नई दिल्लीः बाबरी मस्जिद और राम जन्मभूमी विवाद मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में चल रही है। बीते सोमवार को इस मामले का सुनवाई का 23 वां दिन था। इसके बाद अब एक बार फिर से समझौते की पहल शुरू करने की कोशिश है। अब इस मामले में हिंदू और मुस्लिम दोनों पक्षों की तरफ से पत्र लिखकर अपील की गई है कि वे अदालत के बाहर बातचीत के द्वारा इस विवाद को सुलझाना चाहते हैं।
जानकारी के लिये बता दें कि कि कुछ महीने पहले सुप्रीम कोर्ट ने समझौता कराने की पहल भी की थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट द्वारा कराई जा रही समझौते की यह कोशिश 155 दिनों तक चली, और असफल रही। अब मामले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है।
क्या है पूरा मामला
प्राप्त जानकारी के अनुसार बाबरी मस्जिद और राम जन्मभूमी मामले के पक्षकार एक बार फिर से कोर्ट के बाहर बातचीत के द्वारा इस विवाद को सुलझाना चाहते हैं। बता दें कि विवाद अयोध्या की 2.77 एकड़ जमीन के मालिकाना हक को लेकर है।
सुन्नी वक्फ बोर्ड ने साल 1961 में विवादित जमीन के मालिकाना हक़ के लिए मुकदमा दायर किया था। बोर्ड ने अदालत द्वारा नियुक्त मध्यस्थता पैनल को एक पत्र लिखकर दोबारा बातचीत द्वारा इस विवाद का हल निकालने की मांग की है। इसी तरह की बात वाला पत्र निर्मोही अखाड़ा द्वारा भी उच्चतम न्यायालय को लिखा गया है। बता दें कि निर्मोही अखाड़ा अयोध्या के तीन रामआनंदी अखाड़ों में से एक है जो हनुमान गढ़ी मंदिर का संचालन और देखरेख करता है।
पत्र लिखकर बात चीत से इस मामले का हल निकालने वाले दोनों ओर के पक्षकारों का कहना है कि वे जमीयत उलमा-ए-हिन्द और राम जन्मभूमि न्यास की वजह से बात बिगड़ने से पहले तक दोनों पक्ष लगभग अखिरी निर्णय पर आ गए थे लेकिन दो पक्षकारों के हार्ड स्टैंड के कारण यह कोशिश रुक गई थी।
क्या कहती है जमीयत उलमा-ए-हिन्द
फिर से शुरू हुई समझौते की मांग पर जमीयत उलमा-ए-हिन्द के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने कोर्ट के बाहर इस मामले का हल निकालने से साफ इनकार कर दिया है। उन्होंने कहा कि इससे पहले भी समझौता कराने की कोशिश होती रहीं हैं, लेकिन उनका कोई नतीजा सामने नहीं आया। मौलाना मदनी ने कहा कि अब इस मामले का फैसला सुप्रीम कोर्ट को ही करने दिया जाये, क्योंकि समझौता से इस विवाद का समाधान नहीं हो पाया है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट बाबरी मस्जिद को लेकर जो फैसला करेगा वह हमें स्वीकर होगा।