पैदावार बढ़ने से भी परेशान हैं एमपी-महाराष्ट्र के किसान By admin - June 8, 2017 1304 Share on Facebook Tweet on Twitter भारत में किसान आक्रोश में हैं. महाराष्ट्र में उन्होंने सात ज़िलों में कमोबेश हफ़्ते भर हड़ताल की, सड़कों पर दूध बहाया, बाज़ार बंद करवाए, प्रदर्शन किया औऱ सब्ज़ियां ले जाने वाले ट्रकों पर हमले किए. पड़ोस के मध्य प्रदेश में मंगलवार को पुलिस से झड़प के बाद पांच प्रदर्शनकारी किसानों की गोली लगने से मौत हो गई, जिसके बाद कर्फ़्यू लगा दिया गया. मोदी तो मौन हैं ही, कृषि मंत्री ने भी ओढ़ी चुप्पी मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के किसान क्यों हैं नाराज़ पिछले महीने तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के किसानों ने अपनी लाल मिर्च की फ़सल जलाकर विरोध जताया था. किसान क़र्ज़ माफ़ी और फ़सलों के ज़्यादा दाम की मांग कर रहे हैं. दशकों से भारत में खेती सूखे, छोटे खेत, घटते जल-स्तर, उपजाऊपन में गिरावट और आधुनिकीकरण के अभाव से जूझ रही है. इमेज कॉपीरइटAFPImage captionमंदसौर में कर्ज माफी और स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को मनवाने को लेकर जारी है किसान आंदोलन (सांकेतिक तस्वीर) भारत के आधे से ज़्यादा लोग खेतों में काम करते हैं, लेकिन भारत की जीडीपी में कृषि की हिस्सेदारी सिर्फ़ 17 फीसदी है. सीधे कहें तो खेतों से बहुत सारे लोगों को रोज़गार मिला है, लेकिन उत्पादन बहुत कम हो रहा है. फ़सलें ख़राब होने से किसानों की ख़ुदकुशी की घटनाएं जारी हैं. हालांकि मौजूद अस्थिरता की जड़ें कई समस्याओं में है. कार्टून: किसान की फसल और जान की कीमत ‘सरकारी कर्मी को कंडोम भत्ता, किसान को लागत भी नहीं’ महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में किसान सड़कों पर इसलिए हैं क्योंकि अच्छे मानसून से अच्छी फ़सल हुई है. इससे कई फ़सलों के दाम घट गए हैं. उदाहरण के लिए, प्याज़, अंगूर, सोयाबीन, मेथी और लाल मिर्च की हालत काफी मंदी है. भारत में सरकार फ़सलों की कीमत तय करती है और उत्पादन को प्रोत्साहित और आमदनी सुनिश्चित करने के लिए किसानों से फ़सल ख़रीदती है. लेकिन ज़्यादातर जगहों पर, सरकारें किसानों को फ़ायदे लायक भुगतान नहीं कर पाई हैं. तो भारी पैदावार से संकट कैसे पैदा हुआ? कुछ लोग मानते हैं कि पिछले साल मोदी सरकार के नोटबंदी के फ़ैसले ने फ़सलों के दाम को प्रभावित किया है. इमेज कॉपीरइटAFP/GETTYImage captionसांकेतिक तस्वीर ‘इंडियन एक्सप्रेस’ के ग्रामीण मामलों और खेती के संपादक हरीश दामोदरन के मुताबिक, फ़सल लगाने की प्रक्रिया नोटबंदी से बेअसर रही क्योंकि किसानों ने उर्वरकों, कीटनाशकों और मज़दूरी के भुगतान के लिए रिश्तेदारों और जानने वालों से उधार लेकर काम चला लिया. इसलिए काफ़ी ज़मीन जोती गई, अच्छी बारिश हुई और पैदावार अच्छी हुई. लेकिन दामोदरन मानते हैं कि जो अतिरिक्त पैदावार हुई, उसे ख़रीदने के लिए व्यापारियों के पास नकद रकम नहीं थी. ‘महाराष्ट्र में बीजेपी यमराज, मध्य प्रदेश में जनरल डायर’ वह कहते हैं, ‘हालांकि अब पहले जैसी कैश की समस्या नहीं है, लेकिन उपलब्धता की दिक्कत अब भी है. मैं व्यापारियों से बात करता रहा हूं जो हमेशा कैश की कमी की बात कहते हैं. मुझे लगता है कि दाम इसी वजह से गिरे हैं.’ किसानों के बीच बढ़ता डर महाराष्ट्र के लासनगांव- जहां एशिया का सबसे बड़ा प्याज़ बाज़ार है- के एक बड़े प्याज़ व्यापारी इससे सहमत नहीं थे. उनका कहना था कि नकद की कमी की वजह से फ़सलों की कीमत घटने की बात बढ़ा-चढ़ाकर कही गई है. मनोज कुमार जैन ने कहा, ‘बिल्कुल अच्छी फ़सल हुई है. लेकिन बहुत सारे व्यापारियों ने नकद, चेक और नेट बैंकिंग से भुगतान करके फ़सल खरीदी है.’ फिर भी बहुत सारे लोग मानते हैं कि इस संकट की जड़ें दरअसल अतिरिक्त फ़सल से निपटने में भारत की पुरानी नाकामी में है, क्योंकि उसके पास स्टोरेज और प्रोसेसिंग की पर्याप्त क्षमता नहीं है. अंतरराष्ट्रीय आर्थिक संबंधों पर भारतीय अनुसंधान परिषद में कृषि मामलों के जानकार अशोक गुलाटी कहते हैं, ‘अगर बारिश अच्छी हो तो आपकी पैदावार अच्छी होती है और दाम घट जाते हैं. इस तरह अतिरिक्त पैदावार की चोट किसानों पर पड़ती है और यह भारत में फ़सलों की कीमत तय किए जाने के तरीकों की ख़ामियां भी उजागर करती है.’ इमेज कॉपीरइटAFPImage captionसांकेतिक तस्वीर प्याज़ का ही उदाहरण ले लें. प्याज़ में 85 फ़ीसदी पानी होता है और सूखने पर इसका वज़न तेज़ी से घटता है. लासनगांव में व्यापारी किसानों से फ़सल खरीदकर उसे तिरपाल से ढंककर रखते हैं. मौसम ठीक रहा तो रखी गई फ़सल का तीन से पांच फ़ीसदी हिस्सा ही खराब होता है. लेकिन पारा चढ़ने पर ज़्यादा प्याज़ सूखती है और कई बार 25 से 30 फीसदी फ़सल भी बर्बाद हो जाती है. हालांकि आधुनिक कोल्ड स्टोरेज में प्याज़ 4 डिग्री सेल्सियस पर लकड़ी के बक्सों में रखी जा सकती है. यहां फसल का अधिकतम 5 फीसदी हिस्सा खराब होने की आशंका होती है. एक किलो प्याज़ को एक महीने के लिए स्टोर करने में एक रुपये से भी कम ख़र्च होता है. इस लिहाज़ से सरकार को सब्जियों के खुदरा बाज़ार में आने के बाद भी उन्हें सस्ती बनाए रखने की जरूरत है. महाराष्ट्र: सिर मुंडवा कर किसानों ने किया विरोध ख़राब स्टोरेज भी है एक कारण सबसे पहले तो भारत के पास पर्याप्त संख्या में कोल्ड स्टोरेज नहीं है. कुल करीब 7 हजार कोल्ड स्टोरेज हैं, जिनमें से ज्यादातर में उत्तर प्रदेश में आलू से भरे रहते हैं. इसलिए फल और सब्जियां जल्दी खराब होती हैं. जब तक भारत में फसलों का स्टोरेज बेहतर नहीं होता, अतिरिक्त फ़सल किसानों के लिए बर्बादी ही ला सकती है. दूसरा, फूड प्रोसेसिंग इतनी नहीं होती कि फ़सलों को ख़राब होने से रोका जा सके. दोबारा प्याज़ का उदाहरण देखिए. इमेज कॉपीरइटAFPImage captionसांकेतिक तस्वीर प्याज़ की घटती-बढ़ती कीमतों पर काबू करने का एक तरीका ये है कि उन्हें ‘डिहाइड्रेट’ कर दिया जाए और प्रोसेस्ड प्याज़ की उपलब्धता बढ़ाई जाए. लेकिन अभी भारत के कुल उत्पादन का सिर्फ 5 फीसदी फल औऱ सब्जियां प्रोसेस की जाती हैं. तीसरा, किसान बीते साल फ़सल की कीमत के हिसाब से नई बुआई करते हैं. अगर कीमतें अच्छी रहती हैं तो वे और फसल बोते हैं, और अच्छी कीमतों की उम्मीद करते हैं. लेकिन फिर पैदावार की अधिकता से कीमतें गिरने लगती हैं. किसान कुछ समय के लिए फ़सलें रोकते हैं और फिर घबराकर मामूली कीमतों पर बेचने लगते हैं. सुधारवादी उपाय साफ़ है कि भारत में कृषि नीतियों को जबरदस्त बदलाव की जरूरत है. भारत का अन्न भंडार कहा जाने वाले पंजाब इसका उदाहरण है. ऐसे समय में जब भारत में अन्न की कोई कमी नहीं होती, इसके फ़सली क्षेत्र और भूजल इस्तेमाल का 80 फीसदी गेहूं और चावल में लगता है. अनाज के बढ़ते उत्पादन का मतलब है कि धान और गेहूं की कीमतें नहीं बढ़ रही हैं और किसानों को कोई लाभ नहीं हो रहा है. इमेज कॉपीरइटASHWIN AGHORImage captionसांकेतिक तस्वीर ‘रिस्टार्ट: द लास्ट चांस फॉर द इंडियन इकॉनमी’ के लेखक मिहिर शर्मा कहते हैं, ‘नीतियां किसानों के पास कोई विकल्प नहीं छोड़तीं. जिन किसानों को हर साल महंगी होती सब्ज़ियां उगानी चाहिए, वे गेहूं उगा रहे हैं, जिसकी हमें ज़रूरत ही नहीं है.’ लेकिन यहां सरकार जो अच्छी चीज़ करती है कि बिना देरी के फ़सल ख़रीदने की कीमतें बढ़ा देती है और किसान कष्ट से बच जाते हैं. उत्तर प्रदेश की नई बीजेपी सरकार को भी अतिरिक्त पैदावार का सामना करना पड़ा. लेकिन उसने आलू का ख़रीद मूल्य बढ़ाने और फिर ‘विवादित’ कर्ज माफी के ऐलान में देर नहीं की. इससे वहां किसानों का गुस्सा दब गया. लेकिन बीजेपी की ही मध्य प्रदेश सरकार समय रहते यह काम नहीं कर सकी. अब वह कह रही है कि अतिरिक्त प्याज खरीदने के लिए वह ज्यादा पैसे देगी. जितनी चीज़ें बदलती हैं, उतनी ही वे पहले जैसी बनी रहती हैं.