Review: थोड़ी भाषणबाजी के साथ सामने आया हिंदी मीडियम का सच

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आज रिलीज हुई इरफान खान और पाकिस्तानी एक्ट्रेस सबा कमर की ‘हिंदी मीडियम’ 4 स्टार देने लायक फिल्म है. यह बच्चे के स्कूल दाखिले के समय आई दिक्कतों को दर्शाती है. यह उन मिडिल क्लास घरों की कहानी है जिन्हे अग्रेजी नहीं बोलनी आती. दर्शक बखूबी इस कहानी से अपने आप को जोड़ पाएंगे.

बच्चे का स्कूल में दाखिला करना आसमान से तारे तोड़ लाने से कम नहीं है. और अगर स्कूल हाई प्रोफाइल हो तो जितने पापड़ बेलो, उतने ही कम. हर जुगाड़ लगा लो एडमिशन की कोई गारंटी नहीं. ऐसा ही कुछ हश्र ‘हिंदी मीडियम’ के माता-पिता इरफान खान और सबा कमर का भी है. फिल्म में अच्छे स्कूल में दाखिले के लिए तरसते माता-पिता के दर्द को बखूबी पेश किया गया है और इसके जरिए एक मौजूं समस्या को बेहतरीन ढंग से परदे पर उतारा गया है.

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आम दुकानदार की कहानी है ‘हिंदी मीडियम’
इरफान खान की चांदनी चौक में कपड़ों की दुकान है और सबा कमर उनकी होममेकर वाइफ. लेकिन उनकी मुश्किलों का दौर उस समय शुरू होता है जब उन्हें अपनी बिटिया का अंग्रेजी मीडियम स्कूल में दाखिला कराना होता है. इस दौरान उन्हें एहसास होता है कि अंग्रेजी के बिना कुछ नहीं है और इसके बिना मास से क्लास में कदम रखना नामुमकिन है.

घर से लेकर कपड़े तक बदल देते हैं माता पिता
बस दाखिले के लिए घर बदलने से लेकर स्टाइल बदलने और जिंदगी के कई रंग देखने का सिलसिला शुरू हो जाता है. बीपीएल से लेकर न जाने कितने पापड़ बेलने के लिए मां-बाप तैयार हो जाते हैं. इस तरह फिल्म मौजूदा शिक्षा व्यवस्था पर एक जबरदस्त तंज के रूप में सामने आती है. फिल्म की लोकेशन दिल्ली होने की वजह से मजा दोगुना हो गया है क्योंकि यह सीन हर साल स्कूलों में एडमिशन के दौरान देखने को मिलता है.

बड़ी बात कहती है फिल्म
‘हिंदी मीडियम’ में जिस आसानी से इस गंभीर विषय को दिखाया गया है- वह काबिलेतारीफ है. फिल्म गुदगुदाती चलती है और कहानी भी साथ ही चलती रहती है. कहानी कोई बहुत अनूठी तो नहीं लेकिन विषय सोचने पर मजबूर कर देता है, और इसके साथ डायरेक्टर ने जिस तरह का ट्रीटमेंट किया है वह बेहतरीन है.

बेहतरीन अभ‍िनय किया है इरफान ने
ऐक्टिंग के मामले में इरफान की टाइमिंग हमेशा की तरह शानदार रही है. फिर अगर तीखी बात को हल्के अंदाज में कहना हो तो इरफान कमाल के हैं. दीपक डोबरियाल ने भी जबरदस्त एक्टिंग की है,और वे इरफान के साथ कंधे से कंधा मिलकर चलते हैं. सबा कमर ने अंग्रेजी पर जान छिड़कने वाली पत्नी का रोल बखूबी निभाया है.

आज की शिक्षा प्रणाली पर सीधा वार
फिल्म का संदेश साफ है कि किस तरह हमारे देश में शिक्षा कारोबार बन गई है. माता-पिता और बच्चे एक ग्राहक मात्र बनकर रह गए हैं. यही नहीं, फिल्म इस बात को भी साफ कर देती है कि समाज में हिंदी बोलने वालों और अंग्रेजी बोलने वालों के बीच की गहराई कितनी गहरी है, और हर कोई अंग्रेजी बोलने वाली इस जमात में शामिल होने को आतुर है.

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‘शादी के साइड इफेक्टस’ जैसी फिल्म बना चुके साकेत ने इस बार तीर निशाने पर लगाया है. इस फिल्म को देखते हुए कई माता-पिता और बच्चे आसानी से इससे कनेक्शन बना पाएंगे