Ayodhya Verdict : निर्मोही अखाड़े को रास नहीं आ रहा सुप्रीम कोर्ट का फैसला

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सुप्रीम कोर्ट के फैसले के कुछ बिन्दु निर्मोही अखाड़े के प्रतिनिधियों को रास नहीं आ रहे हैं। अखाड़े की बैठक में पंचों ने राम जन्मभूमि पर एकाधिकार समाप्त होने के फैसले को स्तब्धकारी माना और कहा कि पूरे फैसले के अध्ययन के बाद इसके कानूनी पहलुओं पर विचार किया जाएगा। फिलहाल राम मंदिर के पक्ष में हुए फैसले और देशवासियों की खुशी को ध्यान में रखते हुए तात्कालिक तौर पर रिव्यू पीटिशन से इंकार कर दिया गया है। अखाड़ा अभी केन्द्र सरकार की ओर से बोर्ड ऑफ ट्रस्ट की घोषणा का इंतजार करेगा।

निर्मोही अखाड़ा के सरपंच एवं डाकोर, गुजरात पीठाधीश्वर महंत राजा रामचन्द्राचार्य सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कई प्रकार का विरोधाभास देखते हैं। उनका कहना है कि व्यक्तियों एवं समाज के हित एवं उनकी खुशी को देखते हुए फैसले को हम सभी ने स्वीकार किया है। इसके विपरीत जिस फैसले को ऐतिहासिक बताया जा रहा है, उसी फैसले में धार्मिक स्वतंत्रता का हनन भी हुआ है। उन्होंने कहा कि धार्मिक ट्रस्ट में सरकारी हस्तक्षेप अनुच्छेद 25 व 26 का उल्लंघन करता है। इसका प्रभाव आने वाले समय में सभी सांस्कृतिक संस्थाओं पर पड़ेगा।

सुप्रीम कोर्ट में अखाड़े के प्रतिनिधि एवं वयोवृद्ध महंत श्री रामचन्द्राचार्य ने कहा कि सरकार में बैठे लोग या फिर न्याय की डिग्री लेने वाले धार्मिक प्रक्रिया के विशेषज्ञ नहीं है। उन्होंने कहा कि अभी हम लोगों ने फैसले को फौरी तौर पर ही देखा है लेकिन अभी इसका अध्ययन किया जाना बाकी है। उन्होंने यह भी कहा कि रामजन्मभूमि पर निर्मोही अखाड़े के एकाधिकार की उपेक्षा की गई है। इस सम्बन्ध में हम कानूनी की बारीकियों को देखेंगे व समझेंगे और भविष्य में कानूनी हक के बारे में विचार भी करेंगे।

वह कहते हैं कि कोर्ट ने अखाड़े की ऐतिहासिक उपस्थिति को स्वीकार भी किया है, फिर भी कोई अधिकार नहीं दिया। यहां तक कि रामजन्मभूमि के आउटर कोर्ट यार्ड में भी अखाड़े को बेदखल कर दिया गया। वह भी तब जबकि सात अक्तूबर 91 के अधिग्रहण को चुनौती रामलला के बजाए अखाड़े ने देकर स्थान को सुरक्षित कराया। इस अधिग्रहण के दौरान ही अधिग्रहीत परिसर में शेषावतार व सुमित्राभवन जैसे 22 मंदिरो को ध्वस्त किया गया था।