IIT के प्रति छात्रों का घट रहा रूझान, सामने आयी ये बड़ी वजह

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पटना । आइआइटी। भारत में यह नाम बहुत प्रतिष्ठा से लिया जाता। आइआइटी मतलब सफलता की गारंटी। कॅरियर में पद, पैसा व शोहरत का पर्याय आइआइटी। पिछले तीन-चार साल के आंकड़ों को देखें तो साल दर साल आइआइटी के प्रति छात्रों का रुझान घट रहा है। तीन साल में आइआइटी में प्रवेश परीक्षा में शामिल होने के लिए आवेदनों की संख्या में दो लाख की कमी आई है।

बिहार जैसे प्रदेश में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (आइआइटी) से जुडऩा सफलता के आसमां को चूमने जैसा है। यहां हर मां-बाप अपने बच्चे को आइआइटीयन बनाने का सपना देखते हैं। आइआइटी प्रवेश परीक्षा पास करना यहां चांद पर पहुंचने जैसा है। दिलचस्प बात यह कि आइआइटी के प्रति छात्रों का रुझान साल दर साल कम होता जा रहा है। आंकड़े इस बात की तसदीक कर रहे हैं कि पिछले तीन-चार सालों में आइआइटी में प्रवेश परीक्षा में शामिल होने लिए आवेदन की संख्या में 15.3 फीसद की कमी आई है।

बढ़ रहीं सीटें, घट रहे आवेदक

करीब हर साल इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी व नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में सीटों की संख्या बढ़ रही है। पिछले तीन से चार सालों में आइआइटी में इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए दो हजार से अधिक सीटें बढ़ाई गई हैं। 2014 में आइआइटी से इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए 9885 सीटें थीं। वहीं 2018 सीटों की संख्या बढ़कर 11957 हो गई है। साल दर साल सीटों की संख्या में इजाफा हो रहा है। ताकि आइआइटी से इंजीनियर बनने का सपना देख रहे छात्रों को अधिक से अधिक मौका मिले।

नई आइआइटी ने कम किया आकर्षण

जानकारों की मानें तो आइआइटी में सीटें बढ़ाने के दबाव में जगह-जगह नई-नई आइआइटी तो खोल दी गई हैं, लेकिन उनकी गुणवत्ता पर ध्यान नहीं दिया गया। आइआइटी खडग़पुर के छात्र रहे मनीष कुमार कहते हैं, नई आइआइटी कॉरपोरेट कंपनियों में अपना ब्रांड इमेज नहीं बना पा रही है। कई जगह भाड़े की बिल्डिंग में आइआइटी की क्लासेज ली जा रही है। वहां रिसर्च या प्रैक्टिकल की स्तरीय व्यवस्था नहीं है। नई पीढ़ी इन संस्थानों में पढऩे को लेकर बेहद संवदेनशील है।

छह राउंड भी नहीं भर पाई आइआइटी-पटना की सीटें

आइआइटी पटना भी इंजीनियङ्क्षरग की पढ़ाई चाह रखने वाले छात्रों की पहली पसंद नहीं है। 2017 में ज्वाइंट एंट्रेंस एक्जाम के बाद ज्वाइंटसीट एलोकेशन अथॉरिटी (जोसा) की ओर से तकनीकी कॉलेजों में दाखिले के लिए काउंसलिंग के छह राउंड बाद भी आइआइटी-पटना में दर्जन भर सीटें खाली रह गई थीं। वहीं एनआइआइटी पटना में भी 65 सीटें खाली रह गईं थी। साफ है कि आइआइटी-पटना व एनआइटी पटना इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने वाले छात्रों को आकर्षित नहीं कर रही है। यहीं नहीं देश के अन्य आइआइटी का भी यही हाल है। पिछले साल आइआइटी व एनआइटी में हजारों सीटें खाली रह गईं थीं।

चार साल में कम हुए दो लाख आवेदन

यह गिरावट अपने-आप में चिंताजनक भी है। जहां 2014 में आइआइटी की प्रवेश परीक्षा में शामिल होने के लिए 13 लाख 56 हजार विद्यार्थियों ने आवेदन दिए थे। वहीं 2018 की प्रवेश परीक्षा में 11 लाख 48 हजार छात्र-छात्राओं ने पंजीयन कराया है। महज चार सालों में आवेदन की संख्या दो लाख घट गई है। आवेदकों की संख्या साल दर साल घटते जा रही है। पिछले साल यानी 2017 में जहां 11 लाख 99 हजार छात्रों ने आवेदन किया था। वहीं 2018 में 11 लाख 48 हजार छात्रों ने आवेदन किया। यानी पिछले साल की तुलना में इस बार 50 हजार कम आवेदन आए।

क्‍या कहते हैं एक्सपर्ट

पांच साल बाद बूम करेगा इंजीनियरिंग सेक्टर

सुपर 30 के संस्‍थापक आनंद कुमार कहते हैं कि 90 के दशक में जब भारत में सॉफ्टवेयर इंडस्ट्री ने बूम किया था। तब यहां हजारों इंजीनियर की मांग अचानक से बढ़ी थी। बंगलुरु पूरी दुनिया सॉफ्टवेयर हब माना जाता था। बैंकिंग, रेलवे, हॉस्पिटल व निजी कंपनियों को अपने काम को व्यवस्थित करने के लिए सॉफ्टवेयर की जरूरत थी। हर सेक्टर में कंप्यूटर का प्रयोग तेजी से बढ़ा था। लिहाजा आइआइटी तो छोडि़ए, निजी कंपनी से पासआउट इंजीनियर को आकर्षक पैकेज पर रखा जाने लगा। लेकिन अब इन सेक्टर में सॉफ्टवेयर की डिमांड कम होने लगी। नतीजा, इंजीनियर की मांग भी कम होने लगी।

पांच या सात साल बाद फिर से मैकेनिकल व सिविल इंजीनियर की मांग अचानक से बढ़ेगी। इन दिनों इंडस्ट्री इलक्ट्रोनिक कार आदि पर कार्य कर रही है। अन्य नई चीजों पर भी शोध चल रहा है। बहुत जल्द ही इन क्षेत्रों में इंजीनियरों की जबरदस्त मांग बढ़ेगी। आज छात्र इंजीनियरिंग के अलावा दूसरे क्षेत्रों में संभावनाएं देख रहे हैं। आइआइटी करने के बाद भी शानदार कॅरियर की गारंटी नहीं। दिल्ली आइआइटी के 30 प्रतिशत छात्रों का कैंपस सेलेक्शन नहीं होता। उन्हें बाहर जाकर नौकरी तलाशनी होती है।

आइआइटी खड़गपुर के पूर्व छात्र मनीष कुमार कहते हैं कि एक अध्ययन के अनुसार भारत के 55 प्रतिशत इंजीनियर इंजीनियङ्क्षरग करना नहीं जानते हैं। यानी उन्होंने प्राइवेट कॉलेजों से इंजीनियरिंग की डिग्री तो ले ली, लेकिन उन्हें व्यवहारिक धरातल पर इंजीनियरिंग नहीं आती। हाल के वर्षों में इंजीनियरिंग का क्रेज तेजी से घटा है। यह अच्छा बदलाव है कि आइआइटी के प्रवेश परीक्षा मे शामिल होने वाले छात्रों की संख्या घट रही है। यह संकेत दे रहा है कि नई जेनरेशन को फिर से लॉ, मैनेजमेंट या कॉमर्स की पढ़ाई आकर्षित कर रही है।

वहीं, आइआइटी के छात्र तुषार का मानना है कि पहले था कि माता-पिता ने सोच लिया की बच्चे को इंजीनियर बनाना है तो बच्चे उनके सपने के आगे समर्पित हो जाते थे। पिछले दो तीन सालों में इंटरनेट तेजी से हर हाथ में पहुंचने के कारण लोगों को इंजीनियरिंग के अलावा अन्य क्षेत्रों में भी संभावनाएं दिख रही है। आज छात्रों में विश्वास जगा है इंजीनियरिंग के अलावा अन्य बिजनेस, बैकिंग व मीडिया आदि क्षेत्र में शानदार कॅरियर है।

वहीं इंजीनियरिंग अभ्‍यर्थी अनीश आनंद कहते हैं कि यदि आइआइटी प्रवेश परीक्षा में शामिल होने वाले छात्रों की संख्या घटी है तो इसका मतलब यह नहीं हुआ कि आइआइटी के प्रति क्रेज घटा है। छात्र अपनी रुचि के हिसाब से कॅरियर का चुनाव कर रहे हैं। कुछ छात्र आइआइटी करने के बाद भी यूपीएससी की तैयारी करते थे, लेकिन अब छात्र सीधे सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं।