर दिए। किसी तरह चार दिन ठहरे। आवागमन के सारे साधन बंद । खाने के लाले पड़ गए। जहां खाना खाते थे, वह होटल भी बंद। खुद से बनाकर खाने के लिए पास में पैसे नहीं। बाजार में निकलना भी बंद। ऐसे में घर की याद आयी कि अगर वहां किसी तरह पहुंच गए तो दो रोटी जरूर मिल जाएगी। अपनों के बीच भूख की पीड़ा कम हो जाएगी।
राज मिस्त्री का काम करनेवाले प्रदीप की भी वही पीड़ा। वह भी मजदूरों की टोली में शामिल होकर घर लौट रहा है। पटना से मधेपुरा की दूरी तीन सौ किलोमीटर से भी अधिक है। फिर भी जाना है। सबके पांच आगे बढ़ रहे थे। पूंजी के रूप में कंधे से लटकती सिर्फ एक-एक झोली। वे सभी सोनपुर में लगभग साढ़े तीन बजे पहुंचे। गांधी चौक के पास सोनपुर के एसडीपीओ अतनु दत्ता की नजर उनपर पड़ी तो गाड़ी से उतरकर उनके बारे में पूरी जानकारी ली और तब आगे बढ़ने दिया।
भागलपुर से हरौली पहुंचे मजदूरों को सदर अस्पताल लाया
भागलपुर में काम-धाम बंद होने के बाद किसी तरह एक वाहन से गुरुवार को हाजीपुर सदर थाने के हरौली पहुंचे लगभग तीस मजदूरों को पुलिस ने सदर अस्पताल पहुंचाया। वे रास्ते की मुश्किलों को झेलते हुए किसी तरह अपने गांव के पास पहुंचे ही थे कि पुलिस पहुंच गयी और उन सभी को सदर अस्पताल में कोरोना की जांच के लिए लाया गया। सभी भागलपुर में मजदूरी किया करते थे। अस्पताल में डाक्टरों ने उनकी जांच शुरू कर दी।