पूर्णिया [मनोज कुमार]। सीमांचल में आई भीषण बाढ़ से एक बार फिर पलायन का सिलसिला तेज हो गया है। इलाके से पानी निकलने के बाद लोग घरों में व्यवस्थित होने की जुगत लगाए हुए हैं। विडंबना यह है कि इस संकट की घड़ी में घर-परिवार को छोड़कर लोगों को रोजगार के लिए परदेस जाना पड़ रहा है।
सीमांचल में आई बाढ़ में लोगों का सब कुछ तबाह हो गया। ना खेतों में फसल सलामत है और ना ही घरों में खाने को अनाज बचा है। महानंदा और परमान ने इस बार सीमांचल में कहर ढा दिया। 30 लाख से अधिक लोग बेघर हो गए और हजारों एकड़ फसल पानी में बह गई।
घरों में जो अनाज लोग बुरे दिन के लिए अपनी कोठी (मिट्टी का बना गोदाम) में रखे हुए थे, बाढ़ के पानी में बह गया। लोगों के पास ना घर है और ना ही अनाज। बाढ़ हर साल सीमांचल के अररिया, किशनगंज, पूर्णिया और कटिहार में हजारों लोगों की तकदीर पलट देती है।
जिंदगी भर की कमाई पल में डुबो कर चली जाती है। सूबे में रोजगार की कमी के कारण लोग परदेस में ही शरण लेते हैं। बुधवार की रात पूर्णिया जंक्शन पर सीमांचल एक्सप्रेस ट्रेन पकडऩे आए बायसी प्रखंड के चकला गांव के रहमान, अब्दुल, करीम, मुर्तजा, शाहिद आदि ने बताया कि घर में कुछ नहीं बचा है। अब्बू किसी तरह बांस-टाटी से घर खड़ा कर रहे हैं। घरवालों को अनाज मिल सके, इस कारण वे दिल्ली जा रहे हैं।
सीमांचल के जोगबनी, फारबिसगंज, अररिया, पूर्णिया और कटिहार स्टेशनों पर दूसरे प्रांत जाने वाले मजदूरों की तादाद बाढ़ के बाद लगातार बढ़ रही है। इन्होंने बताया कि इनके कई रिश्तेदार भी काम की तलाश में बाहर जाएंगे। आनेवाले दिनों में पलायन की रफ्तार तेज ही होगी।