सुप्रीम कोर्ट में तीन तलाक पर चल रही बहस में बुधवार को केंद्र ने पूरी मजबूती से अपनी दलीलों को शीर्ष कोर्ट के सामने रखा. अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा कि केंद्र अभी ट्रिपल तलाक पर बहस कर रहा है, लेकिन वह तलाक के सभी मौजूदा तरीकों के खिलाफ है. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार इस मुद्दे पर एक कदम आगे बढ़ाकर विधेयक लाने को भी तैयार है.
‘मामला बहुसंख्यक बनाम अल्पसंख्यक का नहीं’
केंद्र ने कहा कि यह मामला बहुसंख्यक बनाम अल्पसंख्यक का नहीं है. यह एक धर्म के भीतर महिलाओं के अधिकार की लड़ाई है. इस मामले में विधेयक लाने के लिए केंद्र को जो करना होगा वह करेगा, लेकिन सवाल ये है कि सुप्रीम कोर्ट क्या करेगा?
इसके बाद चीफ जस्टिस ने कहा कि अस्पृश्यता, बाल विवाह या हिंदुत्व के भीतर चल रही अन्य सामाजिक बुराइयों को सुप्रीम कोर्ट अनदेखा नहीं कर सकता है. कोर्ट इस मामले में अपनी जिम्मेदारी से इनकार नहीं कर सकता है.
‘1400 साल से चल रहा उत्पीड़न है तीन तलाक’
दूसरी ओर अटॉर्नी जनरल ने कहा कि अगर तलाक के तीन तरीकों को खत्म किया जाता है, तो केंद्र इसके लिए प्रक्रिया बनाएंगे. एक समुदाय यह निर्णय नहीं कर सकता कि मौलिक अधिकारों के खिलाफ पर्सनल लॉ को जारी रखा जाए या नहीं. उन्होंने कहा कि मामला मर्द और औरत के बीच शक्ति संतुलन के मोलभाव का नहीं है. यह 1400 सालों की परंपरा नहीं, बल्कि 1400 साल से चलता आ रहा उत्पीड़न है.
अटॉर्नी जनरल ने कहा कि जो धर्म का हिस्सा नहीं है, उसे खत्म किया जा सकता है.
AIMPLB से कोर्ट का सवाल
इससे पहले सुनवाई के दौरान कोर्ट ने AIMPLB से पूछा कि क्या ये मुमकिन है कि महिला को यह अधिकार दे दिया जाए कि वह एक साथ तीन तलाक देने पर तलाक को स्वीकार ना करें. इस क्लॉज़ को निकाहनामा में भी शामिल किया जा सकता है, जिसमें कहा गया है कि तीन तलाक के तुरंत बाद भी शादी नहीं टूट सकती है.
AIMPLB की एडवाइजरी मानने को बाध्य नहीं काजी
कोर्ट ने कहा कि इस मुद्दे को तभी लागू किया जा सकता है जब काज़ी इस मुद्दे को जमीनी स्तर तक लागू करें. हालांकि AIMPLB की ओर से युसुफ हातिम ने कहा कि AIMPLB की एडवाइजरी को मानना सभी काज़ी के लिए जरूरी नहीं है. हालांकि वे हमारे सुझाव को मान सकते हैं.
बोर्ड ने कोर्ट को 14 अप्रैल 2017 को पास किये गए एक फैसले के बारे में भी बताया, जिसमें कहा गया था कि ट्रिपल तलाक एक पाप है, और ऐसा करने वालों का सामाजिक बहिष्कार किया जाएगा.
AIMPLB का पक्ष
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की तरफ से वकील कपिल सिब्बल ने एक अंग्रेजी अखबार में छपी सर्वे रिपोर्ट का हवाला दिया. सिब्बल ने कोर्ट को बताया कि मुसलमानों में एक साथ तीन तलाक वाले महज 0.4 फीसद मामले हैं. सिब्बल ने दलील दी कि अगर कोर्ट पर्सनल लॉ में दखल देता है तो ये घर के मामलों में दाखिल होने जैसा होगा. यानी ये तरीका दूसरे मामलों में भी जारी रह सकता है.
जमीयत उलेमा-ए हिंद की दलील
जमीयत उलेमा-ए हिंद की तरफ से वकील राजू रामचंद्रन ने कोर्ट के सामने कहा कि अगर तीन तलाक देने के बाद कोई पति अपनी पत्नी के साथ रहता है तो वो गुनाह होगा.
इससे पहले मंगलवार को हुई सुनवाई में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की ओर से वकील कपिल सिब्बल ने कहा था कि तीन तलाक का पिछले 1400 साल से जारी है. अगर राम का अयोध्या में जन्म होना, आस्था का विषय हो सकता है तो तीन तलाक का मुद्दा क्यों नहीं.
कपिल सिब्बल ने कहा कि इस्लाम धर्म ने महिलाओं को काफी पहले ही अधिकार दिये हुए हैं. परिवार और पर्सनल लॉ संविधान के तहत हैं, यह व्यक्तिगत आस्था का विषय है. जस्टिस कुरियन जोसेफ ने जब कपिल सिब्बल से पूछा कि क्या कोई ई-तलाक जैसी भी चीज है.
केंद्र ने कहा- लाएंगे नया कानून
इससे पहले सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वह समय की कमी के कारण सिर्फ तीन तलाक के मुद्दे पर ही सुनवाई करेगी. हालांकि कोर्ट ने कहा कि बहुविवाह और निकाह हलाला के मुद्दे पर भी सुनवाई का रास्ता भविष्य के लिए खुला है. केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय से कहा कि अगर शीर्ष अदालत तीन तलाक सहित तलाक के सभी तरीकों को निरस्तर कर देती है तो मुस्लिम समाज में शादी और तलाक के नियमन के लिए नया कानून लाया जाया जाएगा.
केंद्र ने यह भी आग्रह किया कि बहुविवाह और निकाह हलाला के मुद्दों को मौजूदा सुनवाई से अलग नहीं किया जाना चाहिए. इस पर सर्वोच्च अदालत ने भरोसा दिया कि ये सभी पहलू अपनी जगह मौजूद हैं और इन पर बाद में गौर किया जाएगा.
हम क्यों नहीं खत्म कर सकते तीन तलाक?
सुनवाई के दौरान मुकुल रोहतगी ने कहा कि अगर सऊदी अरब, ईरान, इराक, लीबिया , मिस्र और सूडान जैसे देश तीन तलाक जैसे कानून को खत्म कर चुके हैं, तो हम क्यों नहीं कर सकते. अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने पीठ से कहा, अगर अदालत तुरंत तलाक के तरीके को निरस्त कर देती है तो हम लोगों को अलग-थलग नहीं छोड़ेंगे. हम मुस्लिम समुदाय के बीच शादी और तलाक के नियमन के लिए एक कानून लाएंगे.
आपको बता दें कि ट्रिपल तलाक को लेकर 11 मई से सुनवाई चल रही है. शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हम सिर्फ ये समीक्षा करेंगे कि तलाक-ए-बिद्दत यानी एक बार में तीन तलाक और निकाह हलाला इस्लाम धर्म का अभिन्न अंग है या नहीं. कोर्ट इस मुद्दे को इस नजर से भी देखेगा कि क्या तीन तलाक से मुस्लिम महिलाओं के मूलभूत अधिकारों का हनन हो रहा है या नहीं.