देहरादून : रंग ए परवीन शकीर का आयोजन

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देहरादून : कवि कुंभ और बीइंग वूमन की ओर से देहरादून में 24 नवंबर रविवार की शाम प्रख्यात शायरा परवीन शाक़िर की याद में रंग-ए- परवीन शाक़िर के उन्वान से मुशायरा आयोजित किया गया और साथ ही शब्दश: कवि कुंभ का लोकार्पण किया गया,किताब पर डॉ रामविनय सिंह ,इन्दु कुमार पांडेय जी और डॉ एस फारुख ने अपने विचार व्यक्त किये ,ये किताब कविकुम्भ पत्रिका के शब्द शिखर स्तंभ में लिए गए और छापे गए विख्यात सहित्यकारों के साक्षत्कार हैं ,जो भी पाठक किसी कारणवश सारे अंक एक साथ ना पढ़ सके हों उनके लिए ये किताब महत्वपूर्ण और दिलचस्प होगी क्योंकि ये सारे साक्षत्कार सिर्फ साहित्य नहीं बल्कि साहित्यकार के निजी जीवन और साहित्य और समाज के प्रति उसके अपने दृष्टिकोण पर भी है .
इसमें दो सत्रों में कार्यक्रम हुए राष्ट्रीय और अंर्तराष्ट्रीय स्तर के मशहूर शायर /शायरात
कवि कवयित्री और स्थानीय साहित्यकारों में से शिरकत की
मुख्य अतिथि हिमालय ड्रग्स के चेयरमैन
डॉ .एस. फारूख रहे कार्यक्रम के दोनों सत्र में सदारत
इंदू कुमार पांडेय ने की ,गेस्ट ऑफ़ ऑनर दिल्ली से आई राशिदा बाक़ी हया शायदा रही ,विशिष्ट अतिथियो में उत्तराखंड हिंदी सहित्य समिति के अध्यक्ष डॉ राम विनय सिंह , एम डी डी ए चीफ अभियंता संजीव जैन साज , ब्रिगेडियर के.जी. बहल रहे .

आमंत्रित शायर/ शायरात में प्रशिद्ध शायरा राशिदा बाक़ी हया अलीना इतरत ,गजाला ख़ान , विवेक बादल बाज़पुरी ,पुष्पेंद्र पुष्प कानपुर|
देहरादून की मुकामी शायरा जसकिरन चोपड़ा , मीरा नवेली , रंजीता सिंह फ़लक़ रहीं|

दोनो सत्रों का संचालन ,रंजीता सिंह फ़लक ने किया

स्थानीय आमंत्रित साहित्यकारों में नदीम बर्नी, रईस फ़िगार , राकेश जैन ,शोहर जलालाबादी,परवेज गाजी ,शादाब अली ,दर्द गढवाली ,कविता बिष्ट ,निकी ,और अन्य लोगों ने शिरकत की

आमंत्रित अथितियों में आर के बख्शी ,रजनीश त्रिवेदी,एम एल सकलानी, गौरव कुमार , विश्वम्भर नाथ बजाज और अन्य गण मान्य लोग रहे l

रंजीता सिंह फ़लक
मौला मुझे इत्र सा महकने का हुनर दे
जिस सिम्त भी जाऊं खुश्बू सी बिखर जाऊं||

गज़ाला खान
जिंदगी माँगती रहती है सांसो का हिसाब
कोई आराम नही मौत के आराम के बाद ||

राशिदा बाक़ी हया
जब टूटा तमन्नाओ का शीशा मेरे आगे ll
मेरा ही सरापा था जो बिखरा मेरे आगे ll

पुष्पेंद्र पुष्प
ख़ूब रोका ठगा खिजाँ ने क्या करें
हम बहारो के कहे में आ गए ll

अलीना इतरत
अभी तो चाक पे मिट्टी का रक़्स जारी है ll
अभी कुम्हार ही नीयत बदल भी सकती है ll

विवेक बादल बाज़पुरी
बेटियों से गुरेज़ है जिनको
उनके आँगन ख़ुशी को तरसेंगे

जसकिरन चोपड़ा

कुछ लोग अब यहां के सुल्तान हो गये ll
उन्ही के हवाले ये शहर मेरा हो गया ll

ममता वेद
दर्द ए दिल तब भी था लेकिन तुम कभी न रोये
आज अश्को का समंदर क्यो बहाया तुमने ll

मीरा नवेली
घूँट भर चाँदनी पी थी कभी मुहब्बत की
हमसे ना पूछिए चाँद का स्वाद कैसा है
~ मीरा ||