SC-ST एक्ट पर केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा- कृपया आदेश वापस लें, इसने देश के सौहार्द को नुकसान पहुंचाया

597

नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने SC/ST एक्ट मामले में सुप्रीम कोर्ट में जवाब दाखिल किया. केंद्र सरकार ने एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट से अपना आदेश वापस लेने की मांग की. केंद्र ने कहा कि SC/ ST एक्ट पर आदेश ने देश के सौहार्द को नुकसान पहुंचाया. यह कानून के विपरीत है और इससे कानून हल्का हुआ है. इन दिशा निर्देशों से एक्ट के उन प्रावधानों पर असर पडा जो उसके दांत हैं. केन्द्र ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि अनुसूचित जाति – जनजाति कानून पर उसके फैसले ने इसके प्रावधानों को कमजोर किया है, जिससे देश को ‘बहुत नुकसान ’ पहुंचा है.

केंद्र सरकार की तरफ से AG ने कहा कि FIR दर्ज करने से पहले DSP द्वारा जांच के आदेश अथॉरिटी को एक्ट के विपरीत काम करने को विवश करना है और ये कानून का उलंधन है. उन्होंने कहा कि 20 मार्च का सुप्रीम कोर्ट का आदेश पूरी तरह से इस पर आधारित है कि कोर्ट कानून बना सकता गई और उसके पास कानून बनाने का अधिकार है लेकिन तब जब उस विषय को लेकर कोई कानून न हो. यानी कोर्ट तभी कानून बना सकता है जब कानून न हो.

केंद्र ने आगे कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने जो दिशानिर्देश जारी किया है वो एक्ट का विरोधभासी है क्योंकि कोर्ट ने एक्ट के प्रावधानों को सही माना है. सुप्रीम कोर्ट का कानून बनाने वाला बयान गलत है क्योंकि हम लिखित संविधान में रह रहे हैं, जो न्यायपालिका और विधायिका के अधिकारों में अंतर करता है और ये इसका बेसिक है. जो न्यायपालिका ने कहा है कि वो भारत के संविधान को बनाये रखने के लिए बाध्य है, क्या वह संसद और विधायिका द्वारा बनाये गए कानून के प्रतिकूल कोई कानून बना सकता है?

केंद्र ने कहा कि यह केस बेहद संवेदनशीलशील है और इससे देश में खलबली मची है और लोगों में गुस्सा, बेचैनी है और आपसी सौहार्द बिगड़ा है. केंद्र सरकार ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से कंफ्यूजन हुआ है और इस पर पुनर्विचार कर के कोर्ट द्वारा सही किया जाना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश से कानून हल्का हुआ है. बता दें कि इससे पहले सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने पुनर्विचार याचिका दाखिल की थी और सुप्रीम कोर्ट ने खुली अदालत में सुनवाई भी की थी.

उन्होंने यह भी कहा कि कार्यपालिका , विधायिका और न्यायपालिका के बीच अधिकारों का बंटवारा है जो ‘अनुल्लंघनीय’ है. अटार्नी जनरल ने कहा है कि इस फैसले ने अत्याचार निवारण कानून के प्रावधानों को नरम कर दिया है और इस वजह से देश को बहुत नुकसान हुआ है. केन्द्र यह भी कहा है कि शीर्ष अदालत के फैसले ने भ्रम की स्थिति पैदा कर दी है और पुनर्विचार के जरिये इसमें दिये गये निर्देशों को वापस लेकर इसे ठीक किया जा सकता है.