गढ़गंगा बृज घाट के पास टोल प्लाज़ा पर लगा 4 घंटे तक जाम, अटके रहे राज महाजन

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20 सितंबर की सुबह राज महाजन राजधानी दिल्ली से गढ़गंगा बृज घाट पर अमावास नहान के लिए निकले. जाम में फंसने के अंदेशे को भांपते हुएराज ने सुबह 6 बजे अपनी कार का स्टेरिंग व्हील घुमाया और निकल पड़े. टोल प्लाज़ा के पास पहुंचकर राज महाजन को भीषण जाम का सामना करना पड़ा. तड़के आठ बजे भी टोल प्लाज़ा का हाल ऐसा थाजैसे किसी मच्छी बाज़ार का होता है. लगभग 4 घंटे राज को जाम से जद्दोजहद करनी पड़ीजहाँ जाने के लिए लगभग 2 घंटे का समय लगता होवहां चार घंटे सिर्फ जाम में अटके रहना सरकार के इंतज़ामात पर शक पैदा करता है.जाम लगने का सबसे बड़ा कारण ट्रक और कमर्शियल वाहनों’ का बेतरतीब तरीके से चलना था. यहाँ कारें इस तरह से दौड़ रही थीं…माफ़ कीजिएगा रेंग रही थींकि इनसे तेज़ तो आदमी पैदल चल सकता है. इस दौरान राज अपने चाहने वालों से फेसबुक लाइव के जरिये जुड़े रहे. राज ठहरे संगीतकार और कलाकार. जाम में फंसे होने पर लगे गाड़ी में गाने-बजाने. अक्सर लोग सफ़र में गाना-बजाना इसलिए करते हैं ताकि उनका बड़ा सफर आसानी से पूरा हो जाए. फेसबुक लाइव का विडियो देखने के लिए लिंक

किन्तु यहाँ तो जानबूझ छोटे से सफर को जाम ने लम्बा कर दिया. बहुत देर परेशानी सहने और वेट करने के बाद इस चरमराई व्यवस्था की शिकायत करने के लिए जब  National Highways Authority of India की वेबसाइट पर दिए गये फोन नम्बर्स पर फोन लगाया, तो ज्ञात हुआ साइट पर मौजूद नम्बर्स सिर्फ लिखने के लिए हैं. उन पर किसी तरह का कोई सम्पर्क नहीं होता. कॉल मिलाने पर टूं…टूं…टूं की आवाज़ के सिवाए कुछ नहीं सुनाई दिया. एक बार नहीं कई बार कॉल करने पर एक ही तरह का उत्तर मिला. ज़रा सोचिये नम्बर्स तो हैं, लेकिन लगे नहीं, ये किसी ऐसे घोटालेकी तरफ संकेत करता है जिसकी खबर मौजूदा सरकार को न हो. राज ने टोल प्लाज़ा पर 70 रुपये की पर्ची कटवाई, जोकि टोल प्लाज़ा पर हर किसीसे लिया जाता है. ठीक है, सुविधा के एवज में पैसे तो लिए जा रहे हैं, परन्तु सुविधा है कहाँ?

माननीय ट्रांसपोर्ट मिनिस्टर नितिन गड़करी जी आपकी जवाबदेही यहाँ बनती है कि आम जनता को कोई समस्या न आये. जिस वजह से टोल प्लाज़ा मच्छी बाज़ार बन गया है, उनका तुरंत निवारण किया जाए. आम जनता का पैसा और वक्त दोनों ही कीमती हैं. आम जनता अगर परेशानी में है, तोमौजूदा सरकार को भी उस परेशानी का एहसास होना चाहिए. ‘अच्छे दिन शायद ये नहीं होते.’