जहानाबाद की घटना: क्या मानवाधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे लोगों और संगठनों के लिए चिन्ता का समय है?

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मो.अबुल फरह

मूर्ति विसर्जन के समय से उपजे उन्माद में सबकुछ लुटा बैठने वालों की दास्तान में मुसलमान।
मालूम हो की यह घटना संघियों के द्वारा रचित और क्रियान्वित किया गया घटना है।
जहानाबाद वोह शहर है जिसे अमन ओ शान्ति प्रिय लोगों ने निर्माण किया और विसर्जन से पूर्व तक सभी समुदाय एक दूसरे के साथ बंधुत्व कुटुम्बकम को आधार मान कर जीते रहे और आयोजनों में सम्मिलित रहे।ऐसे जगह दंगे का होना प्रश्न खड़ा करता है?
यह भी मालूम हो की विसर्जन के दिन भी जुलूस में शामिल लोगों के लिए चाय का स्टाल भी मुस्लिम समाज के लोग लगा रखे थे।दंगे की प्लाट के मुताबिक संघी लोगों ने उत्पात मचाना शुरू किया।लूट पाट की छूट मानों शासन ने उन्हें दे रखी हो तभी तो टेम्पू और ट्रक में माल लूट कर ले भागने और दुकानों को आग लगाने की बातें सब की ज़ुबान पर है।
उत्पाति हथियारों डंडों के साथ घरों और गलियों में घुसते रहे,घूमते रहे कोई बोलने वाला नहीं।दंगाइयों ने ही फ़िल्में बनायीं और उसको वायरल किया ऐसा लोग बताते हैं।लेकिन उन्होंने अपने गुंडई या बलवा का एक भी वीडियो मुमकिन हो न बनाया और न वायरल किया।दंगा ऐसे समय भड़काया गया जब अधिकांश लोग सो रहे थे या अपनी नित्य क्रिया में लगे थे।
इन्साफ यहाँ तटस्थ है जब घरों में और गलियों में कोई उत्पात मचाए तो उसे ईंटें पत्थर मार कर भगाना कब दोष में शामिल हो गया।
श्री गुप्तेश्वर पाण्डेय और आमिर सुब्हानी के संयुक्त नेतृत्व ने जहानाबाद को कुछ सांस लेने का मौक़ा दिया है।लेकिन FIR का आधार कमजोर करना ये निष्पक्ष शासन और जवाबदेह हुक्मरानी को संदेह के घेरे में जरूर खड़ा करता है.।कमज़ोर FIR इस बात की ओर इंगित करता है कि शासन मुसलमानों के नुक़सान का कोई नोटिस लेने के मूड में नहीं है उलटे उन्हें परेशान करने की नीयत से ऐसे लोगों को काण्ड में नामित किया गया जो दंगों से पूर्व ही पुलिस गिरफ्त और जेलों में बन्द है या अभी जो बीमारी के बिस्तर पर सोएं हैं उन्हें केस में नामित किया गया।उन दुकानदारों को भी नामित किया गया जिनकी दुकानें लूटी गयीं और जलायीं गयीं उत्पातियों के ज़रिये उन्हें नामित किया गया।नामित उन बुज़ुर्गों को भी किया गया जिन्हें चलने और पत्थर फेंकने भी सक्कत नहीं थी।उसी तरह वैसे स्टूडेंट्स जिनका वक़्त उनके घरों को नहीं मिल पाता वोह दंगों के लिए कब बैठे थे।
मुमकिन हो दंगायी सत्ता के सीने पर बैठ कर एन केन प्रकारेण दंगों के केसों से बच जाएँ लेकिन ये मासूम मुसलमानों का क्या होगा जिनकी गुनाहें इस पुरे प्रकरण में कहीं से भी कुछ नहीं हैं।
सत्ता चाहती है कि अमन राज्य के हिस्सों में बिराजमान रहे तो उसे तय करना होगा निर्दोष केस की बलि वेदी पर न चढ़ें और दोषी सत्ता सीन भेड़ियों के कारण बच न सकें।
DGP साहब आपके जीवन के धरोहरों की परीक्षा जहानाबाद कांड में निहित है।आप अपने जीवित मूल्यों को अपने सेवा से विदाई तक बचा पाए तो यही कमायी होगी।आप से अमन पसन्द लोगों को काफी उम्मीदें हैं।आपके हौसलों को हमलोगों ने हमेशा सैलूट किया अब विश्वास आपके सामने खड़ा?कहीं निर्दोषों की दुहायी में दोषी न बच जाएँ।

(अबुल फरह, बहुजन समाज पार्टी से गया विधाानसभ के प्रत्याशी रहे हैं और अन्जुमन इराक़ी के संयोजक है)