“निकाह, तलाक़ और मुस्लिम औरतों के मसाइल” पर एक परिचर्चा का आयोजन आज नई दिल्ली के शाहीन बाग में किया गया. जिसमें चीफ गेस्ट के तौर पर लंदन से आए हुए इंग्लैंड के पूर्व हेल्थ कमिश्नर खुर्शीद आलम ने मुख्य अतिथि के रूप में अपने विचार रखे. उन्होंने कहा के सिर्फ यह देखना ठीक नहीं है के इस मुद्दे को किसने उठाया है बल्की उससे ज्यादा यह देखना जरूरी है के इस मसले का क्या हल हो सकता है. उन्होंने कहा के भारत में प्रचलित मुस्लिम पर्सनल ला का कानून सिर्फ कुरान और हदीस पर निर्भर नहीं है बल्कि इसमें इस्लामी कानून बनाने के लिए क़यास और इज्मा का भी सहारा लिया गया है. एक तरफ जहां कुरान और हदीस से बनाए गए कानूनों को नहीं बदला जा सकता वही इज्मा और क़यास पर बनाए गए कानून बदले जा सकते हैं. अगर पहले से रायेज कानून से समाज पर बुरा असर पड़ रहा है तो इसे बदलने में ही भलाई है। भारतवर्ष में मुस्लिम औरतों की एक बहुत बड़ी आबादी आज निकाह और तलाक के गलत रायेज तरीको की वजह से जुल्म और ज्यादती का शिकार है. ऐसे में जरूरी है के निकाह और तलाक में प्रचलित गलत तरीकों को हटाने के लिए सख्त से सख्त कानून बनाया जाए.
इस अवसर पर बोलते हुए विशिष्ट अतिथि अधिवक्ता मोहम्मद काशिफ यूनुस ने कहा के तलाक का मसला और तीन तलाक एक ही बार मैं देने का मसला दो अलग-अलग मसला है लेकिन इन दोनों मसलो की शुरुआत निकाह और दैन मैहर से जुड़ी हुई है. एक तरफ जहां गैर इस्लामी क़ानून में दैन मेहर का कोई प्रावधान नहीं है तो उनके यहां तलाक के बाद गुजारा भत्ता देने का तसव्वुर है वहीं दूसरी ओर मुसलमानों में क्योंकि निकाह एक कॉन्ट्रैक्ट है इसलिए इस में तलाक के बाद गुजारा भत्ता देने का कोई प्रचलन नहीं है परंतु निकाह के वक्त ही दैन मेहर को रखा गया है ताकी तलाक़ की सूरत मैं दैन मेहर से मिले पैसे से औरतें कुछ हद तक अपना गुजारा कर सके इसलिए ऐसा कानून बनाया जाना चाहिए के मैहर लड़के की माली हैसियत के अनुसार हो. यह ठीक ऐसे ही है जैसे अदालत तलाक के बाद गुजारा भत्ता की रक़म लड़के की माली हैसियत के हिसाब से तय करती है, ठीक उसी तरह एक ऐसा कानून बनना चाहिए की दैन मेहर की रकम भी लड़के की माली हैसियत के हिसाब से तय हो. जहाँ तक बात एक ही बार में तीन तलाक के हो जाने की है तो यह चुके कुरान और हदीस से भी साबित नहीं है और इससे औरतों पर बड़ा जुल्म हो रहा है, इसे खत्म करके तलाक़ का जो असली तरीका है उसी तरीके को प्रचलित किया जाना चाहिए।इसके कारण आज भारत वर्ष में 2 लाख से भी ज्यादा महिलाएं प्रभावित है.
वहीँ तलाक़ ए अहसन में भी ये आवश्यक रूप से देखा जाना चाहिए की पहला तलाक़ देने से पहले Arbitration का अमल सही से मोकम्मल हो, बिना आर्बिट्रेशन का अमल मोकम्मल किये अगर कोई पहला तलाक़ दे देता है तो उसे अवैध माना जाना चाहिये। क्योंकि क़ुरआन और हदीस हमसे ऐसी ही उममीस रखता है और हमें यही तरीक़ा बताते है। हैरानी है के भारत में मौजूद ज़्यादा तर दारुल क़ज़ा आर्बिट्रेशन के अमल पर बिना ध्यान दिए ही पहले तलाक़ को मान लेते हैं जो की क़ुरान , हदीस और भारत वर्ष में मौजूद तलाक़ के क़ानून दोनों के ही हिसाब से ग़लत है. निकाह , तलाक़ और मुस्लिम औरतों के दुसरे मसाएल पर व्यापक चर्चा की ज़रुरत है. यह चर्चा सिर्फ इस लिए नहीं रोकी जा सकती के इससे मुस्लिम दुश्मन ताक़तों को हमारा मज़ाक़ उड़ाने का मौक़ा मिल सकता है. क्योंकि मज़ाक़ के पात्र तो आप तब भी बनेंगे जब समाज में फैली इन बुरायों पर से आज न कल पूरी तरह से चादर उठ जायेगी और आप बेनक़ाब हों जायेंगे. इसलिए ज़रूरी है के व्यापक चर्चा करके सही क़ानून बनाये जाएँ.
इस अवसर पर बोलते हुए मोहतरमा शाहीन कौसर ने कहा की एक ही बार में तीन तलाक़ देना बिलकुल ग़लत है और इसके खिलाफ सख्त क़ानून बनना ज़रूरी है. मोहम्मद जाबिर ने कहा के वक़्त के तक़ाज़े को देखते हुए हक़ की तहरीक चलाया जाना इंतहाई ज़रूरी है. मोहम्मद मुस्लिम ने तहरीक का साथ देने का वादा किया और कहा की इस लड़ाई को राष्ट्रीय अस्तर पर लड़ा जाएगा. ज़ियाउल हक़ ने भी तहरीक को समर्थन दिया. इस अवसर पर इफ़्तेख़ार खान, वकील जौहरी , मीरान हैदर, मोहम्मद नफीस अहमद वग़ैरह ने भी अपने विचार रखे.