लखनऊ,: उत्तर प्रदेश में बिजली कंपनियों की कार्यशैली एवं प्रबन्धन पर राज्य उपभोक्ता परिषद ने सवाल खड़े कर दिए हैं. परिषद का आरोप है कि कंपनियों की कार गुजारियों के चलते इनका वर्तमान में कुल घाटा 75 हजार करोड़ रुपये का हो गया है. परिषद ने इस घाटे की पीछे कंपनियों की फिजूलखर्ची, बिजली चोरी एवं प्रबंधन को जिम्मेदार बताया गया है. परिषद का दावा है कि बिजली कंपनियों के इस रवैये का सीधा असर प्रदेश की जनता को भुगतना पड़ रहा है.
परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने रविवार को कहा कि वर्ष 1959 में राज्य विद्युत परिषद गठित किया गया. इसका कुल घाटा वर्ष 2000 में 10 हजार करोड़ पहुंच जाने पर राज्य विद्युत परिषद को विघटित कर कई कम्पनियों में विभाजित कर दिया गया.
इस दौरान बड़े-बड़े दावे किए गए कि अब बिजली कम्पनियों में व्यापक सुधार होगा लेकिन सुधार की बात तो दूर बल्कि उदय में कम्पनियों ने खुद माना है कि अब उनका कुल घाटा लगभग 70738 करोड़ रुपये है. वहीं पावर फार आल में माना कि वर्ष 2015-16 तक बिजली कम्पनियों का कुल घाटा लगभग 72770 करोड़ है.
वर्मा ने कहा कि वर्तमान में यह घाटा 75 हजार करोड़ के ऊपर होगा. उन्होंने कहा कि इसके लिये कौन जिम्मेदार है? प्रदेश के मुख्यमंत्री से परिषद मांग कर रहा है कि बिजली कम्पनियों में लगातार बढ़ रहे घाटे की उच्चस्तरीय जांच होनी चाहिए क्योंकि कहीं न कहीं इसका खामियाजा प्रदेश की जनता को भुगतना पड़ रहा है.
उन्होंने कहा कि इस घाटे का मुख्य कारण फिजूखर्ची, बिजली चोरी, भ्रष्टाचार, गलत प्लान प्रबन्धन की अक्षमता है.