जज्बे को सलाम: नहीं टूटा जवानों का हौसला, अभी भी लड़ने के लिए तैयार

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छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित सुकमा जिले में नक्सली हमले में अपने 25 साथियों को खोने के बाद घायल जवान का हौसला नहीं टूटा है। जवान अभी भी नक्सलियों का मुकाबला करने के लिए तैयार है।

बंगाल के सौरभ कुमार मलिक सीआरपीएफ के 74 वीं बटालियन का जवान है और अभी अस्पताल में भर्ती है। सौरभ उन जवानों में से हैं जिन्होंने सोमवार को नक्सलियों का मुकाबला किया। इस लड़ाई में सौरभ के बाएं कंधे से गोली आरपार हो गई है, लेकिन सौरभ का हौसला अभी भी बरकरार है। सौरभ कहते हैं कि यदि उन्हें फिर मौका मिलेगा तो फिर जाएंगे लड़ने।

घायल जवान ने बताया कि सोमवार को उन्हें सड़क की सुरक्षा में तैनात किया गया था। वह लगभग एक सौ जवानों के साथ सुबह निमार्णाधीन सड़क की सुरक्षा में रवाना हुए थे। दोपहर के करीब वहां अचानक कुछ ग्रामीणों की आवाजाही हुई। एक ग्रामीण वहां मुंह में काला कपड़ा बांधकर घूम रहा था। इस दौरान उससे पूछा गया कि वह यहां क्या कर रहा है। तब उसने कहा कि वह शौच के लिए आया था। उसके बाद वह वहां से चला गया। वहां अन्य गांव वाले भी आना जाना कर रहे थे।

ग्रामीणों ने नक्सलियों का साथ दिया 
सौरभ कहते हैं कि अक्सर होता है कि जब जवान ड्यूटी पर निकलते हैं तब गांव वाले महुआ एकत्र करने और अन्य कार्यों से वहां आते जाते रहते हैं। ग्रामीणों की आवाजाही को भी जवानों ने रोज की तरह समझा। लेकिन कुछ देर बाद ही नक्सलियों ने अचानक गोलीबारी शुरू कर दी। इसी दौरान कुछ जवान घायल हो गए। अन्य जवान लगातार गोलीबारी का जवाब देते रहे। इस दौरान वहां बड़ी संख्या में ग्रामीण थे जो लगातार हल्ला कर रहे थे।

जवान कहते हैं कि हमेशा होता आया है कि ग्रामीण नक्सलियों का साथ देते हैं। ड्यूटी के दौरान जो ग्रामीण वहां दिखाई देते हैं वह नक्सलियों के ही आदमी होते हैं। उनके पास हथियार नहीं होते इसलिए यह पता नहीं चल पाता कि वह नक्सली है या नहीं। हम उन्हें कुछ भी नहीं कर सकते हैं। हमें कहा गया है कि ग्रामीणों को नुकसान नहीं पहुंचना चाहिए।

सौरभ मांग करते हैं कि गश्त के दौरान सीआरपीएफ के साथ स्थानीय पुलिस के लोग भी होने चाहिए। क्योंकि उनकी भी ड्यूटी है सुरक्षा करने की। लेकिन अक्सर यह देखने में आता है कि सीआरपीएफ के साथ स्थानीय पुलिस के जवान तैनात नहीं होते हैं।

सही जानकारी नहीं मिलती
नक्सलियों से लड़ने वाले जवान मनोज कुमार को भी मलाल है कि उन्होंने ग्रामीणों की खूब मदद की लेकिन उन्होंने ऐसे समय में नक्सलियों का साथ दिया।  मनोज कुमार ने बुरकापाल शिविर में संवाददाताओं से बातचीत के दौरान कहा कि वह प्राथमिक उपचार भी जानते हैं। अक्सर वह बीमार ग्रामीणों की मदद करते हैं। लेकिन उनकी मदद नहीं मिलती। कभी कभी गांव वालों से उन्हें कुछ जानकारी मिलती है लेकिन वह भी अक्सर गलत निकलती है। मनोज कहते हैं कि नक्सलियों ने लड़ाई में कुछ नई तकनीक इस्तेमाल की है। उन्होंने विस्फोटक युक्त तीर से हमला किया जिसने जवानों को काफी नुकसान पहुंचाया।