डोकलाम को लेकर चीनी NSA से मिले डोभाल! इन 5 कारणों से मौका चूकना नहीं चाहेगा चीन

671

राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ब्रिक्स के शीर्ष सुरक्षा अधिकारियों के साथ गुरुवार से शुरू हो रही बैठक में भाग लेने के लिए चीन में हैं. सिक्किम सीमा के पास स्थित डोकलाम को लेकर जारी गतिरोध के बीच डोभाल ने यहां अपने चीनी समकक्ष यांग जिची से बात की.

डोभाल और यांग दोनों भारत-चीन सीमा तंत्र के विशेष प्रतिनिधि हैं. ऐसे में डोभाल की चीन यात्रा से डोकलाम को लेकर भारत और चीन के बीच समाधान निकलने की संभावना बढ़ गई है.

वार्ता के बाद चीन के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार यांग जिची ने आधिकारिक बयान में बताया कि उन्होंने द्वपक्षिय संबंधों, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मसलों पर तीन देशों के वरिष्ठ प्रतिनिधियों के साथ विचार विमर्श किया. उन्होंने बताया कि मीटिंग में बहुपक्षीय और द्विपक्षीय मुद्दों पर भी चर्चा की गई.

डोभाल ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका ब्रिक्स के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की दो दिवसीय बैठक में भाग लेने के लिए बुधवार को यहां पहुंचे. इस बैठक की मेजबानी यांग कर रहे हैं. आधिकारिक कार्यक्रम के अनुसार, डोभाल ब्रिक्स देशों के शीर्ष सुरक्षा अधिकारियों के साथ चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग से भी मुलाकात करेंगे.

बता दें कि चीन के साथ सिक्किम क्षेत्र में सैन्य गतिरोध को तकरीबन एक महीने हो गए हैं. इस बीच बीजेपी सरकार के तीन मंत्री भी चीन गए थे, लेकिन सैन्य गतिरोध पर कोई असर नहीं पड़ा. दूसरी ओर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार होने के नाते डोभाल के हाथ में सुरक्षा संबंधी फैसला लेने का अधिकार है.

भारतीय सेना ने भारत-भूटान-चीन सीमा पर चीनी सेना को सड़क बनाने से रोक दिया था जिसके बाद एक महीने से ज्यादा समय से चीन और भारत की सेना आमने-सामने है. चीन ने दावा किया है कि वह अपने क्षेत्र के भीतर सड़क का निर्माण कर रहा है. भारत ने इस निर्माण का विरोध जताया है और डर जताया है कि इससे चीन को पूर्वोत्तर राज्यों तक भारत की पहुंच खत्म करने में मदद मिलेगी.

डोभाल की यात्रा के मद्देनजर विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लू कांग ने बुधवार को दोहराया था कि भारत जब तक डोकलाम इलाके से सेना को बिना शर्त वापस नहीं बुलाता तब तक उसके साथ कोई सार्थक बातचीत नहीं हो सकती. लू ने यह भी कहा कि विदेश मंत्री वांग यी ने इस मुद्दे पर आधिकारिक रूप से चीन का रूख स्पष्ट कर दिया है.

बहरहाल, चीन इस बात पर कायम है कि भारतीय सेना की वापसी के बिना कोई सार्थक बातचीत नहीं हो सकती, लेकिन चीन के विदेश मंत्रालय ने डोभाल और यांग के बीच द्विपक्षीय बैठक का संकेत दिया है जो ब्रिक्स के एनएसए की बैठक की पंरपरा का हिस्सा है. हालांकि चीन भले ही गीदड़भभकी दे रहा हो, लेकिन वो भी युद्ध से बचना चाहेगा.

भारत में चीन के आर्थिक हित

अप्रैल 2000 से मार्च 2017 तक भारत में कुल हुए 332 अरब डॉलर के विदेशी निवेश में चीन की हिस्सेदारी महज 1.63 अरब डॉलर की रही है. वर्ष 2010-11 में चीन ने भारत में केवल 20 लाख डॉलर का निवेश किया था. उस साल भारत में हुए 14 अरब डॉलर के एफडीआई को देखें तो चीन का निवेश बहुत ही कम था. साल 2014-15 में यह 49.5 करोड़ डॉलर था तो 2015-16 में 46.1 करोड़ डॉलर रहा था. 2014-15 में भारत में कुल 31 अरब डॉलर और 2015-16 में 40 अरब डॉलर का एफडीआई आया था.

साउथ चाइना सी की तरह अमेरिका को न मिल सके मौका

चीन नहीं चाहेगा कि साउथ चाइना की तरह अमेरिका को एक बार उसके मामलों में हस्तक्षेप करने का मौका मिले. दक्षिणी चीन सागर पर विवाद के बाद अमेरिका काफी आक्रामक रूख अपना लिया है. भारत के सैन्य गतिरोध पर अमेरिका हस्तक्षेप करने से नहीं चूकेगा.

क्षेत्रीय सहयोग RCEP की बैठक

हैदराबाद में रीजनल कंप्रिहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप (क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी या RCEP) के लिए 16 देशों के 100 से ज्यादा अधिकारी इकट्ठा होंगे. इस बैठक में भारत मेजबान होगा, तो चीन बतौर मेहमान शामिल होगा. इस बैठक में एशिया केंद्रित ट्रेड डील पर 16 देशों के बीच बातचीत होगी. चीन और भारत इस ग्रुप के बड़े खिलाड़ियों में से हैं. हालांकि दोनों देशों के बीच सीमा तनाव को लेकर मुठ्ठियां भिंची हुई हैं. चीन नहीं चाहेगा कि सीमा विवाद व्यापार समझौते के बीच बाधा न बन जाए.

OBOR पर भारत के नरम पड़ने की संभावना

चीन के महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट वन बेल्ट वन रोड को लेकर भारत अपनी आपत्ति जताई है. दरअसल इसी प्रोजेक्ट के तहत चीन पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में चीन पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर का निर्माण कर रहा है. भारत की आपत्ति इसी को लेकर है. चीन में आयोजित में इसी प्रोजेक्ट पर आयोजित कॉन्फ्रेंस का भारत ने बहिष्कार किया था. डोकलाम का सैन्य गतिरोध हो सकता है इस मुद्दे पर भारत को झुकाने की चीन को कोशिश हो.

SCO-BRICS के मंच पर भी बस सकता है तनाव

अगर भारत और चीन के बीच तनाव बढ़ता है तो इसका असर शंघाई को-ऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन और ब्रिक्स के मंच पर भी दिखेगा. अभी अजीत डोभाल ब्रिक्स के ही राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की बैठक में हिस्सा लेने गए हैं. ब्रिक्स विकासशील देशों का एक बड़ा मंच है और चीन को इस बात का अहसास है भारत की उपस्थिति को आर्थिक और वैश्विक मंचों पर खारिज नहीं किया जा सकता.

डोकलाम में भारत का दावा कानूनी रूप से मजबूत है और इस बाबत खुद विदेशमंत्री सुषमा स्वराज ने संसद में अपनी बात रखी थी. अगर भारत के साथ सैन्य गतिरोध बढ़ता है, तो इसका सीधा असर ब्रिक्स और एससीओ पर पड़ेगा. चीन ऐसा कभी नहीं चाहेगा.