आर्मी चीफ ने दिया ये भरोसा और मोदी सरकार ने डोकलाम में चीन को कराया ‘सरेंडर’: सूत्र

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नई दिल्ली: चीन के साथ डोकलाम मुद्दा शांतिपूर्ण तरीके से सुलझ गया है, जिसे अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की बड़ी कूटनीतिक जीत कहा जा रहा है. सवाल उठ रहे हैं कि आखिर भारत ने ऐसा क्या किया कि चीन डोकलाम बॉर्डर से अपनी सेना पीछे हटाने को तैयार हो गया? सूत्रों की माने तो भारत की इस कूटनीतिक जीत में भारतीय सेना का बड़ा हाथ है. सेना ने नरेंद्र मोदी सरकार को भरोसा दिया था कि वह चीन को माकूल जवाब देने के लिए तैयार हैं. चीन की हरकतों के बाद भारतीय सेना ने डोकलाम बॉर्डर इलाके में अपनी स्थिति काफी मजबूत कर ली थी. सिक्किम के जिस बॉर्डर इलाके में विवाद था वहां चीन की तुलना में भारतीय सेना मूवमेंट करने में ज्यादा सक्षम थी.

सोमवार को चीन और भारत ने डोकलाम से अपनी सेना पीछे हटा लिए थे. डोकलाम भूटान का इलाका है, लेकिन चीन इसपर अपनी दावेदारी पेश करता है. इसी साल जून में भूटान ने कहा था कि चीन ने सिक्किम से सटे इलाके में बॉर्डर क्रॉस किया है, जिसका भारत ने समर्थन किया था. चीन इस इलाके में सड़क बना रहा था जिसे भारत ने पूर्वोत्तर राज्यों की सुरक्षा के लिए खतरा मानते हुए ऐतराज जताया था.

भारत सरकार के सूत्रों का कहना है कि समुद्र तट से 10,000 फीट ऊंचे इस इलाके में भारतीय सशस्त्र बल बेहद सतर्क है और यहां कोई भी ढील देने के मूड में नहीं है. सूत्रों का यह भी कहना है कि सेना प्रमुख बिपिन रावत ने सरकार को आश्वस्त किसा था वह चीन को मुंहतोड़ जवाब देने लिए सक्षम हैं. उन्होंने सरकार को भरोसा दिया था कि डोकलाम में भारतीय सेना चीन को भारी नुकसान पहुंचाने की स्थिति में है. सेना की यही तैयारी भारत को चीन पर कूटनीतिक जीत दिलाने में काफी मददगार साबित हुई.
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मालूम हो कि डोकलाम विवाद के बाद चीनी मीडिया के जरिए भारत पर हर रोज दबाव बनाया जा रहा था. वह सन 1962 की तरह शिकस्त देने की बातें कर रहा था. हालांकि भारत ने भी किसी भी मोर्चे पर अपने कदम पीछे नहीं हटाए.

डोकलाम क्यों है अहम?: डोकलाम भारत चीन और भूटान बार्डर के तिराहे पर स्थित है. भारत के नाथुला पास से मात्र 15 किलोमीटर की दूरी है. चुंबी घाटी में स्थित डोकलाम सामरिक दृष्टि से भारत और चीन के लिए काफी अहम है. साल 1988 और 1998 में चीन और भूटान के बीच समझौता हुआ था कि दोनों देश डोकलाम क्षेत्र में शांति बनाए रखने की दिशा में काम करेंगे.

युद्ध की स्थिति में डोकलाम में कब्जा होने का लाभ चीन को मिलेगा, जिसकी जद में सिलिगुडी से लेकर उसके आसपास का इलाका आ जाएगा.