FLASHBACK: तब ‘साहेब’ के ‘न्‍याय’ से सिहर उठा था सिवान

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पटना [जेएनएन]। सिवान के प्रतापपुर गांव में दो भाइयों ने छोड़ देने की गुहार लगाई। लेकिन, आतातायी नहीं माने। भारी आवाज में आदेश जारी हुआ और अगले ही पल दोनों को सरेआम तेजाब से नहलाया जाने लगा। अंतत: तड़प-तड़पकर दोनों की मौत हो गई। अब हत्‍याकांड के साक्ष्‍य को छिपाने की बारी थी। इसे भी बखूबी अंजाम दिया गया।
दिल्‍ली के तिहाड़ जेल में बंद पूर्व सांसद शहाबुद्दीन काे ‘न्‍याय’ के नाम पर किए गए इस अपराध के लिए निचली अदालत 11 दिसंबर 2015 को उम्रकैद की सजा दे चुकी है। बुधवार को इसे पटना हाईकोर्ट ने भी बरकरार रखा। हालांकि, शहाबुद्दीन ने इस आरोप को कभी स्‍वीकार नहीं किया। बचाव पक्ष की दलील रही है कि वारदात के समय वे जेल में थे। पर, अदालत ने इसे नहीं माना।
साहेब की थी अपनी न्‍याय व्‍यवस्‍था

दरअसल, सिवान में शहाबुद्दीन की अपनी न्‍याय व्‍यवस्‍था थी। साहेब (शहाबुद्दीन को सिवान में इसी नाम से जाना जाता है) का फरमान रियाया के लिए पत्‍थर की लकीर होती थी। वे अपना दरबार लगा ‘न्‍याय’ करते थे। उनके आदमी भी पंचायत लगा ‘न्‍याय’ करने में पीछे नहीं रहते थे।
भूमि विवाद की पंचायती से बढ़ी बात

सिवान के गौशाला रोड स्थित व्यवसायी चन्द्रकेश्वर प्रसाद उर्फ चंदा बाबू को वो दिन भूले नहीं भूलता। 16 अगस्त 2004 की सुबह भूमि विवाद के निपटारे को लेकर पंचायती हो रही थी। इसी बीच बाहर से आए कुछ लोगों ने धमकी दी। विवाद बढ़ा तो मारपीट हो गई। बताया जाता है कि इसके बाद व्‍यवसायी के परिजन घर में भागे। उन्‍होंने घर में रखे तेजाब को आक्रमणकारियों पर फेंक दिया। घटना में बाहर से आए कुछ अवांछित तत्व गंभीर रूप से जख्मी हो गए।

चंदा बाबू के बेटों का हुआ अपहरण

कहा जाता है कि यह मामला शहाबुद्दीन तक पहुंचा। उसी दिन शहर के दो भिन्न गल्ला दुकानों से चंदा बाबू के दो पुत्रों गिरीश व सतीश का अपहरण कर लिया गया। गुंडों ने तीसरे पुत्र राजीव रोशन को भी उठा लिया। अपहृतों की मां के बयान पर अज्ञात के विरुद्ध अपहरण का मामला दर्ज कराया गया। लेकिन, उन्‍हें तो शहाबुद्दीन के गांव प्रतापपुर पहुंचा दिया गया था।
साहेब के आदेश पर ऐसे हुई हत्‍या

फिर शुरू हुआ जेल में बंद ‘साहब’ का इंतजार। शाम के धुंधलके में साहब आए (आए तो कैसे आए, यह अलग सवाल है) और अपने अंदाज में अपना ‘न्‍याय’ कर दिया। घटना के एकमात्र गवाह रहे राजीव रोशन ने मरने के पहले यही बयान दिया था। हालांकि, बचाव पक्ष शहाबुद्दीन के जेल से बाहर आने से इन्‍कार करता रहा है।
राजीव रोशन ने बताई थी हत्‍या की कहानी

मामले के विचारण के दौरान वर्ष 2010-11 में अपहृतों के बड़े भाई राजीव रोशन ने बतौर चश्मदीद गवाह मंडल कारा में गठित विशेष अदालत में कहा था कि उसकी आंखों के सामने उसके दोनों भाईयों की हत्‍या शहाबुद्दीन के आदेश पर प्रतापपुर गांव में कर दी गई थी। वह किसी तरह वहां से जान बचाकर भागा था और गोरखपुर में गुजर-बसर कर रहा था।
शहाबुद्दीन पर गठित किए गए आरोप

चश्मदीद राजीव रोशन के बयान पर तत्कालीन विशेष लोक अभियोजक सोमेश्वर दयाल ने हत्या एवं षड्यंत्र को ले नवीन आरोप गठन करने का विशेष अदालत से निवेदन किया। विशेष अदालत ने न्याय प्रक्रिया में उठाए गए कदमों को विलंबित करार देते हुए खारिज कर दिया। तत्पश्चात उच्च न्यायालय के आदेश पर पूर्व सांसद मो. शहाबुद्दीन के विरुद्ध आरोप गठित किए गए।

निचली अदालत ने दी उम्रकैद की सजा

मामले में पुन: साक्ष्य प्रारंभ हुआ और साक्ष्य के दौरान 16 जून 2014 को चश्मदीद राजीव रोशन की भी हत्या कर दी गई। फिर 09 दिसंबर को विशेष अदालत ने शहाबुद्दीन को इस मामले में दोषी करार देते हुए 11 दिसंबर 2015 को उम्रकैद की सजा दी।
इन मामलों में हुई सजा
– 2003 में डीपी ओझा के डीजीपी बनने के बाद शहाबुद्दीन पर शिकंजा कसता गया। उनके मुकदमों पर तेजी से कार्रवाई होने लगी। आगे 6 नवंबर 2005 को उन्‍हें गिरफ्तार कर लिया गया। कुछ दिनों की बेल को छोड़ दें तो वे तब से जेल में ही हैं।