Bihar Elections: पहले चरण का मतदान समाप्त
बिहार में पहले चरण का मतदान हो गया जिस में 71 सीटें थीं। और इस चुनाव को युवाओं द्वारा एक नई दिशा प्रदान करने का काम कर रहे हैं।
2020 का बिहार विधानसभा चुनाव कई मानों में अलग है। 60 के दशक के चुनाव मे जिस प्नकार नारा था रोटी कपड़ा और मकान और इस नारे का असर था कि देश कि राजनीति बदली और क्षेत्रीय दलों का उदय हुआ। जब कि शिरोमणि अकाली दल और जम्मू एंड कश्मीर नेशनल कांफ्रेंस जैसी कुछ पार्टियां तो 1947 में देश के आजाद होने से भी पहले गठित हो गई थीं।
पहले चरण के चुनाव मे जिस प्रकार युवा मतदाताओं का आगे आकर अपने मताधिकार का प्रयोग करना एक नया बिहार बनाने की तरफ इशारा कर रहा है।
Bihar Elections 2020: बड़ी बातें और पांच सर्वाधिक चर्चित युवा चेहरे
इस चुनाव कि सबसे बड़ी बात यह है कि विपक्ष का चेहरा जहाँ 30 वर्षीय तेजस्वी यादव हैं वहीं नितीश सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है 35 वर्षीय चिराग पासवान ने। केन्द्र में चिराग भाजपा गठबंधन में हैं जब कि बिहार में भाजपा गठबंधन से अलग चुनाव लङ रहे हैं और अपने को प्रधानमंत्री का हनुमान कह रहे हैं।
इस चुनाव के पांच सर्वाधिक चर्चित युवा चेहरों पर नजर डालें, तो उनमें एक तेजस्वी यादव जो विपक्ष के सबसे बडे़ गठबंधन के नेता और मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार हैं। उनकी उम्र महज 30 वर्ष है। उनके पिता, यानी बिहार की राजनीति को अलग पहचान देने वाले लालू प्रसाद यादव हैं।
पिता की विरासत और तेजस्वी की द्रढ़ता
उनकी अनुपस्थिति में तेजस्वी ने न केवल उन कि विरासत को संभाला, बल्कि गठबंधन के अन्य साथियों के दबाव का भी दृढ़तापूर्वक मुकाबला किया। जिस कारण वीआईपी के सुप्रीमो मुकेश सहनी से बात नहीं बनी, तो तेजस्वी ने उन्हें अलग कर दिया। यह बात अलग है कि मुकेश सहनी को एनडीए में जगह मिल गई। महागठबंधन से रिश्ता टूटने के बाद सहनी को जो मिला, उससे उनका सियासी कद और बढ़ गया।
कुछ इसी तरह का हाल जितन राम माँझी का हुआ वही उपेंद्र कुशवाहा महागठबंथन से अलग होकर एक नया गठबंधन बनाया जो आरजेडी की अगुवाई वाले महागठबंधन की राह का रोड़ा साबित होगा। आरजेडी से असंतुष्ट उपेंद्र कुशवाहा ने मायावती, ओवैसी और पूर्व केंद्रीय मंत्री देवेंद्र प्रसाद यादव के साथ मिलकर यह व्यूह रचना रची है।
इस गठबंधन को बनाने में ओवैसी कि पार्टी के युवा तुर्क आदिल हसन आजाद कि भूमिका रही है। आदिल का टिकट बटवारे को लेकर बिहार में विरोध हुआ पर असद उद्दीन ओवैसी ने आदिल को छोटा भाई कह कर संबोधित कर विरोधी को चुप करा दिया। इस गठबंधन में मायावती हैं और आने वाला उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव पर ओवैसी कि नजर है
चिराग कि पार्टी लोजपा बिहार में 147 विधानसभा सीटों पर लङ रही है जोकि जद यू और मांझी कि पार्टी हम के विरोध में अपना प्रत्याशी उतार कर नितीश कुमार के खेल को बिगाड़ने में लगे हुए हैं
इस प्रकार चिराग पासवान एनडीए में हैं भी और नहीं भी। वह दिल्ली में तो सत्ताधारी गठबंधन का हिस्सा बने रहेंगे, पर बिहार में प्रधानमंत्री की सफलता की कामना के साथ एनडीए उम्मीदवारों के खिलाफ ताल ठोंक रहे हैं।
बड़ा मैदान और एक नयी पार्टी का जन्म
इस चुनावी जंग में एक ऐसी पार्टी भी मैदान में है, जो चुनाव से ऐन पहले उभरी है, नाम है पूलरल्स पार्टी और उसकी नेता ने खुद को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर रखा है। पुष्पम प्रिया चौधरी लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन में स्नातकोत्तर हैं और सिर्फ आधुनिक शिक्षा प्राप्त नौजवानों को टिकट दी हैं। लोग मतदाताओं से रोटी, कपड़ा और मकान से संबंधित मूलभूत प्रश्न पूछते हैं और इस बहाने उनके मन में छिपे असंतोष को हवा देने की कोशिश करते हैं। ये नौजवान लोग कुछ असर डाल पाएंगे या यह सोशल मीडिया भर होकर रह जाएगा ये तो समय बताएगा।
तेजस्वी, चिराग,मुकेश, पुष्पम और आदिल हसन जैसे युवा तुर्कों में समानता है। ये पांच युवा बिहार को बदलना चाहते हैं। मूढ्ढे भी एक हैं इस वक्त ये भले ही आपस मे अलग हों,मगर इनमें तमाम समानताएं हैं। इन में तीन तो मंडल आयोग की सोशल इंजीनिर्यंरग की नई पीढ़ी हैं।
नितीश कुमार और उनके 15 साल
नीतीश कुमार कुमार को नापसंद करने वाले लोग भी अपनी माटी और मानुस के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को नकार नहीं पाते। नितीश कुमार ने बिहार में 15 वर्षों तक हुकूमत की है। इस दौरान उन्होंने महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए पंचायतों और स्थानीय निकायों में 50 फीसदी आरक्षण दिया।
सरकारी विभागों में उन्होंने महिलाओं के लिए 35 प्रतिशत नौकरियां आरक्षित की हैं। इन नौकरियों को हासिल करने के लिए बच्चियां पढ़ सकें, इसके लिए उन्होंने मुफ्त साइकिलें वितरित कराईं। यही नहीं, ग्रामीण गृहणियों की मांग पर उन्होंने शराबबंदी का जोखिम तक मोल लिया। इनके अलावा, सड़क, कृषि, ग्रामीण-विद्युतीकरण, जल-नल योजना, बिहार स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड आदि जैसे फैसले उन्हें औरों से अलग करते हैं।
यह बात अलग है कि लंबा शासनकाल कुछ नए सवाल पैदा करता है। राज्य की जीडीपी में उल्लेखनीय बढ़ोतरी के बावजूद वह औद्योगीकरण को विस्तार नहीं दे सके, नतीजतन बिहार में बेरोजगारी के आंकडे़ चौंकाने वाले हैं। सीएमआईई के मुताबिक, जनवरी 2016 में प्रदेश में बेरोजगारी दर जहां 4.4 प्रतिशत थी, वहीं वह अप्रैल 2020 में बढ़कर 46.6 फीसदी हो गई। इन आंकड़ों का इस चुनाव में उनके विरोधी प्रयोग कर रहे हैं और दूसरा बिहार कि नौकरशाही। यही कारण है कि नितीश कुमार को छठी बार मुख्यमंत्री की कुर्सी पर पहुंचने मे रोड़े अटका रहे हैं।