नई दिल्ली: यह बात किसी से नहीं छिपी कि केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के संबंध लालू यादव से कभी अच्छा नहीं रहे. बिहार में लालू यादव की सत्ता गयी उसमें पासवान के साथ उनकी दुश्मनी भी एक कारण रही है, लेकिन लोजपा के के राष्ट्रीय सम्मेलन में पासवान ने दो बातें दिल खोल कर कही. उन्होंने कहा कि वर्ष 2004 में लालू यादव के दबाव में उन्हें रेल मंत्री नहीं बनाया गया था. यह बात राजद के नेता भी मानते हैं कि अगर लालू ने पासवान को मंत्री बनने दिया होता तो अपने रेल मंत्री के कार्यकाल के दौरान किये गए घोटालों से बच सकते थे और शायद बिहार में सरकार भी नहीं जाती और हर दिन होने वाले पूछताछ से भी बच सकते थे.
इस प्रकरण के बाद पासवान और लालू के रिश्ते इतने खराब हो गए कि वर्ष 2005 में हुए विधानसभा चुनाव में पासवान अकेले मैदान में आए. जिसके कारण बिहार में त्रिशंकु विधानसभा हुई और लालू परिवार की 15 वर्षों तक चल रही सत्ता का भी अंत हुआ. लालू ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर विधानसभा भंग करा दी और उसी साल नवंबर में हुए चुनाव में पासवान फिर अकेले लड़े, लेकिन सत्ता नीतीश कुमार को मिली. हालांकि पासवान बाद में लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव में लालू के साथ गठबंधन कर मैदान में गये तो जरूर, लेकिन वर्ष 2009 में लोकसभा का चुनाव भी हार गए और विधानसभा में भी वर्ष 2010 में उनकी पार्टी की दुर्गति हो गयी.
रामविलास ने बिहार के मुख्यमंत्री पद पर भी अपनी राय रखी और कहा कि अब तक तीन बार इस पद को उन्होंने ठुकराया है. पहली बार वर्ष 1990 में जब विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार में वो केंद्रीय मंत्री थे, तब लालू यादव के खिलाफ शायद रामसुंदर दास की जगह उन्हें चुनाव लड़ने के लिये बोला गया था, लेकिन उन्होंने मना कर दिया था. वहीं, वर्ष 2000 में जब सरकार बनाने का मौका आया तब तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की पहली पसंद रामविलास ही थे, लेकिन उनके मना करने पर नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनने का मौका दिया गया और वो पहली बार सात दिनों के लिए मुख्यमंत्री बने.
हालांकि, तीसरी बार के बारे में पासवान ने कोई खुलासा नहीं किया, लेकिन पासवान की बातों से बार-बार केंद्रीय मंत्री रहने के बावजूद बिहार का मुख्यमंत्री ना बनने का दर्द जरूर झलक रहा था. ऐसा कहना गलत नहीं होगा कि लालू की मौजूदा हालत के लिए पासवान से सियासी अदावत भी बड़ा फैक्टर रहा है.