बिहार मुस्लिम युवा मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा कि नमाज जरूरी है या नहीं, ये तय करने का अधिकार कोर्ट का नहीं, बल्कि धार्मिक गुरुओं का है. अच्छा होता अगर ये फैसला संवैधानिक पीठ को रेफर कर दिया जाता.सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर इंजीनियर उबैदुल्लाह का कहना है कि अगर ये फैसला संवैधानिक पीठ को रेफर हो जाता तो अच्छा होता. इस्लाम में मस्जिद एक जरूरी हिस्सा है. कुरान और हदीस में इस बात जिक्र है. अफसोस इस बात का है कि जब तीन तलाक का मसला आया तो कुरान का जिक्र किया गया और जब मस्जिद का मसला आया तो कुरान को भूल जा रहे हैं.इंजीनियर उबैदुल्लाह ने कहा कि दूसरे धर्म के धार्मिक स्थल क्या जरूरी नहीं है? उन्होंने सवाल किया कि न्यायालय कैसे तय कर सकती है कि क्या जरूरी है. यह तय करने का अधिकार धार्मिक गुरुओं को है. वीएचपी और आरएसएस के मुताबिक नहीं चला जा सकता. उन्होंने आरएसएस पर तंज करते हुए कहा कि आप अपनी शाखा में रहें और तय करें कि मंदिर कब और कहां बनाना चाहिए. यह देश संविधान के हिसाब से चलता है, न कि किसी व्यक्ति की धार्मिक भावनाओं के आधार पर.इसके अलावा उन्हों ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के कहने के बावजूद बीजेपी के नेता यह समझ नहीं कर पा रहे हैं कि यह केस टाइटल सूट का है न कि आस्था का. बीजेपी की सरकार अदालत में कुछ और कहती है, टीवी बहस में कुछ और चुनावों के समय में कुछ और. जो दलील TV पर देते हैं वह उन्हें अटॉर्नी जनरल के जरिए सुप्रीम कोर्ट में देनी चाहिए, लेकिन वे ऐसा नहीं करेंगे, क्योंकि उन्हें पता है कि कोर्ट ऐसी बातों को तवज्जो नहीं देता है.सुप्रीम कोर्ट ने मस्जिद में नमाज की मजहबी जरूरत को हाशिए पर धकेला और उधर अयोध्या में राममंदिर की उम्मीदों को पंख लग गए. मंदिर समर्थकों को लगने लगा है कि अब वो दिन दूर नहीं जब देश की सबसे बड़ी अदालत से विवादित जमीन पर मालिकाना हक की जंग भी वो जीत लेंगे.