औरतों ने भी हक़ और इंसाफ के लिए उठाईं तलवारें

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सय्यद शहरोज़ क़मर

दुनिया के इतिहास में दर्ज कर्बला के मैदान में आज से करीब 1400 साल पहले लड़ी गई ऐसी जंग है, जिसने इस्लामी समाज को बदल कर रख दिया। यह जंग सिर्फ और सिर्फ सत्य की खातिर लड़ी गई। जिसमें पैगंबर-ए-इस्लाम हजरत मोहम्मद सल्ल. के प्यारे नवासे इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के साथ 72 लोगों को शहादत नसीब हुई थी। तब की औरतों ने भी हक और इंसाफ के लिए तलवारें उठाई थीं, इसकी चर्चा कम ही होती है। उन औरतों में कुछ शहीद हुईं, तो कुछ को आजीवन शहादत का दर्जा न हासिल करपाने का का मलाल रहा।
कर्बला की वीर महिलाओं में से एक वहब की मां थीं। वहब यजीदी सेना से लड़ते हुए जब शहीद हो गए, तो वह उनके शव पर आईं। बेटे के चेहरे से खून साफ़ करती रहीं और कहती रहीं कि अल्लाह का लाख एहसान जिसने तुम्हारी शहादत कुबूल की। मुझे फख्र है। उसके बाद यह मां तंबू के खंभे की लकड़ी को लेकर शत्रु सैनिकों पर टूट पड़ीं और शहीद हो गईं। उन्हें कर्बला की पहली शहीद महिला होने का गौरव हासिल हुआ। अम्र बिन जुनादह की मां को भी इतिहास बेहद सम्मान के साथ याद रखता है। वो खुदा की सच्ची पैरोकार थीं। उनके बेटे अम्र भी कर्बला की जंग में आशूरा के दिन शहीद हुए। दुश्मनों ने उनका सिर उनकी मां के पास भेजा। कैसा मंजर, रूह कांप जाती है। मां ने जब अपने लाडले का सिर देखा। उन्होंने सिर को तुरंत फेंक दिया और कहा कि मैंने जो चीज़ अल्लाह के रास्ते में न्योछावर कर दी है, उसे वापस नहीं लूंगी। हजऱत अली और हजऱत फ़ातिमा की नूर-ए-नजर हजऱते ज़ैनब हैं। साहस और स्वाभिमान की बुलंदी यहां आकर सर झुकाती है। कर्बला के इतिहास में दर्ज जांबाज महिलाओं की यह मुखिया थीं। कर्बला के दर्दनाक हादसे और अपने प्रियजनों की शहादत को उन्होंने अल्लाह तरफी इम्तहान माना। सुबह से दोपहर तक जिसके भाई, भतीजे और बेटे शहीद हो चुके हों, वह कर्बला की साहसी महिला शहीद हो चुके इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के पास खड़ी हुई। दृढ़ संकल्प और भावना से ओतप्रोत होकर कहती है कि या अल्लाह! पैग़म्बरे इस्लाम के इन लाडलों की क़ुरबानी को मंजूर कर।
इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत के बाद कर्बला में ही लूट-खसोट मच गई। अगली सुबह दु:खी बच्चों और महिलाओं को बंदी बना लिया गया। जब शत्रुओं ने बंदी कारवां को कर्बला से कूफ़ा ले जाना चाहा, तो उन्होंने महिलाओं को शहीदों के शवों के पास से गुज़ारा। नाजुक कांधों पर गमों का बड़ा पहाड़ संभाले ये महिलाएं अपने प्रियजनों के शवों के पास पहुंची तो त्रासदी ने इतिहास की इस मर्माहत को चुपके से आंसुओं में कैद कर लिया। ज़ैनब ने अपने भाई की मय्यत के पास कहा, ‘आसमान हिल गया।’ बंदी बनाई गई इन जांबाज औरतों में से कइयों ने अपनी रूदाद सुनाई। ज़ैनब के अतिरिक्त इमाम हुसैन की लाडली हजऱत फ़ातिमा और इमाम हुसैन की दूसरी बहन उम्मे कुलसूम के अल्फाजों ने कूफ़े के बाज़ार में हलचल मचा दी। लोग दहाड़े मार कर रोने लगे। इतिहास में आया है कि कूफ़े की महिलाओं ने जब उनकी बात सुनी, तो उन्होंने अपने सिरों पर मिट्टी डाली और अपने मुंह पर तमांचे मारे। या अल्लाह! हमें भी उठा ले! इन महिलाओं के पास महज भावनाओं का प्रवाह नहीं था। उनके पास तर्क और मेधा का मौजूं नश्तर भी था। इस नश्तर ने न केवल चुभोया, बल्कि यजीदी लश्कर के भ्रष्ट और मिथ्याचार के चेहरे से नक़ाब उलट दी। इन महिलाओं ने इस्लामी जगत के तीन महत्वपूर्ण क्षेत्रों कूफ़ा, सीरिया और मदीने में लोगों को जागरूक बनाने का प्रयास किया।

  • लेखक वरिस्ठ पत्रकार है

(सय्यद शहरोज कमर के फ़ेस बुक वाल से आभर)