भारतीय सेना ने पिछले साल सितंबर में ही सर्जिकल स्ट्राइक कर पाकिस्तान आधारित आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा को भारी नुकसान पहुंचाया. इस स्ट्राइक में 50 से अधिक आतंकी मारे गए, हालांकि यह काम इतना भी आसान नहीं था. सर्जिकल स्ट्राइक की अगुवाई करने वाले सेना के एक मेजर ने खुलासा किया है कि इसमें कई भारतीय सैनिकों की जान भी जा सकती थी.
भारतीय सेना की सूझबूझ और रणनीतिक कौशल की वजह से किसी सैनिक की जान नहीं गई, लेकिन वापसी के समय पाकिस्तान सेना ने काफी गोलीबारी की थी. आलम यह था कि गोलियां सैनिकों के आसपास से होकर निकल रहीं थीं. कुछ गोली मेरे कान के पास से निकल गईं. यह खुलासा सर्जिकल स्ट्राइक की अगुवाई करने वाले सेना के एक मेजर ने किया.
मेजर के मुताबिक सर्जिकल स्ट्राइक हमला बहुत ठीक तरीके से और तेजी के साथ किया गया था लेकिन वापसी सबसे मुश्किल काम था और दुश्मन सैनिकों की गोली कानों के पास से निकल रही थी. ऐसे में इस ऑपरेशन में एक भी सैनिक की जान नहीं गई तो इसका मतलब यह नहीं कि ऑपरेशन काफी आसान रहा हो.
मेजर माइक टेंगो ने बयां की कहानी
पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में सर्जिकल स्ट्राइक के एक वर्ष पूरा होने पर प्रकाशित किताब में सेना के मेजर ने उस महत्वपूर्ण और चौंका देने वाले मिशन से जुड़े अपने अनुभव को साझा किया है. ‘इंडियाज मोस्ट फीयरलेस : ट्रू स्टोरीज ऑफ मॉडर्न मिलिट्री हीरोज’ किताब में अधिकारी को मेजर माइक टैंगो बताया गया है. किताब को शिव अरूर और राहुल सिंह ने लिखा है जिसे पेंग्विन इंडिया ने प्रकाशित किया है. इसमें सर्जिकल स्ट्राइक की 14 कहानियों को शामिल किया गया है, जो भारतीय सैनिकों के अदम्य साहस और पराक्रम के बारे में बताती हैं.
मेजर ने बताया कि सेना ने सर्जिकल स्ट्राइक के लिए उरी हमले में नुकसान झेलने वाले यूनिटों के सैनिकों के इस्तेमाल का निर्णय किया. इसके लिए घटक टुकड़ी का गठन किया गया और उसमें उन दो यूनिट के सैनिकों को शामिल किया गया, जिन्होंने अपने जवान गंवाए थे. किताब में कहा गया है, ‘‘रणनीतिक रूप से यह चालाकी से उठाया गया कदम था, वहां की जमीनी हालात की जानकारी उनसे बेहतर शायद ही किसी को थी. इसके साथ ही लेकिन कुछ और भी कारण थे।’’ उसमें साथ ही कहा गया है, ‘‘उनको मिशन में शामिल करने का मकसद उरी हमलों के दोषियों के खात्मे की शुरुआत भी था.’’ मेजर टैंगो को मिशन की अगुवाई के लिए चुना गया था.
सर्जिकल स्ट्राइक के लिए आईएसआई द्वारा संचालित और पाकिस्तानी सेना से संरक्षित प्राप्त आंतकियों के 4 लॉन्चिंग पैड्स को चुना गया था. हमले के बाद टीम वापस लौट रही थी तो पाकिस्तान सेना को इसकी भनक लग गई. किताब में मेजर ने बताया कि, ‘पाकिस्तान सेना के हमले से कमांडोज घबराए नहीं थे, लेकिन एलओसी पर चढ़ाई वाले रास्ते को पार करते हुए लौटना बहुत कठिन था। जिस ओर सैनिकों का पीठ था वहां से पाकिस्तानी सैनिक गोलीबारी कर रहे थे। भारतीय सैनिक उनके सीधे टारगेट पर थे।’
किताब के अनुसार टीम लीडर के रूप में मेजर टैंगो ने सहायक भूमिका के लिए खुद से सभी अधिकारियों और कर्मियों का चयन किया. उन्हें इस बात की अच्छी तरीके से जानकारी थी कि 19 लोगों की जान बहुत हद तक उनके हाथों में थी.’’ इस वजह से अधिकारियों और कर्मियों की सकुशल वापसी को लेकर मेजर टैंगो थोड़े चिंतित थे. किताब में उनको यह याद करते हुए दिखाया गया है कि वहां उन्हें लगता था कि मैं जवानों को खो सकता हूं।’
किताब के अनुसार भारतीय टीम ने मास्क्ड कम्यूनिकेशन्ज के जरिए सीमा पार 4 लोगों से संपर्क साधा, जिसमें PoK के 2 स्थानीय ग्रामीण और 2 उस इलाके में सक्रिय पाकिस्तानी नागरिक थे. आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद में दोनों जासूस को भारतीय सेना ने ही शामिल करवाया था. इन्हें कुछ साल पहले भारतीय एजेंसियों ने वापस भेज दिया था. किताब में बताया गया है कि चारों सूत्रों ने उनको सौंपे गए टारगेट के बारे में अलग-अलग जानकारी की पुष्टि की.
आतंकियों को पाक सेना का मिला था साथ
आतंकवादियों को पाकिस्तान सेना से सहायता मिलती है, यह बात किसी से छुपी हुई नहीं है. सर्जिकल स्ट्राइक के समय में भी यह बात सामने आई थी. सूत्रों ने बताया था कि आतंकियों को भारतीय सेना की ओर से कार्रवाई किए जाने की उम्मीद नहीं थी और इसलिए वे हैरान रह गए. रिपोर्ट के मुताबिक जब भारतीय सैनिकों ने इन आतंकवादियों को मारना शुरू किया तो, वे पाकिस्तानी चौकी की तरफ भागते देखे गए थे. इससे यह बात साबित होती है कि आतंकियों को पाकिस्तान सेना से कोई खतरा नहीं था. आपको बता दें कि भारत की ओर से हमला होने के बाद दो पाकिस्तानी सैनिक लॉन्च पैड की सुरक्षा में जुट गए थे, लेकिन हमले में वे भी मारे गए थे.