दिल्ली दंगा और दंग करने वाली कुछ बाते: मोदस्सिर महमूद

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कल दिल्ली के हिंसा प्रभावित क्षेत्रों में से एक खजूरी जाना हुआ। जैसा कि आपको पता ही है कुछ दिनों पहले चार दिनों तक उत्तर पूर्वी दिल्ली यमुनापार में दंगाइयो ने उत्पात मचा रखा था। इनमें सबसे ज्यादा हिंसा प्रभावित इलाक़े जाफ़रबाद, मौजपुर, मुस्तफाबाद, चांद बाग, गोकलपुरी और भजनपुरा में अब धीरे-धीरे माहौल शांत हो रहा है। दरअसल वहां के हालात को देखने के बाद अगर हम कुछ न लिखे तो ये पत्रकारिता के छात्र होने के नाते कलम के साथ बेईमानी होगी। पता नही समाज मे आज कैसे इतनी नफ़रत फैल गई, क्यों लोग एक दूसरे के खून के प्यासे हो गये है। हिन्दु मुस्लिम का ये जहर इतना किसने फैलाया ? इन सारे सवालों का जवाब ढूँढने की कोशिश की जा सकती है मगर जवाब का मिलना इतना आसान नही है। कल जब हम कश्मीरी गेट से वजीराबाद खजूरी होते हुए भजनपुरा के तरफ बढ़ रहे थे तो सड़कों पर दर्जनों गाड़ियां जली हुई दिखी। चारों तरफ लोग इसी दंगे की बात कर रहे थे किसने किसको पहले मारा, किधर के लोग ज्यादा मरे किधर के कम। मुल्लों ने कैसे इलाके में उत्पात मचाया इसकी भी चर्चा हो रही थी। हर चौक-चौराहे और गलियों में भारी संख्या में सुरक्षा बल तैनात थे बावजूद इसके लोगों मे डर और इलाके में अब भी अशांति का माहौल है। जिस इलाके मे जाना हुआ वहां एक तरफ हिन्दू तो एक तरफ मुस्लिमों की अच्छी खासी आबादी है, साथ ही गुर्जरो की भी संख्या दूसरे तरफ के मुकाबले इधर ज्यादा है। एक स्थानीय व्यक्ति ने कहा कि यहां मुस्लिमों ने हिन्दुओं और गुर्जरो ने मुस्लिमों को पीटा। अगर गुर्जर नही होते तो शायद इधर के मुस्लिम हिन्दुओं को ज्यादा नुकसान पहुंचाते। तो क्या बाक़ी जगह भी ऐसे ही हालात रहे होंगे ? या क्या यहाँ के हिन्दू सच में शांत बैठे थे कुछ नही कर रहे थे नही असल मे इधर नफ़रत की बीज इन्हीं लोगों ने बोई थी ये अलग बात है कि फसल मुस्लिमों ने काट ली। जब वापस मै कश्मीरी गेट के तरफ लौट रहा था तो एक ऐसे मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति से मुलाकात हुई जिसके शरीर के हर एक कतरे मे मुस्लिमों के खिलाफ़ नफ़रत दौर रही थी अगर उस समय हम ये बता दिए होते कि मै मुस्लिम हूँ तो शायद हमें भी वह जिंदा जला कर राख कर दिया होता या पीट-पीट कर मौत का घाट उतार दिए होते। क्योंकि जब वह मुसलमानों के खिलाफ़ पागलों जैसी बाते कर रहा था तो साथ में जो दो चार लोग थे वह भी उनके बातों से सहमत नजर आ रहे थे। वो कह रहा था हिम्मत है तो कटूए इधर आकर दिखाए मुल्लों की तो आज उसकी औकात पता चल ही गई होगी। वो यह भी कह रहा था कि इधर तो मुल्ले अब दिख नही रहे है इसलिए हमारे लोग चांद बाग के तरफ गयें है जहां खोज-खोज कर कटूओ की कूटाई चल रही है। वहां के कुछ हिन्दू भाई खुश है कि इलाक़े से मुस्लिमों का पलायन शुरू हो रहा है। ऑटो का ड्राइवर भी ख़ुश है कि इधर अब मेरी गाड़ी लगेगी इस रूट मे अब सिर्फ हिन्दूओ की गाड़ी चलेगी। पहले ज्यादातर मुल्ले शायद इधर से सवारी ले जाते रहे होंगे। एक व्यक्ति से तो यह भी सुनने को मिला कि मुल्ला पैसा कमाते ही सबसे पहले हथियार खरीदते है। उनके पास बंदूकें आसानी से आ जाती है, हमलोगों को खरीदने से पहले लाइसेंस बनवाने के लिए सोचना पड़ता है। इसी तरह और भी न जाने क्या-क्या मनगढ़ंत और बेबुनियाद झूठी बाते सुनने को मिली। कुछ लोग इस हिंसा को केजरीवाल की देन कह रहे है तो क्या सच में उन्हें नही पता कि कपिल मिश्रा कौन है और उसने पांच दिन पहले क्या बोला ? क्या सच में हजारों गाड़ियां, घर, दुकाने, मंदिर, मस्जिद, मज़ार सैकड़ो लोगों की मौत का जिम्मेदार कपिल नही केजरीवाल है ? वहां चंद घंटे गुजारने के बाद मुझें ऐसा लगा कि कुछ लोग मानसिक रूप से परेशान है उनपर हिन्दू मुस्लिम वाली नफरत की राजनीति का खुमार ऐसा चढ़ा हुआ है कि सरकार और पुलिस से सवाल पूछने और मामले की निष्पक्ष जाँच की माँग करने के बजाय यहां के लोग मुसलमानों को गंदी-गंदी गालियां देकर मन को संतुष्टि दे रहे है और इलाके में शांति बहाल कर रहे है।

मोदस्सिर महमूद

छात्र, जामिया मिल्लिया इस्लामिया