एनपीआर के नाम मुस्लिमों डरा के ठग रहा है गैंग, जानें कैसे

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एनपीआर का पहला चरण 16 मई से शुरू होना है। पर एनपीआर को लेकर मुस्लिम एरिया में हड़कंप साफ देखा जा सकता है। यहां लोगों में एनपीआर को लेकर हौव्वा खड़ा हो गया है, वह एनपीआर को लेकर तमाम तरह की भ्रांति पाले बैठे हैं, इसी का कुछ गैंग फायदा उठाने लगे हैं। इस गैंग में कुछ पढ़े लिखे लोग एनपीआर का डर पैदा कर अपनी जेब गर्म करने में लगे हैं। वह लोगों से अच्छी खासी रकम ऐंठ कर नागरिकता के पुख्ता कागजात उपलब्ध कराने का झांसा दे रहे हैं। मुस्लिम इलाकों में लोगों में जागरूकता की कमी का गैंग पूरा फायदा उठाने में लगा है। पुरानी वोटरलिस्ट निकलवाने के नाम पर 5-5 सौ रुपए ठगे जा रहे हैं, जबकि वोटरलिस्ट अगर खुद निकलवाएं तो उसकी फीस बेहद कम है।

गैंग के लोग मुस्लिमों को डरा रहे हैं कि अगर उनके पास मकान, दुकान के कागजों में, वोटरलिस्ट आदि में दादा परदादा का नाम नहीं होगा तो बाहरी समझे जाएंगे। असली बात को कोई भी मुस्लिम जानना और समझना चाहता नहीं है, इसलिए झांसा देने वालों को वह रुपया देकर पुरानी वोटरलिस्ट की कापी मंगवा रहे हैं। नगर पालिका के रजिस्टरों में दर्ज पुरखों के नाम वाला रजिस्टर्ड पन्ना भी मंगवा रहे हैं। बता दें कि मुस्लिम इलाकों में पढ़े लिखे लोग भी कौम के लोगों को सही बात नहीं बता रहे हैं। ऐसा भी लगता है कि जिन लोगों को एनपीआर के बारे में पता है, वह दूसरों को बताना नहीं चाह रहे हैं। भय का माहौल लगातार बढ़ता ही जा रहा है। इसका उदाहरण नगर निगम में पेंडिंग हजारों जन्म मुत्यु प्रमाण पत्र के आवेदन हैं। साथ ही निर्वाचन कार्यालय में पुरानी वोटरलिस्ट पाने के लिए लगने वाली लाइन है। बैंकों में भी जाकर देखने पर पता लगा है कि जन्म-मृत्यु प्रमाण पत्र और वोटर लिस्ट की फीस जमा करने वालों की संख्या अधिक है।

ओसीएफ से भी निकलवाए जा रहे आवेदन
अंग्रेजों के जमाने की आर्डनेंस क्लोदिंग फैक्ट्री में जो लोग काम करते थे, उनकी तीसरी पीढ़ी के लोग वहां से रिकार्ड निकलवा रहे हैं। उनके दाादा जो अब इस दुनिया में भी नहीं है, उनसे संबंधित कागजात निकलवाने के लिए खास वर्ग के लोग लगे हुए हैं। वह उन कागजातों के जरिए अपनी नागरिकता को पुख्ता करने के लिए कागजात निकलवा रहे हैं। लोग अपनी नागरिकता के पुख्ता सबूत के लिए 70 साल पुरानी वोटर लिस्ट निकलवाने में लग गए हैं। जन्म प्रमाण पत्र बनवाने के लिए जनसेवा केंद्रों में आवेदन की संख्या बढ़ने लगी है।

1948 से 1958 की वोटरलिस्ट की ज्यादा डिमांड
सीएए व एनपीआर को लेकर लोग अपने भ्रम को दूर नहीं कर पा रहे हैं। इसी का फायदा उठा कर एक गैंग सक्रिय हो गया है। यह गैंग लोगों को वोटर लिस्ट निकलवा कर देने, जनप्रमाण पत्र बनवाने के नाम पर रुपया ठगने का काम कर रहा है। कुछ लोग तो खुद ही निर्वाचन कार्यालय पहुंच कर 70 साल पुरानी वोटर लिस्ट की डिमांड करनी शुरू कर दी है।  40-50 लोगों का प्रतिदिन निर्वाचन कार्यालय पहुंच रहे हैं। लोग सन् 1948 एवं 1950 की वोटर लिस्ट के साथ ही साथ नई वोटर लिस्ट निकालवाकर अपने अपने परिवार के सदस्यों का मिलान कर रहे हैं, जिसके लिए प्रति वोटर लिस्ट 18 रूपये चालान फीस जमा करने के बाद उनको लिस्ट मुहैया कराई गई। प्रशासन की सख्ती के बाद लोगों की पहले से कम भीड़ हुई है।