मैंने निर्दलीय चुनाव लड़ने का निर्णय क्यूँ किया? विकाश कुमार!

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जब राजनीति सब तय करने लगी है तो आइए हम सभी मिलकर अपनी राजनीति तय करें |

हम सब यह जानते है कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, जो मनुष्य समाज में रहना पसंद नहीं करता वह या तो देवता है या दानव | प्रकृति ने हमें जो भी दिया है उसमें कोई चीज बेकार नहीं है परन्तु असल सवाल उसके सदुपयोग का है! वर्तमान समय में नेताओं की नीयत तथा नीति ने प्रकृति के बैलेंस को भी बिगाड़ दिया है! चंद्रगुप्त, चाणक्य एवं अशोक की धरती बिहार, आज मानव विकास सूचकांक के रसातल पर है जिसके जिम्मेवार हमारे राजनेता और हमारी राजनीति ही है! यह राजनैतिक विफलता ही है जो हमने अपने मानवसंसाधन का अभी तक सदुपयोग नहीं किया है! क्या कुछ नहीं है हमारे पास?, हम अगर चाहें तो हर वो चीज़ अपने ही समाज में बना सकते हैं, जिनकी हमें जीविकोपार्जन के लिए आवश्यकता है! हमें किसी भी दूसरे राज्यों में जाने की कोई आवश्यकता नहीं! अपने राज्य की राजधानी के इतने क़रीब होते हुए भी हमारा क्या हाल है इससे सभी लोग भली-भांति वाकिफ़ हैं! हमारी समझ से, राजनीति से हमारी दूरी अशिक्षा नहीं, अपितु अज्ञानता के कारण है तथा ज्ञान के लिए किताब के साथ-साथ समाज को भी पढ़ने की आवश्यकता है!

 दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि राजनीति एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके माध्यम से समस्याओं एवं विवादों का सामुहिक हित में समाधान ढूंढा जाता है| राजनीतिक गतिविधि में, मनुष्य एक असीम और अथाह समुद्र में जल यात्रा करता है, जहाँ आश्रय के लिए न तो बंदरगाह है और न ही रुकने के फर्श लंगर, ना ही प्रस्थान बिंदू है और ना ही गंतव्य स्थान; हर हाल में और हर समस्याओं से सामंजस्य बनाते हुए सतत तैरते जाना है और जनहित में अपने कर्तव्यनिष्ठा का पालन करते रहना है!

पिछले 17 वर्षों से हमने समाज में उत्पन्न समस्याओं को यथासंभव दूर करने का सतत प्रयत्न किया है! कभी किसी की बेटी की शादी कराकर, कभी किसी को आर्थिक मदद कर, कभी इलाज़ कराकर, तो कभी किसी के श्राद्ध में 4-5 सौ लोगों के खाने की व्यवस्था कर इत्यादि! 2016 में जब हमने ताजपुर टिल्हारि मोड़ पर यज्ञ कराया तो कुछ लोग सवाल भी उठाए! असल में, आज़ तक हमने वही किया है जो हमारे मन को अच्छा लगता है! हमने सारे कार्य किसी और के लिए नहीं बल्कि अपने मन की संतुष्टि के लिए किया है! इस दौरान मुझे कई तरह की समस्याओं का सामना भी करना पड़ा! गंभीरता से सोचने पर मैंने पाया कि हर चीज़ के पीछे राजनीति छुपी हुई है!

जहाँ तक हमें लगता है कि शाब्दिक अर्थ और परिभाषा के संदर्भ में राजनीति में कोई त्रुटि नहीं है बल्कि प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हर व्यक्ति राजनैतिक प्रक्रिया में कहीं ना कहीं भाग लेता है| हम वोट दें, या ना दें, कोई ना कोई चुनाव ज़रूर जीतता है! परंतु, लोकतांत्रिक व्यवस्था में चुनावी राजनीति को ग़लत मानकर अच्छे लोग इससे दूर होते जा रहें हैं परिणामस्वरूप आज बिहार में राजनीति की दशा और दिशा अक्षम एवं अयोग्य लोगों पे निर्भर हो गया है|

मैं आश्चर्यचकित हूँ कि अधिकांश नेताओं ने राजनीति को गलत समझ लिया है परिणामस्वरूप  महात्मा गांधी के तीन बंदर वाले संदेश को दूसरे रूप में ले लिया है; समाज में हो रही घटनाओं पे कुछ मत बोलों, सुनो, देखो और लिखो| जिस समाज पे अत्याचार हो रहा हो उसी पे दोषारोपण करो और वातानुकूलित कक्ष में बैठ कर सिर्फ़ निन्दा करो | अपने कक्ष में बैठकर सच्चाई का ज्ञान दो और सच्चाई के लिए संघर्रत लोगों पर व्यंग करो एवं लज्या को चाय समझ के दिन में दस बार पीयो! जनता के पैसों से देश और दुनिया का भ्रमण करो, प्रेस कॉन्फ़्रेन्स कर उपदेश दो! हमारे पास संसाधन नहीं हैं का बहाना बनाकर अपनी अयोग्यता तथा अक्षमता छुपाते रहो! अक्षम लोगों को आस पास रखो ताकि जय-जयकार होता रहे एवं आपके कृत पर कोई सवाल ना करे और ग़लती से किसी ने सार्थक सवाल किया तो उसको विवादास्पद साबित कर ठिकाना लगा दो| कुछ नहीं करते हुए भी ये मानते रहो कि सबकुछ ठीक हो जाएगा | कोई भी सामाजिक आंदोलन करने का साहस या क्षमता हो या ना हो पर बड़े-बड़े लेखकों का हवाला देकर  अपनी बौद्धिकता का परिचय देते रहो और जो बेचारे पढ़ ना पाए हों उनको दोयम दर्ज़े का नागरिक समझते रहो| जब हमारे यहाँ नालंदा में विश्वविद्यालय हुआ करता था तो पूरे विश्व से लोग यहाँ ज्ञानोपार्जन के लिए आया करते थे! आज हमारे यहाँ शिक्षा का जो हाल है इसके जिम्मेवार कौन?  विद्या को शिक्षा और गुरु को शिक्षक का नाम देकर पूरी व्यवस्था चौपट कर दी गई है, उसपर भी शिक्षकों एवम्‌ विद्यालयों का जो हाल है उसे भी किसी से छुपाया नहीं जा सकता! हाँ, साक्षर होने के लिए किताब पढ़ना ज़रूरी है पर बिना समाज पढ़े कोई ज्ञानी नहीं हो सकता| आवश्यकता है कि हम किताब और समाज के बीच सामंजस्य बैठा कर पूरे समाज को प्रगति के पथ पर ले जाएँ!

ख़ास तौर से राजनैतिक जागरूकता के अवनति में हमें दलगत तथा सांगठनिक दोष लगता है| जिसमें दम नहीं और जो निकम्मा है जुगाड़ से  अधिकांश दलों का नेतृत्व उन्हीं के हाथ में चला गया है और वेलोग दूसरों पर दोषारोपण कर आराम से अपना कार्यकाल पूरा कर, दूसरी बार भी नेताओं का परिक्रमा कर पुनः नेतृत्व में आने की चेष्टा में जाते हैं। यही चक्र सतत चलता रहता है, परिणामस्वरूप आम जनता राजनीति से ही दूरी बना ले रहें हैं और यह सोचने लगते हैं कि इतनी मँहगी राजनीति में हमारा कुछ नहीं हो सकता, हम तो सिर्फ़ वोट देने के लिए ही हैं! चुनाव लड़ना हमारे बस की बात नहीं!

राजनैतिक रूप से सक्रिय बिहार की राजनीति आज  नाकाम और निकम्मे नेतृत्व के कारण हासिए पे चली गयी है, तो समाज में हासिए पर चले गए लोगों को मूलभूत सुविधाएं कैसे प्रदान कर पाएगी? हमें राशन मिले या ना मिले, नेताजी के मात्र एक भाषण पर हम अपना वोट और अपना भविष्य जाति तथा धर्म के आधार पर गिरवी रख देते हैं! ये कहाँ तक उचित है, हमें गंभीरता से सोचना चहिए!

आज जब तथाकथित नेताओं को ही यह पता नहीं कि आगे  क्या और कैसे करना है तो वो आम इंसानों को क्या बताएँगे | सभी सरकारों ने तो शिक्षा व्यवस्था का नाश करना अपना परम दायित्व समझ लिया है ताकि लोगों को कुनेताओं के कुनीतियों का ज्ञान ही ना हो पाए | मेरे समझ से शिक्षा का परम उद्देश्य मनुष्य को तार्किक बनाना है, धनी नहीं | अगर आमजन तक, ख़ास शिक्षा पहुंच गई, तो लोगों को धर्म और जाति के नाम पर चल रहे खेला का पता चल जाएगा और लोग बदलाव के लिए सवाल करने लगेंगे, सवाल का जवाब नहीं मिलने पर लोग संघर्ष करेंगे और तब राजनीति अपने आप हो जाएगी | असल में, सामुहिक हित के लिए संघर्ष करना ही राजनीति है और ऐसे ही राजनीति से समाज और देश का कुछ भला हो सकता है | इसी संबंध में मेरा मानना है कि आप राजनीति में रूचि नहीं लेंगे इसका यह मतलब नहीं कि राजनीति आप में रूचि नहीं लेगी | आपके पैदा लेने से लेकर श्राद्ध तक, नमक से लेकर कफ़न तक, हर चीज़ का निर्धारण राजनीति ही तय करता है तो उठिए आप भी अभी से अपनी राजनीति तय कीजिए, इससे पहले की कहीं देर ना हो जाए |

हमने निर्दलीय चुनाव लड़ने का इसीलिए निर्णय लिया है कि हमें वैसे दल से टिकट के लिए समय और धन बर्बाद नहीं करना है जिन्होंने इस समाज को दल-दल में धकेला है! समाजवाद और राष्ट्रवाद के नाम पर परिवारवाद नहीं चलेगा! हमने माताजी की पूजा करना सीखा है नेताजी की नहीं! हमने सोचा है कि जो ख़र्च हम नेताजी के चक्कर में करेंगे वही अपनी जनता में क्यूँ नहीं? वोट तो आप ही करेंगे तो फिर किसी भी दल के दल-दल में क्यों पड़ना! आप हमारे साथ हैं, तो डरने की क्या बात है?

आईए, इसबार मिलकर हुंकार भरते हैं इन नाकाम और निकम्मे नेताओं के ख़िलाफ़ और छीन लेते हैं अपने हिस्से का अधिकार! एक बार हमने अपनी ताक़त इन्हें दिखा दी तो अगली बार से ये लोग मुँह और परिवार नहीं, संघर्ष देखकर टिकट दिया करेंगे! पहले क्षेत्र बचाई जाए फिर दल को भी दल-दल से निकाला जाएगा नहीं तो हर शोषित, उपेक्षित एवं वंचित को मिलाकर अपना ही दल बनाया जाएगा!

आप पर जो बीत रही है इसके जिम्मेवार आप हो ना हो, लेकिन आपके अगली पीढ़ी पर जो बीतेगी उसकी पूरी जिम्मेवारी आपकी होगी। अतः आप इस लोकतंत्र और समाजवाद को परिवारवाद से मुक्ति दिलाने में साथ आईए!  हम ‘अपनी समस्या अपना समाधान; सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य और आत्मसम्मान के लिए किसी भी हद तक संघर्ष करेंगे!

हमारी सेवा आपके द्वार

डिकेश सिंह उर्फ़ विकाश कुमार!

संपर्क सूत्र: 9430000774, 6287957938