दिल्ली में उत्तर कोरियाई दूतावास में इतना सन्नाटा क्यों?

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अगर आपको उस इमारत में जाना है तो मेन गेट की हालत देखकर यही लगेगा कि यहां कोई रहता नहीं है और आप लौट जाएंगे.

गेट पर कोई गार्ड नहीं. कोई रिसेप्शन नहीं. घर की छत पर एक अजनबी सा झंडा लहरा रहा है. आप वहां जाएं तो ऐसा लगेगा कि कोई चुपके से दूतावास चला रहा है.

जब मैंने पिछले गेट की घंटी बजाई, एक महिला निकलीं. वो न इंग्लिश जानती थीं और न ही हिन्दी. फिर भी उन्होंने टूटी-फूटी इंग्लिश में कहा कि अभी कोई नहीं है.

उन्होंने मेरा विजटिंग कार्ड ले लिया. मैं कुछ देर तक इंतज़ार करता रहा कि कोई तो आएगा. आधे घंटे बाद घर के सामने एक कार रुकी. कार का नंबर देखने से लगा कि किसी डिप्लोमैट की गाड़ी है.

मैंने भागकर उनसे बात करने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया और गेट खोल अंदर चले गए.

दिल्ली में उत्तर कोरिया का दूतावास

उत्तर कोरिया के दूतावास का ये हाल क्यों?

भारत और उत्तर कोरिया के बीच अच्छे व्यापारिक संबंध हैं फिर भी उसका दूतावास इस हाल में क्यों है?

जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में कोरियन स्टडीज की प्रोफ़ेसर वैजयंती राघवन का कहना है, ”किसी देश का दूतावास कैसा है यह उसकी हैसियत को भी दर्शाता है”.

उत्तर कोरिया और भारत के बीच का संबंध 70 के दशक में बढ़िया था. भारत और उत्तर कोरिया के अच्छे व्यापारिक रिश्ते रहे हैं.”

राघवन ने कहा, ”उत्तर कोरिया की नजदीकी पाकिस्तान और चीन से बढ़ी वहीं भारत दक्षिण कोरिया और जापान के करीब आया. जब उत्तर कोरिया का बाकी दुनिया से अलगाव हुआ तो भारत के साथ भी उसके संबंधों पर असर पड़ा.”

उत्तर कोरिया का झंडाइमेज कॉपीरइटREUTERS

भारत के साथ उत्तर कोरिया के संबंध

राघवन ने कहा कि उत्तर कोरिया का कोई डिप्लोमैट बात करने के लिए तैयार नहीं होता है. उन्होंने बताया कि वहां के लोग भी काफ़ी डरे हुए होते हैं.

अगर किसी भारतीय को उत्तर कोरिया का वीज़ा चाहिए तो उसे पहले बीज़िंग जाना होता है या फिर चीनी विदेश मंत्रालय के ज़रिए ही वीज़ा दिया जाता है.

राघवन ने बताया कि इसी तरह उत्तर कोरिया में भी भारतीय दूतावास बहुत बेहतर स्थिति में नहीं है.

उत्तर कोरिया में कोई राजदूत बनकर नहीं जाना चाहता है. नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद जानी-मानी चीनी अनुवादक जसमिंदर कस्तुरिया को प्योंगयांग में भारतीय राजदूत नियुक्त किया गया था.

उत्तर कोरिया में लोगइमेज कॉपीरइटEPA

जसमिंदर की नियुक्त से साफ़ हो गया कि भारत उत्तर कोरिया में विदेश सेवा के उच्च स्तरीय अधिकारी की नियुक्ति नहीं कर पा रहा, उनके पहले एक स्टेनोग्राफ़र राजदूत की भूमिका निभा रहे थे.

उत्तर कोरिया में भारत की तरफ़ से राजदूत के पद पर स्टेनोग्राफर, असिस्टेंट और रिज़र्व डिप्लोमैट्स को प्रमोट कर भेजा जाता है.

कस्तुरिया ‘इंटरप्रेटर काडर’ से हैं. यह काडर उन अधिकारियों का समूह होता है जो आईएफएस अधिकारियों के साथ दस्वावेजों के अनुवाद का काम करता है.

इसके साथ ही जब नेता विदेश यात्रा पर होते हैं तो उनके साथ ये अनुवादक के तौर पर जाते हैं.

उत्तर कोरिया जाने में अनिच्छा

जेएनयू में कोरियन स्टडी सेंटर के अध्यक्ष प्रोफ़ेसर रविकेश का कहना है, ”प्योंगयांग जाने में विदेश सेवा के अधिकारियों की अनिच्छा इस बात को दर्शाता है कि भारत की दिलचस्पी उत्तर कोरिया में लगातार कम हो रही है”.

राघवन की राय में उत्तर कोरिया से संबंधों में गर्मजोशी भारत के लिए फ़ायदेमंद साबित हो सकती थी क्योंकि उत्तर कोरिया प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध देश है, यहां कोयला, बॉक्साइट और अन्य खनिज संपदा प्रचुर मात्रा में पाई जाती है.

उन्होंने कहा, “अगर हम उत्तर कोरिया को चीन और पाकिस्तान के साथ मज़बूत साठगांठ से अलग करना चाहते हैं तो उसके साथ बेहतर संबंध बनाना ज़रूरी होगा.”

1990 में आर्थिक उदारीकरण के बाद भारत में सबसे पहले आगे बढ़कर निवेश करने वाले देशों में दक्षिण कोरिया भी एक था. तब से नई दिल्ली का सोल की तरफ़ झुकाव ज्यादा घोषित तौर पर सामने आया.