‘चीन के शोक’ से शोकाकुल हैं चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग, सताई पर्यावरण की चिंता

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जिस तरह से भारत में गंगा नदी को मां का दर्जा दिया गया है, वैसे ही चीन में पीली नदी को मां कहा जाता है। लेकिन सालों से आ रही बाढ़ के चलते ह्वांगहो या ह्वांगहे या ह्वांगहा या फिर पीली नदी को चीन का शोक भी कहा जाता है। चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने पीली नदी के पारिस्थितिक सरंक्षण को प्रोत्साहन देते हुए उच्च स्तरीय विकास पर जोर दिया है। इस नदी का उद्गम किंघाई प्रांत में तिब्बत की पहाड़ियों से होता है और प्रशांत महासागर में मिलती है।

दुनिया की सातवीं सबसे बड़ी नदी

माना जाता है कि चीन की सभ्यता का आरंभ ह्वांग्हो (ह्वांगहो) नदी के निचले हिस्से के बेसिन में हुआ था। यह दुनिया की सातवीं सबसे बड़ी नदी है। प्राचीन काल में दक्षिणी चीन की समृद्धि का कारण भी इसे ही माना जाता था। मध्य चीन के हनान प्रांत की राजधानी चनचो में आयोजित एक कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कहा कि पीली नदी का संरक्षण चीनी के कायाकल्प और सतत विकास के लिए महत्वपूर्ण है।

‘मदर रिवर’ का दर्जा

जिनपिंग का कहना है कि चीनी जनता से प्राचीन काल से ही पीली नदी से आई बाढ़ों और सूखों को झेला है। ये देखते हुए पीली नदी की शांति चीन की स्थिरता के लिए जरूरी है। वहीं कम्यूनिस्ट पार्टी 1949 से ही पीली नदी के विकास को लेकर जागरूरक रही है। पीली नदी की चीन में ‘मदर रिवर’ भी कहा जाता है और चीन के नौ प्रांतों से होकर बहती है।

चीन की जीडीपी में 14 फीसदी योगदान

5,464 किमी लंबी यह नदी चीन की 12 फीसदी आबादी का भरण पोषण करती है, तकरीबन 15 फीसदी भूमि की सिंचाई करती है और 60 से ज्यादा शहरों के नागरिकों को पीने का पानी उपलब्ध कराती है और चीन की जीडीपी में इसका 14 फीसदी योगदान है। शी जिनपिंग ने कहा कि पीली नदी के संरक्षण के लिए पारिस्थितिक पर्यावरण संरक्षण को मजबूत किया जाए, नदी के मध्य और निचले भाग की भिन्नता का पूरी तरह ख्याल रखा जाए। उन्होंने कहा कि पिछले 2,500 सालों से पीली नदी ने 1,600 बार अपने तटबंधों को तोड़ा है और निचले स्तर पर कम से कम 26 बड़े बदलाव हुए हैं।

तीन हजार साल पुराना इतिहास

दरअसल चीन की पीली नदी में पिछले 3,000 से ज्यादा सालों के दौरान प्रमुख चीनी राजवंशों ने नदी के बेसिन में अपनी राजधानियों का निर्माण किया, जिससे यह क्षेत्र देश में राजनीतिक, अर्थव्यवस्था और संस्कृति का केंद्र बन गया। वहीं अब चीन पर इस क्षेत्र का पारिस्थतिकी तंत्र बिगाड़ने के आरोप लग रहे हैं। इस नदी के किनारों पर गैर कानूनी तरीको से निर्माण हुआ है, साथ ही अवैध तरीके से रेत का खनन हुआ है।

रही बाढ़ की मुख्य वजह

1955 में प्रकाशित चीन की एक सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक पीली नदी में बाढ़ की असाधारण विभीषिका का कारण बारिश नहीं है. बल्कि नदी के मुहाने पर गाद का अत्याधिक जमाव है। 1048 ई. से 1954 ई. के बीच 906 सालों में कम से कम 9 बार पीली नदी की धारा 26 बार बदली है। अकेले 1955 तक के 100 वर्षों में ही इस नदी के तटबंध कम से कम 200 बार टूटे थे। जिसके कारण लगभग 11000 वर्ग कि.मी. में बाढ़ का भयंकर प्रकोप हुआ और 36 लाख 40 हजार लोग बाढ़ से प्रभावित हुए और करीब 18,000 लोग मौत के शिकार हुए।

नदी तल में जमा होता है गाद

दरअसल उत्तरी चीन के पीले मैदान से हजारों किलोमीटर की यात्रा में यह अपने प्रवाह में काफी बड़ी मात्रा में पीली गाद लाती है, समुद्र में गिरने से लगभग 800 किमी पहले जमीन का ढाल सपाट होने की वजह से गाद नदी तल में जमा होने लगती है। जिससे नदी तल ऊंचा होता रहता है और नदी बार-बार अपना रास्ता बदलती रहती है। जिसके चलते निचले इलाकों में बाढ़ का प्रकोप अधिक विनाशकारी होता है। हालांकि चीन हर साल इस नदी से गाद की सफाई करता है।

स्वच्छ जल और हरे पहाड़ देश के लिए सोना और चांदी जैसे

वहीं चीन के लिए जरूरी है कि रेत या गाद की नियंत्रण व्यवस्था पर नियंत्रण किया जाए, क्योंकि तटबंधों को ऊंचा करना या उन्हें और मजबूत करना समस्या का हल नहीं है। इसके उलट तटबंधों के मजबूत होने से गाद का जमाव तेजी से बढ़ेगा क्योंकि उसके बाद फैलने के रास्ते बंद हो जाएंगे। शी जिनपिंग का कहना है कि स्वच्छ जल और हरे पहाड़ देश के लिए सोना और चांदी जैसे हैं। इसके लिए पारिस्थितिकी को प्राथमिकता देते हुए हरित विकास करना चाहिए, ताकि इसे जनता के सुख वाली नदी बनाया जा सके।