इलाहाबाद हाईकोर्ट में लखनऊ हिंसा के आरोपियों के पोस्टर चौराहे पर लगाए जाने के मामले पर सुनवाई पूरी, फैसला सुरक्षित

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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के विरोध में पिछले दिनों लखनऊ में हिंसा के दौरान तोड़फोड़ करने के आरोपियों के पोस्टर सड़क किनारे लगाने के मामले में फैसला सुरक्षित कर लिया है। यह आदेश मुख्य न्यायमूर्ति गोविंद माथुर एवं न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा की विशेष खंडपीठ ने रविवार को महाधिवक्ता राघवेंद्र सिंह को सुनने के बाद दिया।

पूरी प्रक्रिया, नोटिस पर भी नहीं आए तो लगाने पड़े पोस्टर
राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि सड़क किनारे उन लोगों के पोस्टर लगाए गए हैं, जिन्होंने कानून का उल्लंघन किया है। इन लोगों ने सार्वजनिक ही नहीं, लोगों की निजी संपत्ति को भी नुकसान पहुंचाया है। उन्होंने कहा कि बाकायदा पड़ताल के बाद इन लोगों के नाम सामने आए तो कानून के मुताबिक पूरी प्रक्रिया अपनाने हुए उन्हें अदालत से भी नोटिस जारी किया गया। अदालत के नोटिस के बावजूद ये लोग उपस्थित नहीं हो रहे थे। ऐसे में सार्वजनिक रूप से इनके पोस्टर लगाने पड़े। इस पर कोर्ट ने जानना चाहा कि ऐसा कौन सा कानून है जिसके तहत ऐसे लोगों के पोस्टर सार्वजनिक तौर पर लगाए जा सकते हैं।

कानून के मुजरिमों के खिलाफ जनहित याचिका पोषणीय नहीं
महाधिवक्ता राघवेंद्र सिंह ने कहा कि ये कानून तोड़ने वाले लोग हैं और कानूनी प्रक्रिया से बच रहे हैं इसलिए सार्वजनिक रूप से इनके बारे में इस तरह खुलासा किया गया। महाधिवक्ता का यह भी कहना था जिन लोगों के खिलाफ भी कार्रवाई की गई है, वे सभी कानून के मुजरिम है। एडवोकेट जनरल ने यह भी कहा कि सभी पढ़े-लिखे लोग हैं व कानून के जानकार हैं इसलिए ऐसे लोगों को मामले में जनहित याचिका पोषणीय नहीं है। उन्होंने कहा कि ऐसे मामले में जनहित याचिका के माध्यम से हस्तक्षेप नहींम किया जाना चाहिए। उन्होंने क्षेत्राधिकार की भी बात कही। कोर्ट ने महाधिवक्ता को सुनने के बाद इस मामले पर निर्णय सुरक्षित कर लिया।

मौखिक टिप्पणी- ऐसा कोई काम न हो जिससे किसी का दिल दुखे
इससे पूर्व विशेष खंडपीठ ने सुबह दस बजे मामले पर सुनवाई शुरू की लेकिन महाधिवक्ता के उपस्थित न हो पाने के कारण सुनवाई अपराह्न तीन बजे तक के लिए टाल दी गई थी। उस दौरान कोर्ट ने अपर महाधिवक्ता नीरज त्रिपाठी से मौखिक तौर पर कहा कि ऐसा कोई कार्य नहीं किया जाना चाहिए, जिससे किसी के दिल को ठेस पहुंचे।

सरकारी वकीलों को ही अंदर जाने की अनुमति थी
सुबह सुनवाई के दौरान कोर्ट में उपस्थित एक अधिवक्ता ने इसी मामले को लेकर अपना पक्ष प्रस्तुत करना शुरू किया तो कोर्ट ने उन्हें मना कर दिया। दोपहर बाद की सुनवाई में सरकारी वकीलों के अलावा अन्य अधिवक्ताओं के प्रवेश पर रोक लगा दी थी लिहाजा कोई भी वकील न्याय कक्ष में प्रवेश नहीं कर सका।