मोहर्रम के जुलूस से बिगुल बजा था आजादी की लड़ाई का

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मोहम्मद उमर अशरफ

तारीख़ है 16 दिसंबर 1782 यानी 10 मोहर्रम 1197 हिजरी, सिलहट के पीरज़ादे सैयद मोहम्मद हादी और सैयद मोहम्मद मेहंदी ताज़ियादारी में हिस्सा ले रहे थे, जिन्हें हादी मियां और मेहंदी मियां के नाम से जाना जाता था. साथ में बड़ी तादाद में आसपास की मुस्लिम अवाम भी मौजूद थी.

लोग मोहर्रम का जुलूस निकाल रहे थे, इस जुलूस में मातम हो रहा था, बड़ी तादाद में लोग अपने बदन पर खंजर और तलवार से अज़ादारी कर रहे थे. लोगों का जुलूस सिलहट के शाही ईदगाह से होते हुए पहाड़ी पर जा पहुंचा। तभी एका एक 50 से ज़्यादा अंग्रेज़ वहां पहुंच गए और जुलूस निकाल रहे लोगों पर हमला कर दिया. आमने सामने की जंग हुई जिसमें काफ़ी लोग घायल हुए, यहां तक के पीरज़ादे सैयद मोहम्मद हादी और सैयद मोहम्मद मेहंदी भी शदीद ज़ख़्मी हुए और थोड़ी देर में शहीद हो गए. इन्हें सिलहट का सुपरिटेंडेंट रॉबर्ट लिंडसे खुद अपने हाथों से गोली मारता है।

एक तरह से यह हिंदुस्तान में अंग्रेज़ो के खिलाफ़ होने वाला पहला जद्दोजहद था, जिसमे पीरज़ादों ने कर्बला के वाक़ये से सबक़ ले कर वक़्त के यज़ीद को ललकारा और शहीद हुवे.

हुआ कुछ यूँ कि 1778 में ब्रिटिश इंडिया कंपनी ने रॉबर्ट लिंडसे को सिलहट का कलेक्टर बनाया. इसी दौरान लिंडसे ने चुने के पत्थर और हाथियों के दाँत का कारोबार शुरू किया. कारोबार काफ़ी चलने भी लगा. वह एक साथ व्यापारी और मैजिस्ट्रेट दोनों का काम कर रहा था, इस वजह कर उसका दख़ल हर जगह बढ़ने लगा, पहले से इस फ़ील्ड में काम कर रहे लोगों को उससे तकलीफ़ होने लगी.

और इसी बीच 1781 में इस इलाक़े में काफ़ी बड़ा बाढ़ आया, जिससे ना सिर्फ इंसानों को, बल्कि जानवरों के साथ साथ खेतों को भी काफ़ी नुकसान हुआ. इस बाढ़ की वजह कर इस इलाके की एक तिहाई आबादी मुकम्मल तौर पर मर गई।

चुंकि बाढ़ से हर चीज बर्बाद हो गई थी इसलिए लोगों में बहुत ग़ुस्सा था और इसी मौक़े का फायदा उठाया पीरजादों ने, वह उस इलाके के बहुत ही मज़बूत लोग थे, जिनकी आसाम और बंगाल में काफ़ी इज़्ज़त थी, काफ़ी रुतबा था, खुद को शाह जलाल का वारिस कहने वाली इस सय्यद फ़ैमिली का इस इलाक़े में काफ़ी असर था, लोग उनकी बात मानते थे।

मुख़ब्बिरों ने कलेक्टर को पीरज़ादों की ख़बर दी, जमादार को पीरज़ादों की हरकत पर नज़र रखने कहा गया, इसी बीच किसी 10 मुहर्रम को किसी ने कलेक्टर को ख़बर दी के पीरज़ादों ने बग़ावत कर दी है, जिसके बाद सिलहट की पहाड़ियों पर लिंडसे और उनके लोगों ने मुहर्रम का जुलूस निकाल रहे लोगों को चारों तरफ़ से घेर लिया, और इन्हे सरेंडर करने कहा.

पीरज़ादों को एहसास हो गया के उनके साथ क्या होने वाला है, इसके बाद उन्होंने अपने लोगों ख़ीताब किया :- “हम क्या इन फ़िरंगियों के कुत्ते हैं जो उनकी बात माने आज या तो ये मरेंगे या फिर हम शहीद होंगे, जल्द ही अंग्रज़ों की हुकूमत अब ख़त्म होने वाली है.” जिसके बाद आमने-सामने की जंग हुई, लिंडसे और पीरज़ादों ने एक दूसरे को ललकारा, इनके बीच तलवार की जंग हुई, इस जंग में पीरज़ादे ने लिंडसे की तलवार तोड़ दी, तभी एक जमादार ने अपनी पिस्टल लिंडसे को बढ़ाई, लिंडसे ने फ़ौरन गोली चला दी, जिससे पीरज़ादा वहीं पर मर गया. इस जंग में पीरज़ादे सहीत 5 लोग शहीद होते हैं, और अंग्रेज़ी सिपाही मारा जाता है.

(उमर अशरफ जामिया मिल्लिया यूनिवर्सिटी से मास कॉम कर रहे हैं)